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बिहार में भाजपा : कुर्मी के बजाय भूमिहार के माथे पर ताज की रणनीति

ललन सिंह जब अकड़-अकड़ कर मोकामा को अनंतमय कर देने और विरोधी वोटरों को घरों में बंद कर देने की बात कर रहे थे तब ऐसा लग रहा था कि घोड़े पर सवार आक्रांताओं की फौज सबकुछ रौंदने के लिए बढ़ रही है। पढ़ें, राजू का यह आलेख

बिहार में नीतीश का ‘सुशासन’ जारी रहेगा या ‘सामाजिक न्याय’ वाली तेजस्वी सरकार आएगी, इसका फैसला तो 14 नवंबर को आएगा। लेकिन बिहार में ‘भूमिहार राज’ की आहट तब साफ-साफ सुनाई देने लगी जब मोदी सरकार में केंद्रीय मंत्री और मुंगेर के सांसद राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह ने मोकामा में गत 3 नवंबर को खुले मंच से अनंत सिंह को कानून का सम्मान करने वाला बताया। उन्होंने कहा कि “हर आदमी अनंत बनकर चुनाव लड़े। मोकामा को अनंतमय कर दीजिए। उनको इतना ज्यादा वोट से जिताएं कि साजिशकर्ताओं का मुंह काला हो जाए। अनंत जीतेंगे, तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का हाथ मजबूत होगा। कानून का राज और मजबूत होगा। उन्होंने नीतीश कुमार के ‘कानून का राज’ का सम्मान किया है। इसलिए वे आज हमलोगों के बीच नहीं हैं। वे जब हमारे बीच नहीं हैं, तो हमारा दायित्व है कि एक-एक व्यक्ति अनंत सिंह बनकर चुनाव लड़े। जब वे यहां थे तो मेरी जिम्मेदारी कम थी। आज वे नहीं हैं, तो आज से हमने मोकामा चुनाव कमान संभाल लिया है।”

ललन सिंह इतने ही पर नहीं रूके। उन्होंने विरोधी वोटरों को खुलेआम धमकी दी और कहा कि जो लोग भाजपा-जदयू को वोट नहीं देना चाहते हैं, उनको घर में बंद कर देना। ज्यादा हाथ-पांव‌ जोड़ें तो साथ में ले जाकर वोट गिरवा देना। और कह देना कि घर में जाकर सो जाएं!

ललन सिंह जब अकड़-अकड़ कर मोकामा को अनंतमय कर देने और विरोधी वोटरों को घरों में बंद कर देने की बात कर रहे थे तब ऐसा लग रहा था कि घोड़े पर सवार आक्रांताओं की फौज सबकुछ रौंदने के लिए बढ़ रही है।

ललन सिंह जब मंच छोड़ कर मोकामा से पंडारक तक रोड शो पर निकले तो उनके काफिले में दस-बीस नहीं बल्कि सत्तर से अधिक गाड़ियां दौड़ रही थी। उनके साथ उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी भी खुली गाड़ी पर सवार थे। काफिले के आगे एक गाड़ी हूटर बजाती चल रही थी। माहौल जबरदस्त उग्र और हिंसक लग रहा था। लग रहा था जैसे ललन सिंह मोकामा से पूरे बिहार को बता रहे थे कि जो हाथ-पांव‌ जोड़ेगा, उसी को वोट डालने दिया जाएगा। ‘सुशासन राज’ में वही रहेगा जो सिर उठाकर नहीं, बल्कि झुकाकर चलेगा।

नीतीश कुमार के ‘राजकाज’ को लेकर बिहारी समाज में लंबे समय से एक कहावत कही जा रही है कि ‘नीतीश को ताज, भूमिहार का राज’। ललन सिंह इस कहावत के प्रतिनिधि पात्र यानी ‘भूमिहार राज’ के प्रतीक पुरुष बन कर उभरे हैं। सामंती अकड़ और जातिवादी अहंकार की मिश्रित छवि वाले इस शख्स ने नीतीश कुमार को ‘बौना’ बना दिया है।

