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जानिए, कानू जाति के सुदामा प्रसाद को, जिन्होंने रणवीर सेना के गढ़ रहे आरा में जीत हासिल की

भोजपुर जिला के अगिआंव प्रखंड के पवना में मिठाई की एक छोटी-सी दुकान चलाने वाले गंगादयाल साह के घर 2 फरवरी 1961 को जन्मे सुदामा प्रसाद भोजपुर में भूमिहीन-गरीब-बटाईदार किसानों के संघर्षों, गरीबों-वंचितों की राजनीतिक दावेदारी और सामाजिक बदलाव की लड़ाई के चर्चित योद्धा रहे हैं। पढ़ें, यह आलेख

बिहार में एक लोकसभा क्षेत्र है– आरा। भोजपुर जिले का यह संसदीय क्षेत्र नक्सलवादी संघर्षों के लिए भी जाना जाता रहा है। यहीं से रामनरेश राम, रामेश्वर अहीर और जगदीश मास्टर ने 1970 के दशक में सामंतवाद के खिलाफ निर्णायक लड़ाई शुरू की। यह संसदीय क्षेत्र एक समय रणवीर सेना का गढ़ भी माना जाता था। जातिगत राजनीति के स्तर पर देखें तो यह संसदीय क्षेत्र राजपूत जाति का अभेद्य गढ़ माना जाता रहा है, लेकिन इस बार भाकपा माले की ओर से इंडिया गठबंधन के उम्मीदवार सुदामा प्रसाद ने भाजपा के उम्मीदवार व केंद्र में मंत्री तथा पूर्व केंद्रीय गृह सचिव रहे आर.के. सिंह को 59 हजार 808 मतों के अंतर से हराकर इस गढ़ को ध्वस्त कर दिया है। साथ ही, सामाजिक न्याय की इस अवधारणा को पुख्ता किया है कि कानू जाति – जिसे बिहार में अति पिछड़ा वर्ग में शामिल किया गया है और जिसे हेय दृष्टि से देखा जाता रहा है – का एक सदस्य संसद में बैठने का हकदार है।

भोजपुर जिला के अगिआंव प्रखंड के पवना में मिठाई की एक छोटी-सी दुकान चलाने वाले गंगादयाल साह के घर 2 फरवरी 1961 को जन्मे सुदामा प्रसाद भोजपुर में भूमिहीन-गरीब-बटाईदार किसानों के संघर्षों, गरीबों-वंचितों की राजनीतिक दावेदारी और सामाजिक बदलाव की लड़ाई के चर्चित योद्धा रहे हैं। बचपन में ही मिठाई की दुकान पर कभी-कभार बैठने के क्रम में उन्हें सामंती और पुलिस जुल्म का सामना करना पड़ा, जिसने उस छोटे से बालक को भीतर से बेचैन कर दिया और वे भाकपा-माले के नेतृत्व में भोजपुर में चल रहे बदलाव की लड़ाई में खींचे चले आए।

सन् 1978 में हर प्रसाद दास जैन स्कूल, आरा से मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण करने के उपरांत सुदामा प्रसाद ने जैन कॉलेज आरा में नामांकन कराया, लेकिन 1982 में पढ़ाई बीच में ही छोड़कर वे भाकपा-माले के पूर्णकालिक कार्यकर्ता बन गए और सांस्कृतिक मोर्चे पर काम की शुरुआत की। युवा नीति के निर्देशन में उन्होंने ‘सरकारी सांढ़’, ‘पत्ताखोर’, ‘कामधेनु’, ‘सिंहासन खाली करो’ जैसे नाटकों में जबरदस्त अभिनय किया। पुलिस व सामंती ताकतों से दो-दो हाथ करते हुए युवा नीति ने भोजपुर में क्रांतिकारी सांस्कृतिक राजनीति को एक नई धार दी और उसमें सुदामा प्रसाद ने अविस्मरणीय भूमिका का निर्वहन किया।

सदन से लेकर सड़क तक जनसंघर्षों की मशाल थामे रहे हैं सुदामा प्रसाद

1990 में इंडियन पीपुल्स फ्रंट (आइपीएफ) के बैनर तले पहली बार आरा विधानसभा से चुनाव मैदान में उतरने वाले सुदामा प्रसाद ने 2015 के विधानसभा चुनाव में तरारी विधानसभा सीट पर पहली जीत हासिल की और फिर 2020 के चुनाव में भी सफलता हासिल की। विधानसभा के भीतर किसानों और जनता के विभिन्न तबकों के सवालों पर अपने आक्रामक तेवर व एजेंडे के जरिए उन्होंने पूरे बिहार में जनता के एक सच्चे जनप्रतिनिधि की पहचान बनाई। वे बिहार विधानसभा में पुस्तकालय समिति के सभापति बनाए गए। उनके नेतृत्व में संभवतः भारत के संपूर्ण विधायी इतिहास में पहली बार पुस्तकालय समिति की ओर से प्रतिवेदन पेश किया गया। अंतर्राष्ट्रीय हेरिटेज घोषित पटना स्थिति खुदाबख्श लाइब्रेरी को बचाने के संघर्ष में सुदामा प्रसाद की भूमिका इतिहास में दर्ज हो चुकी है।

