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एसिड हमले : जले हुए चेहरे, झुलसी आत्माएं

एसिड अटैक सिर्फ शरीर का जलना ही नही है, ऐसे हादसे अक्सर मन से लेकर आत्मा तक को छलनी कर जाते हैं। लोग अपनी पहचान खो बैठते हैं। वह चेहरा जो इंसान की पहचान हुआ करता है अपनी पहचान की तलाश करने लगता है। यह बस शरीर पर हमला नहीं होता बल्कि उन सपनों और उन अरमानों पर भी हमला होता है जो आपके अंदर पल रहे होते हैं

दिल्ली से पटना जाने वाली ट्रेनें। हर डिब्बे में लोग ही लोग। जनरल कंपार्टमेंट्स के आगे लंबी लाइनें। एक-दूसरे पर गिरते मुसाफिर। यह सब देखकर हैरानी नहीं होती। लेकिन इसी ट्रेन में दो चेहरे सिर्फ  हैरान ही नहीं करते बल्कि समाज की गंदगी का आइना भी दिखा देते हैं। बिहार की ये दो दलित बहनें समाज की हकीकत से आपका साक्षात्कार करवाती हैं। लेकिन सवाल यह कि आखिर इन चेहरों को देखना कौन चाहेगा।

 

चंचल और सोनम दो बहनें हैं, दिल्ली से इलाज कराने के बाद वो पटना जा रही हैं। बीते साल 21 अक्टूबर की रात घर की छत पर सो रहीं इन बहनों पर गांव के ही चार युवकों ने तेजाब डाल दिया था। चंचल 11वीं क्लास में थी जबकि सोनम सातवीं क्लास में पढ़ रही थी। पिता शैलेश पासवान का गला यह कहते-कहते भर आता है कि गांव के दबंग परिवार के चार युवकों को मेरी बेटियों का पढऩा पसंद नहीं आया। राह चलते छेडख़ानी करना, दुपट्टा खींचना और अभद्र भाषा का इस्तेमाल कर लेने भर से जब बात नहीं बनी तो इन दो बहनों पर उन लोगों ने तेजाब डाल दिया।

लखनऊ में रहकर एसिड अटैक का शिकार हुईं लड़कियों के लिए काम कर रहीं युवा पत्रकार शालू अवस्थी कहती हैं कि एसिड अटैक सिर्फ शरीर का जलना ही नही है, ऐसे हादसे अक्सर मन से लेकर आत्मा तक को छलनी कर जाते हैं। लोग अपनी पहचान खो बैठते हैं। वह चेहरा जो इंसान की पहचान हुआ करता है अपनी पहचान की तलाश करने लगता है। यह बस शरीर पर हमला नहीं होता बल्कि उन सपनों और उन अरमानों पर भी हमला होता है जो आपके अंदर पल रहे होते हैं।

स्टॉप एसिड अटैक संस्था की पृष्ठभूमि तैयार करने वाले आलोक कहते हैं कि दिल्ली में होने वाली घटना सुर्खियां और सहानुभूति दोनों बटोर लेती हैं लेकिन भारत जैसे विशाल देश के बाकी हिस्से में ऐसी घटनाओं का शोर दूर तक सुनाई नहीं देता। आलोक के मुताबिक हर महीने लगभग 10 केस एसिड अटैक्स से जुड़े मामलों के होते हैं, जिनमें पति-पत्नी पर, जीजा साली पर, एकतरफा प्यार में लड़का लड़की पर तेजाब फेंकता है।

कानून में खामी

उत्तर प्रदेश के कानपुर में साल 2001 में आरती तेजाब का शिकार हुई। एसिड अटैक्स मामले में कानपुर का यह पहला रिपोर्टेड केस था, या यूं कहें इससे पहले भारत में ऐसे गिने-चुने मामले ही सामने आए थे। आरती केस कानपुर और देश के सबसे चर्चित केस में से एक रहा। बावजूद इसके केस की सुनवाई काफी मशक्कत के बाद 2009 में फास्ट ट्रैक कोर्ट से शुरू हो पाती है। फास्ट ट्रैक कोर्ट ने मुख्य आरोपी अभिनव पर 10 साल की रिग्रेस पनिशमेंट और 5 लाख का जुर्माना और उसके साथियों को 8.8 साल की सजा और ढाई-ढाई लाख के जुर्माने की सजा सुनाई। सभी समझ रहे थे कि आखिर देर से ही सही पर आरती को न्याय तो मिला। आरती के परिवार ने भी लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी और जीत ली थी लेकिन दिसंबर 2010 मे झूठे डाक्यूमेंट्स कोर्ट के सामने रख कर अभिनव ने हाईकोर्ट से जमानत मंजूर करा ली। चौतरफा दबाव के बाद आरोपियों की जमानत याचिका खारिज हुई लेकिन डिप्रेशन में जा चुकी आरती और उनके परिवार ने इस व्यवस्था से तंग आकर कानपुर शहर ही छोड़ दिया।