गत 2 नवंबर को पटना में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रोड शो से नीतीश ने क्यों किनारा किया, यह रहस्य खुलना बाकी है। लेकिन ललन सिंह ने रोड शो में मोदी के साथ खड़े होकर साफ कर दिया कि अब उन्हें नीतीश की परवाह नहीं। उन्होंने न केवल मोदी संग एकजुटता दिखाई बल्कि मुख्यमंत्री के चेहरे के सवाल पर अमित शाह की लाइन पकड़ कर कहा कि चुनाव के बाद विधायक दल अपना नेता चुनेगा। ललन सिंह के इस बयान से साफ हो गया कि नीतीश को अब मुख्यमंत्री नहीं बनाया जाएगा।

केंद्रीय मंत्री व जदयू के वरिष्ठ नेता राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह व मोकामा से जदयू के प्रत्याशी अनंत सिंह, जिन्हें दुलारचंद यादव की हत्या के आरोप में न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया है।

नीतीश कुमार अपनी ही पार्टी में अकेले पड़ते जा रहे हैं। ललन सिंह ही नहीं, बल्कि जदयू के कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष संजय झा भी उन्हें मुख्यमंत्री के रूप में देखना नहीं चाहते हैं। मधुबनी के चुनावी दौरे पर गए गृहमंत्री अमित शाह के साथ ‘मिथिला हाट’ में जिन चुनिंदा लोगों को भोजन का सुख मिला, उसमें कोई गैर सवर्ण नहीं था।

नीतीश कुमार की पार्टी और सरकार पर सवर्ण आधिपत्य का असर विधानसभा चुनाव में साफ दिखाई दे रहा है। भागलपुर के सांसद अजय मंडल महागठबंधन प्रत्याशियों के पक्ष में प्रचार करते बताये जा रहे हैं। बांका के सांसद गिरधारी यादव के पुत्र तो राजद के टिकट पर चुनाव ही लड़ रहे हैं। गिरधारी यादव के बारे में बताया जा रहा है कि वे केवल अपने बेटे की ही नहीं, बल्कि महागठबंधन के दूसरे प्रत्याशियों की भी मदद कर रहे हैं। मधेपुरा से जदयू सांसद दिनेशचंद्र यादव भी दल में ‘सवर्ण वर्चस्व’ से बेहद खफा बताए जा रहे हैं। इसका असर कोसी की कई सीटों पर पड़ता नजर आ रहा है।

लेकिन तन और मन से लाचार नीतीश कुमार चाह कर भी कुछ कर नहीं पा रहे हैं। जब एनडीए का घोषणा पत्र जारी हो रहा था तब नीतीश कुमार बिना कुछ बोले ही निकल गये। यह सब केवल 35 सेकेंड के भीतर हुआ।

कांग्रेस नेता और राजस्थान के पूर्व सीएम अशोक गहलोत ने इस पर टिप्पणी भी की कि कल एनडीए के घोषणापत्र कार्यक्रम में देखने को मिला कि नीतीश कुमार घोषणापत्र जारी करते समय कुछ सेकेंड बोलकर ही चले गए। उन्होंने एक प्रकार से उस कार्यक्रम का बहिष्कार ही किया, क्योंकि उन्हें लगा कि जब उन्हें मुख्यमंत्री नहीं बनाया जाएगा तो वे क्यों घोषणापत्र पढ़ें।

नीतीश की उपेक्षा और भाजपा से ललन सिंह और संजय झा की ‘गुप्त संधि’ का आलम यह है कि जदयू का एक धड़ा बीच-बीच में नीतीश को मुख्यमंत्री चेहरा बताने की कवायद करता है तो उसे दबा दिया जा रहा है। यही वजह है कि प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री शाह लगातार नीतीश कुमार का कद घटाते जा रहे हैं।

सनद रहे कि गत 24 अक्टूबर को समस्तीपुर में पहली चुनावी सभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 45 मिनट के भाषण में हर बार एनडीए सरकार बनाने की बातें कही, लेकिन एक बार भी उन्होंने फिर से नीतीश सरकार का नारा नहीं दिया। जबकि 5 साल पहले हुए 2020 के चुनाव में एनडीए के हर मंच से नारा दिया था– “अबकी बार नीतीश की अगुआई वाली सरकार”। ऐसा ही उन्होंने 23 अक्टूबर, 2020 को सासाराम में पहली चुनावी रैली में कहा था कि नीतीश कुमार की अगुआई में सरकार बनाना जरूरी है। ऐसा ही उन्होंने 1 नवंबर, 2020 को मोतिहारी में कहा था।

सवाल है कि आखिर इस बार मोदी और शाह समेत भाजपा के अन्य नेता नीतीश कुमार को फिर सीएम बनाने की बात क्यों नहीं कह रहे? क्या उनके मन में कुछ और है, जिसका खुलासा वे अभी नहीं करना चाहते?