सुदामा प्रसाद, नवनिर्वाचित सांसद, आरा

महागठबंधन की सरकार बनने के बाद उन्हें कृषि व उद्योग विकास समिति का सभापति बनाया गया और वे अभी इस पद पर बने हुए हैं। इस समिति के सभापति रहते हुए उन्होंने बटाईदार किसानों के पंजीकरण व उनके लिए पहचान पत्र जारी करने जैसी पहले से उठाई जा रही मांगों को समिति के विमर्श का एजेंडा बनाया। यह उनकी समिति द्वारा उठाए गए कदमों का ही नतीजा है कि आज बिहार में सीमित दायरे में ही सही बटाईदार किसानों का पंजीकरण शुरू हो चुका है। कृषि बजट में बटाईदार किसानों के लिए अलग से राशि व योजनाओं का प्रावधान करने के सवाल पर उन्होंने हाल ही में राज्य के 20 जिलों का दौरा किया और उससे संबंधित प्रतिवेदन राज्य सरकार को सौंपा।

सदन के बाहर सड़कों पर भी वे धान खरीदो आंदोलन का लगातार नेतृत्व करते रहे। 2014 में उनके द्वारा शुरू किए गए आंदोलन का ही नतीजा था कि भोजपुर में 1660 रु. प्रति क्विंटल की दर से बटाईदार किसानों का 28 हजार क्विंटल धान खरीदा गया।

इतिहास में सुरक्षित है 1989 का भोजपुर जगाओ-भोजपुर बचाओ आंदोलन

1979 से 83 तक मूलतः सांस्कृतिक संगठन में सक्रियता के बाद सुदामा प्रसाद 1984 में भोजपुर-रोहतास जिला के आइपीएफ के सचिव चुने गए और इसके बाद शुरू हुई संघर्षों की असली कहानी। 1989 में उनके नेतृत्व में भोजपुर जगाओ-भोजपुर बचाओ आंदोलन काफी चर्चित रहा था। इसके तहत सोन नहरों के आधुनिकीकरण, कदवन जलाशय का निर्माण, सोन व गंगा में पुल निर्माण, आरा-सासाराम बड़ी रेल लाइन का निर्माण सहित जमीन-मजदूरी के सवालों पर लंबा आंदोलन चलाया गया। आज उसी आंदोलन का नतीजा है कि सोन व गंगा नदी में पुल का निर्माण हो चुका है तथा आरा-सासाराम बड़ी रेल लाइन का निर्माण भी हो चुका है।

संघर्ष भी किया व जेल भी गए

1985 में भोजपुर के क्रांतिकारी किसान आंदोलन के शहीद जीउत-सहतू की श्रद्धांजलि सभा के दौरान पुलिस रेड में वे पहली बार गिरफ्तार हुए और जेल गए। भागलपुर सेंंट्रल जेल में उन्होंने लगभग 22 दिन काटे। फिर एकवारी में बैजनाथ चौधरी की हत्या के खिलाफ आयोजित सभा पर पुलिसिया दमन का प्रतिवाद करते हुए 1989 में दूसरी बार जेल गए। इस दौरान लगभग 31 महीने जेल में रहे। जेल में रहते हुए ही उन्होंने आरा विधानसभा से आइपीएफ के बैनर से पहला चुनाव लड़ा और 29000 से अधिक वोट हासिल किए और महज कुछ वोटों से पीछे रह गए।

अपने इसी कठिन राजनीतिक जीवन के दौरान 1993 में जेल से निकलने के बाद उन्होंने शोभा मंडल से अंतरजातीय शादी करके सामाजिक सुधारों की प्रक्रिया में एक अनुकरणीय उदाहरण पेश किया।

रणवीर सेना के निशाने पर रहे, लेकिन डिगे नहीं

1995 का कालखंड भोजपुर के दलितों-गरीबों पर रणवीर सेना द्वारा थोप दिए गए बर्बर युद्ध का समय रहा है। इस दौर में भी तमाम किस्म की चुनौतियों का सामना करते हुए सुदामा प्रसाद ने लड़ाई जारी रखी। कई गंभीर किस्म के झूठे मुकदमों में उन्हें साजिशन फंसाया गया, काम करना मुश्किल कर दिया गया। तब सुदामा प्रसाद ने भोजपुर जिले के बाहर के इलाकों में संघर्षों की शुरुआत की और कई जिलों में बेहद उल्लेखनीय काम किया।

(प्रस्तुति सहयोग : कुमार परवेज, संपादन : राजन/नवल/अनिल)


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