एसिड अटैक जैसे जघन्य अपराध से निपटने के लिए अब तक भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत किसी तरह के सेक्शन का प्रावधान नहीं था। चर्चित दिल्ली गैंग रेप कांड के बाद जस्टिस वर्मा कमेटी का गठन हुआ तथा तमाम विरोधों के बाद सरकार नया बलात्कार विरोधी विधेयक लेकर आई। नए कानून में भारतीय दंड संहिता की धारा 326ए, 354ए, 370 और 376 में संशोधन किया गया। धारा 326 में एक उपधारा जोड़ी गई 326ए। इस उपधारा के तहत यह प्रावधान है कि अगर कोई व्यक्ति किसी महिला पर या फिर कोई महिला किसी व्यक्ति पर एसिड अटैक करता है या करती है तो ऐसे मामले में उस महिला या पुरुष को आजीवन कारावास की सजा सुनाई जा सकती है। धारा 326 के तहत सिद्ध पाए गए अपराध के लिए अधिकतम सजा 10 साल की है जबकि एसिड अटैक के लिए जो नया उपबंध जोड़ा गया है उसके लिए आजीवन कारावास का प्रावधान है।

नए कानून के बावजूद कुछ मांगे हैं जो सिर उठाए इस समस्या के खिलाफ खड़ी हैं। तेजाब के प्रबंधीकरण पर किसी तरह का कानून नहीं है जिससे भविष्य में इसके हथियार के तौर पर इस्तेमाल होने की संभावना भी है। फारवर्ड प्रेस सवाल पूछता है, क्या सिर्फ  इलाज देने और गुनहगार को सजा दे देना पीडि़ता के लिए काफी है।

हमला हुआ, अब इलाज कैसे हो

आलोक कहते हैं कि भारत में जब किसी महिला पर एसिड से हमला होता है तो लोगों को पता ही नहीं होता कि प्राथमिक उपचार किस तरह किया जाना चाहिए। चंचल और सोनम के केस में भी ऐसा ही हुआ। अपनी तेजाब से जली बेटियों को लेकर पिता शैलेश आधी रात में ही अस्पताल पहुंच गए थे लेकिन वहां कोई जानता ही नहीं था कि प्राथमिक उपचार में करना क्या होता है।

कैसे करें प्राथमिक उपचार

  • तेजाब से किसी भी तरह के हमले के बाद जल्द से जल्द प्राथमिक उपचार दिया जाना चाहिए। ऐसा न होने पर तेजाब हड्डियों तक पहुंच सकता है और पीडि़त के लिए जानलेवा साबित हो सकता है।
  • सबसे पहले पीडि़त के शरीर के प्रभावित हिस्से को ताजे खारे पानी से धोएं।
  • प्रभावित हिस्से को गंदे पानी से न धोएं, इससे संक्रमण हो सकता है।
  • जले हिस्से को ठंडे पानी, बहुत ठंडा नहीं, से धोते रहें जब तक की जलने के बाद होने वाली उत्तेजना शांत न हो जाए। इसमें 30-45 मिनट लग सकता है।
  • एसिड के संपर्क में आ चुके गहने-कपड़ों को उतार दें।
  • प्रभावित हिस्से पर किसी तरह की क्रीम-लेप का इस्तेमाल न करें, क्योंकि यह डॉक्टरी ट्रीटमेंट को धीमा कर सकता है।
  • संभव हो तो विसंक्रमित महीन कपड़े का इस्तेमाल किया जा सकता है। इसके जरिए स्किन को हवाएं, धूल-मिट्टी आदि से बचाया जा सकता है।
  • मरीज को तुरंत ही बर्न स्पैशिलिटी हॉस्पिटल पहुंचाएं।

(फारवर्ड प्रेस के जून 2013 अंक में प्रकाशित)

लेखक के बारे में

मुकेश

मुकेश फारवर्ड प्रेस के हिमाचल प्रदेश संवाददाता हैं

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