वर्ष 2012 में हुए उत्तरप्रदेश के विधानसभा चुनावों में समाजवादी पार्टी को मुसलमानों के शत-प्रतिशत वोट मिले, यह दावा पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव ने चुनाव परिणामों के आने के तुरंत बाद खुद ही किया था। प्रसिद्ध मानवाधिकारवादी वकील रणधीर सिंह सुमन के अनुसार मुसलमानों ने समाजवादी पार्टी को इतनी बड़ी संख्या में वोट इस उम्मीद में दिए थे कि बरसों से आतंकवाद के झूठे आरोपों में जेलों की कालकोठरी में अपनी जवानी बरबाद कर रहे मुसलमान नवयुवकों को शायद आजादी नसीब हो जाए। मगर ऐसा हुआ नहीं।
पूर्ववर्ती मुख्यमंत्री मायावती ने मौलाना तारिक कासमी और मौलाना खालिद मुजाहिद की गिरफ्तारी पर उठ रहे सवालों का जवाब देने के लिए काफी दबाव के बाद 14 अगस्त, 2008 को डी निमेश आयोग का गठन किया था। समाजवादी सरकार के सत्ता में आने के बाद 31 अगस्त, 2012 को इस आयोग की रिपोर्ट सार्वजनिक की गई। रिपोर्ट में स्पष्ट शब्दों में कहा गया है कि तारिक और खालिद पर लगे आरोप बेबुनियाद हैं। गत 18 मई, 2013 को एक अदालती सुनवाई के बाद फैजाबाद से लखनऊ जेल ले जाते समय बाराबंकी में मौलाना खालिद मुजाहिद की न्यायिक अभिरक्षा में संदिग्ध हालात में मौत हो गई। खालिद की मौत को सरकार ने स्वाभाविक माना मगर सरकारी दावे को गलत मानते हुए उनके परिवारजनों ने उच्चाधिकारियों विक्रम सिंह व बृज लाल समेत 42 पुलिसकर्मियों के विरुद्ध बाराबंकी के कोतवाली थाने में हत्या का मामला दर्ज करा दिया। इसके बाद आतंकवाद के झूठे आरोपों में जेलों की कालकोठरी में बंद मुसलमानों की रिहाई के लिए आंदोलन चलाने के लिए गठित गांधीवादी नेता संदीप पांडे, प्रो. रुपरेखा वर्मा, एसआर दारापुरी और मोहम्मद शोएब एडवोकेट के नेत्तृव वाले ‘रिहाई मंच’ ने सभी नामजद 42 पुलिसवालों की गिरफ्तारी की मांग को लेकर गत 22 मई, 2013 से उत्तर प्रदेश की विधानसभा के समक्ष अनिश्चितकालीन धरना शुरू कर दिया। यह धरना अब भी जारी है।
रिहाई मंच के प्रवक्ता राजीव यादव का कहना है कि 18 मई, 2013 को मौलाना खालिद मुजाहिद की पुलिस अभिरक्षा में हत्या के दूसरे दिन ही प्रदेश के मुख्यमंत्री का बगैर किसी आधार के बयान आ गया कि मौत स्वाभाविक है। राजीव प्रश्न करते हैं कि आखिर मुख्यमंत्री ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट देखे बगैर ही कैसे जान लिया कि मौत स्वाभाविक है? रिहाई मंच के अध्यक्ष मो. शोएब एडवोकेट कहते हैं कि ‘प्रदेश के मुसलमान समाजवादी पार्टी से नाराज हैं। हालांकि सरकार प्रायोजित मौलवी और पूंजीवादी अबु आसिम आजमी जैसे कथित मुस्लिम चेहरे प्रदेश सरकार के साथ जरूर कदमताल कर रहे हैं, क्योंकि यह इन लोगों की रोजी-रोटी का प्रश्न है।’
शोएब ने आरोप लगाया कि प्रदेश सरकार खालिद के न्याय की लड़ाई को कमजोर करना चाहती है और इसका सबूत फैजाबाद है, जहां समाजवादी पार्टीं और हिंदुवादी संगठनों के लोगों ने मुस्लिम वकीलों पर जानलेवा हमला किया और यहां तक कि उनकी बार एसोशिएसन की सदस्यता को भी खत्म कर दिया। मगर प्रदेश सरकार ने उन वकीलों की सुरक्षा के लिए कोई कदम नहीं उठाया। रिहाई मंच के नेता शहनवाज आलम दावा करते हैं कि हमने धरने को कभी सांप्रदायिक रूप नहीं लेने दिया। शहनवाज के दावे की पुष्टि मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव प्रकाश करात के धरने में शामिल होने से होती है। प्रकाश करात ने प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के इस दावे, कि खालिद की मौत स्वाभाविक थी को खारिज करते हुए देश की खुफिया संस्थाओं को संसद के अधीन लाने की मांग की। राज्य सरकार के इशारे पर धरने के 59वें दिन स्थानीय पुलिस धरनास्थल पर लगे टेंट व अन्य सामान उठा ले गई। मगर शाम होते-होते भारी जनाक्रोश के कारण सामान लौटा दिया गया। उत्तरप्रदेश के प्रभावशाली दलित आन्दोलन के अगुआ संगठन, जिनमें परख महासभा और पिछड़ा वर्ग महासभा शामिल हैं, भी इस धरने में भागीदारी कर रहे हैं। दलित संगठनों के महासंघ भागीदारी आन्दोलन के मुखिया पीसी कुरील कहते हैं कि समाजवादी पार्टी का समाजवाद से कुछ लेना देना नहीं है। वह तो चुनाव को निगाह में रखकर सिर्फ भारतीय जनता पार्टी के एजेंडे को आगे बढा रही है।
इंडियन नेशनल लीग के अध्यक्ष मुहम्मद सुलेमान इस घटना को सरकार की कुंठा का प्रतीक बताते हैं। उनके अनुसार सरकार चाहती है कि हम अपना धरना समेट कर खुद ही भाग जाएं और सरकार बदनामी से बच जाए।
(फारवर्ड प्रेस के सितंबर 2013 अंक में प्रकाशित)
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