स्वतंत्र भारत का संविधान 26 जनवरी, 1950 को लागू हुआ। इसी वर्ष संघ लोकसेवा आयोग (यूपीएससी) ने आईएएस व अन्य केन्द्रीय सेवाओं में भर्ती के लिए पहली परीक्षा आयोजित की। इस परीक्षा में 3,647 उम्मीदवारों ने भाग लिया। यूपीएससी की प्रथम रपट में यह नहीं बताया गया है कि इनमें से कितने अनुसूचित जाति (एससी) या अनुसूचित जनजाति (एसटी) के थे परंतु रपट यह अवश्य बताती है कि अच्युतानंद दास देश के पहले एससी आईएएस अधिकारी बने। उन्होंने 1950 की लिखित परीक्षा में सर्वोच्च अंक प्राप्त किए।
अच्युतानंद दास, जो पश्चिम बंगाल से थे, को लिखित परीक्षा में 1050 में से 609 (58 प्रतिशत) अंक प्राप्त हुए जबकि मद्रास के एन. कृष्णन को 602 (57.33 प्रतिशत) अंक मिले। परंतु साक्षात्कार में कृष्णन को 300 में से 260 (86.66 प्रतिशत) अंक प्राप्त हुए, जबकि दास को केवल 110 (36.66 प्रतिशत) अंक मिले। इससे दास, कुल अंकों में कृष्णन से बहुत पीछे छूट गए। पश्चिम बंगाल के एक अन्य परीक्षार्थी अनिरूद्ध दासगुप्ता ने भी साक्षात्कार में असाधारण प्रदर्शन किया। इन तीनों उम्मीदवारों को मिले अंकों से सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाले प्रत्याशी का अंदाजा लगाना कठिन नहीं है।
उम्मीदवार का नाम | अनिवार्य प्रश्नपत्र 150 अंक प्रत्येक) | वैकल्पिक प्रश्नपत्र (200 अंक प्रत्येक) | योग (1050) | साक्षात्कार (300) | कुल योग (1350) | |||||
---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|
ईई | जीई | जीके | 1 | 2 | 3 | |||||
1 | एन कृष्णन | 105 | 68 | 69 | 112 | 127 | 121 | 602 | 260 | 862 |
2 | अनिरूद्ध दासगुप्ता | 75 | 100 | 40 | 78 | 101 | 101 | 495 | 265 | 760 |
3 | अच्युतानंद दास | 80 | 76 | 79 | 106 | 141 | 127 | 609 | 110 | 719 |
स्रोत: यू पी एस सी
लिखित परीक्षा में अच्युतानंद दास और एन कृष्णन के अंकों में केवल 7 का अंतर था। इसलिए आश्चर्य नहीं कि महायोग में कृष्णन, दास से काफी आगे निकल गए क्योंकि उन्हें साक्षात्कार में दास से दुगने से ज्यादा अंक मिले। परंतु अनिरूद्ध दासगुप्ता और अच्युतानंद दास के अंकों की तुलना कई प्रश्नों को जन्म देती है। आईएएस, आईपीएस, आईएफएस इत्यादि में नियुक्ति के लिए चुने गए उम्मीदवारों में से दासगुप्ता को साक्षात्कार में सर्वोच्च अंक प्राप्त हुए। परंतु आईएएस व संबद्ध सेवाओं में नियुक्ति के लिए योग्य पाए गए उम्मीदवारों में से दासगुप्ता को लिखित परीक्षा में सबसे कम अंक मिले। चुने गए उम्मीदवारों में से सामान्य ज्ञान में भी उनके अंक सबसे कम थे। दासगुप्ता को सामान्य ज्ञान में 26.66 प्रतिशत और पूरी लिखित परीक्षा में 47.14 प्रतिशत अंक प्राप्त हुए परंतु उन्हें साक्षात्कार (व्यक्तित्व परीक्षा) में आश्चर्यजनक रूप से 88.33 प्रतिशत अंक मिले। अच्युतानंद दास को क्रमशः 52.66 प्रतिशत, 58 प्रतिशत और 36.67 प्रतिशत अंक मिले। लिखित परीक्षा में दास और दासगुप्ता के बीच 114 अंकों का न पाटा जा सकने वाला अंतर था।
