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दलित-आदिवासी रंगमंच की गाथा

विलास घोगरे एक ऐसे कलाकार-योद्धा थे जिन्होंने 15 जुलाई, 1997 को मुंबई के रमाबाई नगर में दस दलितों के नरसंहार के विरोध में आत्महत्या कर ली थी। घोगरे को श्रद्धांजलि अर्पित करता रंगवार्ता का यह विशेष अंक केवल भारत ही नहीं बल्कि दुनिया भर में आदिवासी रंगकर्म के उद्भव और उसकी समस्याओं से परिचित कराता है।

दलित सांस्कृतिक योद्धा शहीद विलास घोगरे को समर्पित ‘रंगवार्ता’ का ताजा अंक (यह अंक अगस्त-अक्टूबर, 2012 का है, जो विलंब से प्रकाशित होकर मई, 2013 में बाजार में आया है) दलित-आदिवासी विशेषांक है। विलास घोगरे एक ऐसे कलाकार-योद्धा थे जिन्होंने 15 जुलाई, 1997 को मुंबई के रमाबाई नगर में दस दलितों के नरसंहार के विरोध में आत्महत्या कर ली थी। घोगरे को श्रद्धांजलि अर्पित करता रंगवार्ता का यह विशेष अंक केवल भारत ही नहीं बल्कि दुनिया भर में आदिवासी रंगकर्म के उद्भव और उसकी समस्याओं से परिचित कराता है। पत्रिका में प्रकाशित एक लेख में रिचर्ड कागोलोबया बताते हैं कि खुद को सभ्य कहने वाले समाजों और राजनीतिक व्यवस्थाओं ने हमेशा आदिवासी आस्थाओं को ‘शैतान’ माना है तथा अपनी राजनीतिक-आर्थिक नीतियों को लादने के लिए उन्होंने आदिवासी संस्कृति का दम घोटने की हर संभव कोशिश की है। आदिवासी रंगमंच, जो आदि संस्कृति का सबसे अहम तत्व है, इस प्रक्रिया से गुजरा है। इसलिए आश्चर्य नहीं कि आदिवासी रंगमंच के अध्ययन में लोगों की रुचि ना के बराबर है। ‘दलित रंगमंच के इतिहास के बारे में सूर्यनारायण रणसुभे लिखते हैं कि ‘दलित नाट्य का जन्म, अन्य विधाओं की तुलना में काफी देर से हुआ। इसका कारण केवल इतना ही है कि जहां अन्य विधाएं व्यक्तिनिष्ठ हैं,  वहीं नाटक एक सामूहिक विधा है’। वे मानते हैं कि ‘1970 के काफी पहले, डॉ बाबा साहेब आंबेडकर के जीवनकाल से ही दलित नाटक के बीज मिलने लगते हैं’।

रंगवार्ता का यह अंक ‘दलित रंगमंच’ क्या है, ‘दलित रंगमंच का इतिहास’, ‘दलित चेतना एवं मराठी का दलित रंगमंच’, ‘मलयालम का दलित रंगमंच’, ‘दलित रंगमंच पर सवर्णों का वर्चस्व’, ‘पंजाबी दलित नाट्य’, ‘हिंदी दलित नाटक’ आदि की विस्तृत जानकारी देता है। इसके अलावा, वर्ष 2012 में दुनिया छोड़ गए मेंहदी हसन, कैप्टन लक्ष्मी सहगल, राजेश खन्ना, देवानंद, जॉय मुखर्जी, दारा सिंह अलखनंदन, एके हंगल, शहरयार, दिनेश ठाकुर, रामचरण निर्मलकर, रिजवान जहीर उस्मान, सीताराम,शास्त्री और शांतिगोपाल के कला जीवन के बारे में भी विशद जानकारी देता है। दरअसल, यह अंक दलित-आदिवासी रंगमंच के एक इनसाइक्लोपीडिया की तरह है, जिसे इन समूहों के सांस्कृतिक जीवन में रूचि रखने वालों को जरूर पढ़ऩा चाहिए।

शीर्षक : रंगवार्ता (दलित-आदिवासी विशेषांक)
अंक : अगस्त-अक्टूबर 2012
संपादक : अश्विनी कुमार पंकज
संपर्क : आधार अल्टरनेटिव मीडिया, 203, एमजी टॉवर, 23 पूर्वी जेल रोड, रांची- 834001 झारखंड।
दूरभाष : 09234301671, ईमेल : rangvarta@gmail.com,
वेब पता : www.rangvarta.com

(फारवर्ड प्रेस के अगस्त 2013 अंक में प्रकाशित)

लेखक के बारे में

अशोक चौधरी

अशोक चौधरी फारवर्ड प्रेस से बतौर संपादकीय सहयोग संबद्ध रहे हैं।

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