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सावित्रीबाई के कार्यों को आगे बढ़ाती ‘क्रांतिज्योति’

'क्रांतिज्योति’ सावित्रीबाई फुले द्वारा प्रज्ज्वलित ज्योति को पुणे के एक स्वयंसेवी महिला संगठन ने आज भी जलाए रखा है। पुणे ही वह शहर था जहां भारत की सामाजिक क्रांति की शुरुआत हुई

‘क्रांतिज्योति’ सावित्रीबाई फुले द्वारा प्रज्ज्वलित ज्योति को पुणे के एक स्वयंसेवी महिला संगठन ने आज भी जलाए रखा है। पुणे ही वह शहर था जहां भारत की सामाजिक क्रांति की शुरुआत हुई। अग्रसेन हाई स्कूल रोड पर येरवडा नामक एक भवन में एक मामूली से घर में स्थित इस संगठन का नाम ‘क्रांतिज्योति’ उचित ही है क्योंकि यह संस्थान भारत की पहली शिक्षिका सावित्रीबाई फुले के कार्यों को आगे बढ़ाने का कार्य कर रही है। यह घर महिलाओं ने किराए पर ले रखा है।

अर्चना

‘क्रांतिज्योति’ नाम से चलने वाली इस संस्था की विशेषता है कि इसमें कार्य करने वाली महिलाएं दलित-बहुजन समुदायों से आती हैं और अपने अस्तित्व को बचाने की खातिर बजाब्ते प्रशिक्षित और संगठित होकर अपनी लड़ाई लड़ रही हैं। संस्था की महिलाओं का मानना है कि महिलाओं के साथ गांव और शहर दोनों ही जगह भेदभाव बरतने का प्रतिशत बहुत ही ज्यादा है। राष्ट्रपिता जोतिबा फुले और डॉ. बाबा साहेब आम्बेडकर के आंदोलन में महिलाओं की आजादी और उनके विकास के मॉडल से ये प्रेरणा लेती हैं और उनकी धरोहर को जीवित रखते हुए इस संस्था के लिए कार्य कर रही हैं। वे कहती हैं कि भारत के संविधान में सभी जाति, धर्म, वर्ग और लिंग के लोगों को समान अधिकार तो दे दिए गए हैं परंतु सामाजिक जीवन में आज भी विषमतावादी व्यवस्था के समर्थकों ने महिलाओं को उनके अधिकारों से दूर ही रखा है। इस वजह से महिलाएं हमेशा के लिए दूसरों पर निर्भर और हताशा भरी जिंदगी जीने को विवश रहती हैं।

महिलाओं को हताशा भरी जिंदगी से उबारने के लिए महाराष्ट्र के उत्तरपूर्वी जिले अमरावती के यशोदा नगर में पली-बढी अर्चना नामक एक युवती ने कुछ स्थानीय महिलाओं के साथ मिलकर ‘क्रांतिज्योति’ नामक संगठन की नींव डाली। अर्चना संगठन की संचालिका भी हैं जिनके अनुसार महिलाओं में निर्भिकता और आत्मविश्वास जगाना ‘क्रांतिज्योति’ की प्राथमिकता है क्योंकि जब महिलाओं में आत्मविश्वास आ जाएगा तो वे स्वयं, परिवार और अपने समुदाय की समस्याओं को जानने का प्रयास कर समाधान के लिए भी पहल करेंगी।’ महिलाएं ‘क्रांतिज्योति’ के कार्यालय में आकर प्रशिक्षण लेती हैं। अर्चना संगठन की कार्यपद्धति पर प्रकाश डालते हुए कहती हैं, जोतिबा और सावित्रीबाई फुले के विचारों को बढावा देकर महिलाओं में शिक्षा, सामाजिक उत्तरदायित्व की भावना भरना ही मूल उद्देश्य है। वह कहती हैं, 2010 में शादी के बाद कुछ रकम उधार लेकर किराये पर मकान लिया और अपने उद्देश्य को पूरा करने में लग गया। आज वह एक उत्कृष्ट विचारधारा वाली संस्था को ट्रस्ट में पंजीकृत कर महिलाओं को सक्षम, साक्षर, निडर और अपने आप को लीडर बनाने का कार्य कर रही हैं।

