h category

समाज और संस्कृति

दुनिया लेखकों से चलती है (भाग 3)
एक सफल लेखक जो लिखता है, समाज उसे सच मानता है, लेकिन मिथकीय तौर पर यदि जीते-जागते मनुष्य को ही अमानवीय ऊर्जा और लोक-शत्रु का रूपक दे दिया जाय तथा हज़ारों भावी लेखक उसी रूपक...
सवाल मछुआरा महिलाओं की भागीदारी का
जब तक हम जाति-आधारित उत्पादन व्यवस्था और जेंडर के सवाल को एक-दूसरे से जोड़ कर विश्लेषण नहीं करेंगे तब तक जाति, लिंग भाव और उत्पादन व्यवस्था में ब्राह्मणवाद कैसे घुसा है, समझ ही नहीं पाएंगे।...
आदिवासियों की शहादत और अकीदत की नगरी रांची में चौदह दिन
सरकार ने जेल को बिरसा मुंडा संग्रहालय और मेमोरियल पार्क में तब्दील कर दिया है। अंदर दाखिल होने के लिए पचास रुपए का टिकट लगता है। टिकट लिया और विशाल द्वार से होते हुए अंदर...
सोहराय पर्व : प्रकृति, पशु और संस्कृति का अद्भुत आदिवासी उत्सव
सोहराय पर्व की परंपरा अत्यंत प्राचीन मानी जाती है। इसकी जड़ें मानव सभ्यता के उस युग से जुड़ी हैं जब मनुष्य ने खेती-बाड़ी और पशुपालन को जीवन का आधार बनाया था। इतिहासकारों के अनुसार, इसका...
रामेश्वर अहीर, रामनरेश राम और जगदीश मास्टर के गांव एकवारी में एक दिन
जिस चौराहे पर मदन साह की दुकान है, वहां से दक्षिण में एक पतली सड़क जाती है। इस...
‘होमबाउंड’ : दमित वर्गों की व्यथा को उजागर करता अनूठा प्रयास
नीरज घेवाण और उनकी टीम ने पत्रकार बशारत पीर द्वारा लिखित और ‘न्यूयार्क टाइम्स’ में प्रकाशित एक सच्ची...
एक और मास्टर साहेब सुनरदेव पासवान के गांव में, जहां महफूज है दलितों और पिछड़ों का साझा संघर्ष
बिहार में भूमि व मजदूरी हेतु 1960 के दशक में हुए आंदोलन के प्रणेताओं में से एक जगदीश...
दसाईं परब : आदिवासी समाज की विलुप्त होती धरोहर और स्मृति का नृत्य
आज भी संताल समाज के गांवों में यह खोज यात्रा एक तरह की सामूहिक स्मृति यात्रा है, जिसमें...
और आलेख