h n

बिहार : आबादी से लगभग तीन गुनी है सरकारी नौकरियों में हिंदू सवर्णों की हिस्सेदारी

सरकारी क्षेत्रों में हिंदू धर्म की ऊंची जातियों की आबादी से अधिक हिस्सेदारी का एक प्रमाण यह भी है कि बिहार में ब्राह्मण जाति के लोगों की आबादी बिहार की कुल आबादी की 3.6575 प्रतिशत है और सरकारी नौकरियों में इनकी हिस्सेदारी 8.4054 प्रतिशत है

बिहार में सरकारी नौकरियों में हिंदू सवर्णों की हिस्सेदारी उनकी आबादी की लगभग तीन गुनी है। इनमें ब्राह्मण, भूमिहार, राजपूत, कायस्थ शामिल हैं। वहीं कुछ एक जाति को अपवाद मानें तो पिछड़ा वर्ग की बहुसंख्यक जातियों की सरकारी नौकरियों में हिस्सेदारी उनकी आबादी के अनुपात में नहीं है।

बिहार सरकार द्वारा जारी जाति आधारित सर्वेक्षण रिपोर्ट ने अब इस सत्य को सार्वजनिक कर दिया है कि किस प्रकार ऊंची जातियों ने शासन और प्रशासन में अपना वर्चस्व बनाकर रखा है। 

मसलन, रिपोर्ट यह बताती है कि बिहार में वर्तमान में सरकारी क्षेत्र में कुल 20 लाख 49 हजार 370 लोग कार्यरत हैं। इनमें कुल सवर्णों (सामान्य वर्ग) की हिस्सेदारी 31.2916 प्रतिशत है। जबकि उनकी आबादी 15.3828 प्रतिशत है। 

यह आंकड़ा बताता है कि बिहार में सरकारी नौकरियों में सवर्णों की हिस्सेदारी उनकी आबादी के अनुपात में लगभग दोगुनी है। हालांकि इसमें अशराफों (मुस्लिम ऊंची जातियों) की हिस्सेदारी केवल 2.798 प्रतिशत है, जबकि आबादी में उनकी हिस्सेदारी 4.8044 प्रतिशत है। इनको छोड़ दिया जाए तो हिंदू सवर्णों की आबादी 10.5784 प्रतिशत और सरकारी नौकरियों में उनकी हिस्सेदारी 28.4933 है।

सामान्य वर्ग की कुल आबादी 2 करोड़ 1 लाख 9 हजार 207 है और इस वर्ग के कुल 6 लाख 41 हजार 281 लोग यानी 3.19 प्रतिशत सरकारी नौकरी में हैं। वहीं पिछड़ा वर्ग, अत्यंत पिछड़ा वर्ग और अनुसूचित जाति के मामले में यही आंकड़ा क्रमश: 1.75 प्रतिशत, 0.98 प्रतिशत और 1.13 प्रतिशत है।

बिहार की कुल आबादी के सापेक्ष सरकारी नौकरियों में वर्गवार हिस्सेदारी

वर्गआबादी में हिस्सेदारी (प्रतिशत में)सरकारी नौकरी में हिस्सेदारी (प्रतिशत में)
सामान्य वर्ग (सवर्ण जातियां)15.522 31.2916 
पिछड़ा वर्ग27.1286 30.3254 
अति पिछड़े36.0148 22.53 
एससी19.6518 14.1996 

सरकारी क्षेत्रों में हिंदू धर्म की ऊंची जातियों की आबादी से अधिक हिस्सेदारी का एक प्रमाण यह भी है कि बिहार में ब्राह्मण जाति के लोगों की आबादी बिहार की कुल आबादी की 3.6575 प्रतिशत है और सरकारी नौकरियों में इनकी हिस्सेदारी 8.4054 प्रतिशत है। 

ऐसे ही भूमिहारों की आबादी 2.8693 प्रतिशत है और सरकारी नौकरियों में हिस्सेदारी 9.1372 प्रतिशत है। इसी तरह राजपूत जाति की आबादी 3.4505 प्रतिशत है और सरकारी नौकरियों में इनकी हिस्सेदारी 8.3895 प्रतिशत है। 

पटना के सचिवालय में काम करते सरकारी कर्मी

इस मामले में कायस्थ जाति अग्रणी है। इनकी आबादी 0.6011 प्रतिशत है और सरकारी नौकरियों में इनकी हिस्सेदारी 2.5612 प्रतिशत।

सवर्ण जातियों से अलग अन्य जातियों की हिस्सेदारी की अलग दास्तान है। जैसे बिहार में पिछड़ा वर्ग की कुल आबादी 27.1286 प्रतिशत है और सरकारी नौकरियों में इनकी हिस्सेदारी 30.3254 प्रतिशत है। वहीं 36.0148 प्रतिशत आबादी वाले अति पिछड़ा वर्ग की सरकारी नौकरियों में हिस्सेदारी 22.53 प्रतिशत है। 