‘क्रांतिज्योति’ ने समुदाय स्तर पर नेतृत्व विकास कार्यक्रम (सीएलटीपी) का आयोजन कर एक श्रृंखला बनाई। इस नेतृत्व विकास कार्यक्रम की वजह से आज बहुजन महिलाएं खुद की समस्याएं सुलझाने में सक्षम हुई हैं, साथ ही वह बस्ती या समुदाय के प्रश्नों की तरफ भी ध्यान देने लगी हैं। कई महिलाएं जिन्होंने घर की गली तक ठीक से देखी नहीं थीं और अपना नाम तक बताने से घबराती थीं, आज वह कार्यक्रमों, आंदोलनों में अपनी समस्याओं के बारे में खुलकर चर्चा करती हैं और समस्या के समाधान के लिए पहल भी करती हैं।

‘क्रांतिज्योति’ महिलाओं को रोजगार देने के लिए भी कृत संकल्पित है। इस संगठन के साथ जुड़ी महिलाएं ‘उद्योग का विकास’ का प्रशिक्षण लेकर खुद अपना खर्च उठाने में सक्षम हो रही हैं। ‘क्रांतिज्योति’ में आठ महिलाएं पूर्णकालिक कार्यकर्ता बनी हुई हैं और 40 से ज्यादा स्वयंसेवक के तौर पर कार्य कर रही हैं। इतना ही नहीं, यहां 600 से भी ज्यादा महिलाओं का एक मजबूत नेटवर्क भी बना है। इस तरह हम कह सकते हैं कि सही मायने में ‘क्रांतिज्योति’ महिलाओं की जीवन स्थिति को सुधारने में सावित्री बाई फुले के सपनों को पंख देने का कार्य कर रही है। उनकी सबलता के लिए यहां अलग-अलग विभाग भी बने हुए हैं और इस उद्देश्य से ‘क्रांतिज्योति’ स्टडी एवं ट्रेनिंग सेंटर (केएसटीसी) और रमा बाई व्यावसायिक ट्रेनिंग एवं बिजनेश सेंटर (आरवीटीसी) नामक दो मुख्य कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। वहीं दूसरी ओर ‘क्रांतिज्योति’ विचार मंच के तहत नेटवर्क से बाहर की महिलाओं के साथ भी संवाद स्थापित करती है। विचार मंच के तहत चर्चा सत्र, स्पर्धा, शिविर तथा कार्यशाला के माध्यम से जागरुकता कार्यक्रम नियमित रूप से चलता रहता है। इतना ही नहीं संस्था शिक्षा को बढावा देने के लिए ‘क्रांतिज्योति स्कॉलरशीप योजना’ के तहत सातवीं, आठवीं और नौंवी के विद्यार्थियों के बीच एक परीक्षा का आयोजन कर 9 छात्राओं को दो-दो हजार की छात्रवृत्ति भी प्रदान करती है। सामाजिक, मानसिक, शैक्षणिक, आर्थिक, स्वास्थ्य तथा व्याक्तित्व विकास के लिए संस्था की संचालिका अर्चना ने एक साप्ताहिक पत्रिका भी शुरू की थी जो आर्थिक परेशानियों की वजह से 16 अंक निकलने के बाद बंद हो गई। आज भी सैकड़ों मुश्किलों के बावजूद ‘क्रांतिज्योति’ हर महिला में क्रांतिज्योति जला सावित्रीबाई फुले के सामाजिक कार्यों की परंपरा को आगे बढा रही है।

फारवर्ड प्रेस के जनवरी, 2014 अंक में प्रकाशित


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प्रतीक्षा दापूरकर/अमरेंद्र यादव

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