दरअसल, भाजपा के दो बड़े नेता मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने अब तक नीतीश कुमार ही अगले मुख्यमंत्री होंगे, इस सवाल का सीधा जवाब नहीं दिया है। वह बार-बार नीतीश कुमार के नेतृत्व में चुनाव लड़ने की बातें कहते हैं। इससे जदयू के कार्यकर्ताओं और समर्थकों में संशय की स्थिति बन गई है।

दरअसल, भाजपा का ट्रैक रिकार्ड ऐसा रहा है कि वह संशय की स्थिति उत्पन्न करती है। इसे ऐसे समझिए कि 2024 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में भाजपा एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में चुनाव लड़ी, लेकिन मुख्यमंत्री बने देवेंद्र फडणवीस। इसके पहले 2023 के मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा ने शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में चुनाव लड़ने की बातें कही, लेकिन चुनाव बाद मुख्यमंत्री बने मोहन यादव। इसी तरह 2021 के असम विधानसभा चुनाव में भाजपा सर्बानंद सोनोवाल के नेतृत्व में लड़ी, लेकिन मुख्यमंत्री बने हिमंत बिस्वा शर्मा।

बिहार हिंदी पट्टी का इकलौता राज्य है, जहां आज तक भाजपा का कोई मुख्यमंत्री नहीं रहा। सियासी गलियारे में जब-तब भाजपा का मुख्यमंत्री बनाने की चर्चा होती रही है। लग रहा है कि भाजपा अपनी रणनीति के तहत आगे बढ़ रही है। भाजपा इस बार पूरी कोशिश करेगी कि अपना मुख्यमंत्री हो। मोदी हर वह नामुमकिन काम अपने कार्यकाल में कर लेना चाहते हैं, जो भाजपा के पहले के नेता नहीं कर पाए थे।

भाजपा बिहार में धीरे-धीरे अपनी स्थिति मजबूत कर रही है। नीतीश कुमार को अलगाव में डालने के लिए ललन सिंह और संजय झा सरीखे सवर्ण परस्त नेताओं को तव्वजो देने का मकसद भी यही है। बिहार में सवर्ण राज की वापसी – इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए पुलिस प्रशासन में सवर्ण ढांचे को मजबूत किया गया है। जैसे कि राज्य के डीजीपी विनय कुमार भूमिहार हैं। इन्हें लाने के लिए आलोक राज को तीन महीने में हटा दिया गया था। पटना के एसएसपी अवकाश कुमार को चंद महीने के भीतर हटाकर भूमिहार कार्तिकेय के. शर्मा को लाया गया। इन दोनों के लाने का असर अब पता चल रहा है। मोकामा में दुलारचंद यादव की दिनदहाड़े हुई हत्या में पुलिस प्रशासन हत्या के आरोपी अनंत सिंह के साथ खड़ा नजर आया। एसएसपी कार्तिकेय शर्मा अनंत सिंह के बारे में बोलने की बजाय दुलारचंद यादव को ‘पुराना क्रिमिनल’ बता रहे थे। अगर चुनाव आयोग अपनी चमड़ी बचाने के लिए सक्रिय नहीं होता तो शायद किसी पर कार्रवाई नहीं हुई होती।

दरअसल, दुलारचंद यादव की हत्या महज आपराधिक घटना नहीं है। यह बिहार में दलितों, पिछड़ों व अकलियतों को रौंदकर लौटने वाले भूमिहार राज की आहट है। हम हाथ नहीं जोड़ेंगे। डर कर घर में नहीं बैठेंगे। हम वोट डालने जायेंगे। हम प्रचार करने जाएंगे। दलितों व पिछड़ों के भीतर के इसी जज्बे को कुचलने का संकेत है दुलारचंद यादव की हत्या। तभी तो ललन सिंह कह रहे हैं विरोधियों को घर में बंद कर दो। वोट नहीं डालने दो।‌ 

तय कीजिए कि ललन की नजर में विरोधी कौन हैं।

(संपादन : नवल/अनिल)


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लेखक के बारे में

राजू

लेखक बिहार के वरिष्ठ पत्रकार हैं

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