जिस उम्मीदवार का सामान्य ज्ञान अच्छा होता है सामान्यतः यह अपेक्षा की जाती है कि वह पूरे आत्मविश्वास से चयन बोर्ड के समक्ष उपस्थित होगा और अच्छा प्रदर्शन करेगा। अनिरूद्ध दासगुप्ता का सामान्य ज्ञान में सभी सफल उम्मीदवारों में से सबसे खराब (26.66 प्रतिशत) प्रदर्शन था, परंतु उन्हें साक्षात्कार में उच्चतम अंक प्राप्त हुए। उन्हें 256 अंक मिले और 260 अंकों के साथ कृष्णन दूसरे स्थान पर रहे। परंतु कुल अंकों में अच्युतानंद दास बहुत पीछे छूट गए। कृष्णन ने परीक्षा में सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया, अनिरूद्ध दासगुप्ता को 22वां स्थान मिला और अच्युतानंद दास को 48वां। जो उम्मीदवार आईएएस में नियुक्ति के लिए योग्य पाए गए, उनमें दासगुप्ता का अंतिम स्थान था। उन्हें उत्तरप्रदेश काडर आवंटित किया गया।
लिखित परीक्षा में अनिरूद्ध दासगुप्ता ने केवल सामान्य अंग्रेजी के प्रश्नपत्र में अच्युतानंद दास और कृष्णन से अधिक अंक हासिल किए। चयन बोर्ड ने दास, दासगुप्ता और कृष्णन व अन्य उम्मीदवारों से कौन से प्रश्न पूछे और उन्होंने उनके क्या उत्तर दिए इसका कोई प्रकाशित अभिलेख उपलब्ध नहीं है। अगर यह अभिलेख उपलब्ध होता तो हम यह जान पाते कि दासगुप्ता ने लिखित परीक्षा में बहुत खराब प्रदर्शन करने के बाद भी ऐसा क्या कमाल कर दिया कि यूपीएससी का चयन बोर्ड उनसे इतना प्रभावित हो गया कि उन्हें साक्षात्कार में उच्चतम अंक दिए गए।
पहला एसटी आईएएस अधिकारी
असम के नामपुई जम चोंगा सन् 1954 में देश के पहले आदिवासी आईएएस अधिकारी बने। उन्हें असम-मेघालय काडर आवंटित किया गया। उनके और देश के प्रथम एससी आईएएस अधिकारी अच्युतानंद दास के चयन में कई चौका देने वाली समानताएं हैं। नामपुई जम चोंगा सामान्य ज्ञान में तीसरे स्थान पर रहे और उन्हें लिखित परीक्षा में कुल 51.51 प्रतिशत अंक प्राप्त हुए, परंतु उन्हें साक्षात्कार में केवल 160 (53.33 प्रतिशत) अंक मिले। उन्हें प्राप्त अंकों की तुलना रतीन्द्रनाथ सेनगुप्ता के अंकों से की जा सकती है, जिन्हें आईएएस का पश्चिम बंगाल काडर आवंटित किया गया।
नामपुई जम चोंगा को लिखित परीक्षा में 747 अंक मिले, जो कि रतीन्द्रनाथ सेनगुप्ता के 692 अंकों से 53 ज्यादा थे। प्रतिशत की दृष्टि से इन दोनों को क्रमशः 51.51 व 47.86 प्रतिशत अंक मिले। सेनगुप्ता को सामान्य अंग्रेजी में केवल 50 अंक मिले जो चयनित उम्मीदवारों में सबसे कम थे। सामान्य ज्ञान में वे नीचे से दूसरे स्थान पर रहे परंतु सेनगुप्ता को ‘व्यक्तित्व परीक्षा’ में 240 अंक (80 प्रतिशत) मिले और वे दूसरे स्थान पर रहे। सबसे अधिक अंक 260 (86.66 प्रतिशत) दो उम्मीदवारों को मिले-मध्यप्रदेश काडर के एसके चतुर्वेदी और पश्चिम बंगाल काडर के डी बंदोपाध्याय। एसके चतुर्वेदी ने इस बैच में सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया।
नामपुई जम चोंगा को अंततः प्राविण्य सूची में 64वां स्थान मिला और वे आईएएस में नियुक्ति के लिए योग्य पाए गए उम्मीदवारो में अंतिम स्थान पर रहे। रतीनद्र नाथ सेनगुप्ता को 52वां स्थान मिला।
लिखित परीक्षा में शानदार प्रर्दशन करने के बाद भी अच्युतानंद दास और नामपुई जम चोंगा व्यक्तित्व परीक्षा में चयन बोर्ड को प्रभावित नहीं कर सके। दासगुप्ता और सेनगुप्ता के मामले में स्थिति उलटी थी। उन्होंने लिखित परीक्षा में अपने कम अंकों की भरपाई अपने ‘व्यक्तित्व’ से कर ली।
उम्मीदवार का साक्षात्कार कैसे लें?