इसी तरह बिहार में अनुसूचित जाति की आबादी 19.6518 प्रतिशत है और सरकारी नौकरी में हिस्सेदारी 14.1996 प्रतिशत है।

बिहार की कुल आबादी के सापेक्ष सरकारी नौकरियों में जातिवार हिस्सेदारी

जातिआबादी में हिस्सेदारी (प्रतिशत में)सरकारी नौकरी में हिस्सेदारी (प्रतिशत में)
ब्राह्मण3.6575 8.4054 
भूमिहार2.8693 9.1372 
राजपूत3.4505 8.3895 
कायस्थ0.6011  2.5612 
यादव14.266 14.1281 
कोईरी4.2120 5.47 
कुर्मी2.8785 5.717 
बनिया2.3155 2.8928 

अब जातिवार आंकड़ों पर गौर करें। बिहार में यादव जाति की आबादी 14.2666 प्रतिशत है और सरकारी नौकरियों में इनकी हिस्सेदारी 14.1281 प्रतिशत है। 

इसी तरह कोईरी जाति की आबादी 4.2120 प्रतिशत है और सरकारी नौकरियों में हिस्सेदारी 5.47 प्रतिशत। ऐसे ही कुर्मी जाति की आबादी 2.8785 प्रतिशत है और सरकारी नौकरियों में इस जाति की हिस्सेदारी 5.717 प्रतिशत है।

यह देखा जा सकता है कि पिछड़ा वर्ग की बहुसंख्यक जातियों में केवल कुर्मी ही ऐसी जाति है जिसकी सरकारी नौकरियों में हिस्सेदारी सवर्णों की तरह दोगुनी है। लेकिन अन्य जातियों की हिस्सेदारी लगभग आबादी के अनुपात में ही है। 

बहरहाल, बिहार सरकार की रिपोर्ट में सरकारी नौकरियों की श्रेणीवार (यथा ग्रुप ए, ग्रुप बी और ग्रुप सी) जानकारी नहीं दी गई है। यदि यह जानकारी भी शामिल होती तो सरकारी नौकरियों में ऊंची जातियों के वर्चस्व की तस्वीर और साफ नजर आती।

(संपादन : राजन/अनिल)

संशोधित : शाम 6.45 बजे, दिनांक : 02/12/2023


फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्‍त बहुजन मुद्दों की पुस्‍तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्‍स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्‍य, संस्‍क‍ृति व सामाजिक-राजनीति की व्‍यापक समस्‍याओं के साथ-साथ इसके सूक्ष्म पहलुओं को भी गहराई से उजागर करती हैं। एफपी बुक्‍स की सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +917827427311, ईमेल : info@forwardmagazine.in

लेखक के बारे में

नवल किशोर कुमार

नवल किशोर कुमार फॉरवर्ड प्रेस के संपादक (हिन्दी) हैं।

संबंधित आलेख

‘कांवड़ लेने नहीं जाना’ के रचयिता से बातचीत, जिनके खिलाफ दर्ज किया गया है यूपी में मुकदमा
“कुछ निठल्ले सवर्ण शिक्षक हैं स्कूल में। उनका सिर्फ़ एक ही काम रहता है– स्कूल में टाइम पास करना। आप देखिए न कि आज...
एसआईआर के जरिए मताधिकार छीने जाने से सशंकित लोगों की गवाही
रूबी देवी फुलवारी शरीफ़ की हैं। उनके पास कोई दस्तावेज नहीं है। उन्होंने जन-सुनवाई में बताया कि “मेरे पास अपने पूर्वजों से जुड़े कोई...
डीयू : पाठ्यक्रम में सिख इतिहास के नाम पर मुस्लिम विरोधी पूर्वाग्रहों को शामिल करने की साजिश
याद रखा जाना चाहिए कि सिख धर्म और समुदाय ने अपने ऐतिहासिक संघर्षों में जातिवाद के विरुद्ध आवाज़ उठाई है और समानता, बराबरी तथा...
सपा का ‘पीडीए’ बसपा के ‘बहुजन’ का विकल्प नहीं
कांशीराम का जोर संवैधानिक सिद्धांतिकी को धरती पर उतारने पर था। बसपा मूलतः सामाजिक लोकतंत्रवादी रही। दूसरी ओर, यह बहस का विषय है कि...
जेएनयू में आंबेडकरवाद के संस्थापक थे प्रोफेसर नंदू राम
प्रोफेसर नंदू राम के समय में जेएनयू में वामपंथ से इतर कुछ भी सोचना एक प्रकार का पाप समझा जाता था। इसे समाजद्रोह के...