मैं सन् 1991 से 1995 तक बिहार के तिरहुत संभाग का आयुक्त था। उसी अवधि में बिहार के तत्कालीन राज्यपाल डा. ए. आर किदवई ने मुझे मुजफ्फरपुर स्थित बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय के कुलपति पद पर नियुक्त करने का प्रस्ताव रखा। यूपीएसएसी के पूर्व अध्यक्ष डा. किदवई उस बोर्ड के अध्यक्ष थे, जिसने 1973 में आईएएस में नियुक्ति के लिए मेरा साक्षात्कार लिया था। जब उन्हें यह पता लगा कि मैं उन उम्मीदवारों में से था, जिनका साक्षात्कार उन्होंने लिया था, तो वे मेरे प्रति बहुत स्नेहभाव रखने लगे। उत्तर बिहार के समस्याओं से घिरे इस विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में मेरी उनसे अक्सर बातचीत होती रहती थी।
एक बार मैंने हिन्दी मासिक पत्रिका ‘अदलबदल‘, जिससे मैं जुड़ा हुआ था, के लिए उनका साक्षात्कार लिया। पत्रिका के संपादक प्रोफेसर शैलेन्द्र श्रीवास्तव, जो विश्वविद्यालय में पढ़ाते थे, भी साक्षात्कार के दौरान मेरे साथ थे। डा. किदवई ने हमसे खुलकर बातचीत की और बड़ी सौजन्यता से सभी प्रश्नों के स्पष्ट उत्तर दिए। उन्होंने हमें जो बताया उसका सार यह था:
यूपीएससी में साक्षात्कार की आवश्कता- ‘‘साक्षात्कार के जरिए किसी उम्मीदवार की क्षमता, सत्यनिष्ठा, ईमानदारी और मानसिकता का आंकलन करने का प्रयास किया जाता है।’’
अगर उम्मीदवार कुछ प्रश्नों का उत्तर न दे सके तो क्या होता है- ‘‘इसमें कोई समस्या नहीं है। हमारी यह अपेक्षा नहीं होती कि हर उम्मीदवार दुनिया की हर चीज के बारे में सब कुछ जानेगा। हम यह मानकर चलते हैं कि वह ऐसी बहुत सी चीजें जानता है, जिनके बारे में हमने उससे कुछ नहीं पूछा… उम्मीदवार से यह अपेक्षा की जाती है कि वह ईमानदारी से यह स्वीकार करे कि कुछ चीजों के बारे में वह कुछ नहीं जानता। यह उसके विरूद्ध नहीं जाता…। उसे साक्षात्कारकर्ताओं को उल्लू बनाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। अगर वह ऐसा करेगा तो उन्हें तुरंत यह समझ में आ जाएगा। यह स्पष्ट हो जाएगा कि उम्मीदवार सत्यनिष्ठ नहीं है और साक्षात्कारकर्ताओं के मन में उसके चरित्र के संबंध में शंका उत्पन्न हो जाएगी।’’
क्या अंग्रेजी में बातचीत न कर पाना अयोग्यता है- ‘‘बिल्कुल नहीं। हरियाणा का एक उम्मीदवार अपने जीवन में पहली बार दिल्ली आया था। उसका पूरा साक्षात्कार हिन्दी में लिया गया। वह कई प्रश्नों का उत्तर ठीक से नहीं दे पाया, परंतु जब हमने उसकी ग्रामीण पृष्ठभूमि को दृष्टिगत रखते हुए उससे प्रश्न पूछने शुरू किए, तब उसकी योग्यता सामने आई। उसने गांवों में हो रहे स्वागतयोग्य परिवर्तनों की चर्चा की। उसने बताया कि किस तरह हरित क्रांति से किसानों में समृद्धि आई है, सड़क यातायात बेहतर हुआ है, कृषि और डेयरी उत्पादों के विपणन की बेहतर सुविधाएं उपलब्ध हुई हैं, ग्रामीण अर्थव्यवस्था में अधिक धन आया है, शैक्षणिक सुविधाएं बढ़ी हैं, नए स्कूल और कालेज खुले हैं, लोगों का स्वास्थ्य बेहतर हुआ है और उनकी औसत आयु बढ़ी है। उसने इन परिवर्तनों के ग्रामीण जीवन पर पड़े नकारात्मक प्रभावों को भी रेखांकित किया जैसे, शराब, ब्लू फिल्में, महिलाओं के साथ छेड़छाड़, तेज होती जिंदगी और तनाव। उसने ग्रामीण हरियाणा की पूरी स्थिति को हमारे समक्ष एक विद्वान व आत्मविश्वास से भरपूर अध्येता की तरह रखा। हम सब उससे बेहद प्रभावित हुए। गांव के इस लड़के को साक्षात्कार में उच्चतम अंक मिले।’’
अप्रासंगिक प्रश्न- ‘‘दर्शनशास्त्र या इतिहास के किसी विद्यार्थी से भौतिकशास्त्र के प्रश्न पूछना अनुचित होगा। इससे उम्मीदवार के मूल गुणों का आंकलन नहीं किया जा सकेगा।’’
अच्युतानंद दास और नामपुई जम चोंगा, हरियाणा के इस ग्रामीण लड़के जितने भाग्यशाली नहीं थे। उनका साक्षात्कार लेने वाले इंटरव्यू बोर्ड में डा. किदवई नहीं थे। परंतु इन सब समस्याओं के बावजूद उन्होंने भारत की शक्तिशाली नौकरशाही में वंचित वर्गों के प्रवेश की राह प्रशस्त की।