कहते हैं कि एक चित्र हज़ार शब्दों के बराबर होता है। नीचे दिए गए दो फोटो हमारे भारतीय समाज में मौजूद गैर बराबरी की दास्ताँ चीख-चीखकर बयां कर रहे हैं। जो लोग बराबरी की बात करते हुए यह कहते हैं कि अब तो समाज में समानता आ गयी है, अब कोई छुआछूत और जातिवाद नहीं रहा। ऐसे लोगों के लिए एक घटना के माध्यम से मैं बताना चाहता हूँ कि हमारे समाज में जातिवाद की जड़ें कितनी गहरी पैठ बनाये हुए हैं।
वाकया है राजस्थान के दौसा जिले की महवा तहसील के गाँव हुड़ला का, जहां दबंगों ने एक दलित महिला का अंतिम संस्कार शमशान में नहीं करने दिया। आपको बता दें कि राजस्थान में महवा से बीजेपी के विधायक ओमप्रकाश हुड़ला इसी गाँव के रहने वाले हैंl बीमारी के चलते बुजुर्ग दलित महिला की मृत्यु होने पर परिजन अंतिम संस्कार करने के लिए सुबह से ही बरसात के रुकने का इंतज़ार कर रहे थे,
लेकिन बारिश रुकने का नाम नहीं ले रही थी। आखिरकार शाम 4 बजे परिजन महिला के शव को अंतिम संस्कार के लिए शमशान ले गये। आपको जानकार आश्चर्य होगा कि गाँव के शमशान में अलग-अलग जाति के लोगों के लिए अलग-अलग स्थान निर्धारित हैं। चूँकि बारिश लगातार हो रही थी, इसलिए मृतक के परिजनों ने गाँव के तथाकथित उच्च जाति के लोगों से टीनशेड वाले शमशान में महिला का अंतिम संस्कार करने की गुहार लगाई। लेकिन दिमाग में ठूंस-ठूंस कर भरी हुई उंच-नीच वाली मानसिकता के चलते उन्होंने साफ़ इंकार कर दिया और कहा कि जिसके भाग्य में, जैसा लिखा है वैसा ही होगा। जैसे-जैसे समय गुजरता गया शाम भी ढलने लगी, नतीजन खुले आसमान के नीचे ही बुजुर्ग दलित महिला का अंतिम संस्कार करना पड़ा।
जैसा कि आप फोटो में देख सकते हैं कि बरसात की बूंदों को रोकने के लिए लोगों ने चिता के ऊपर त्रिपाल टाँगे रखा। जब बारिश थोड़ी काम हुई तो जल्दी आग पकडाने के लिए मिट्टी के तेल का भी सहारा लिया गया। खैर उस बुजुर्ग महिला के अंतिम संस्कार की क्रिया तो जैसे तैसे पूरी हो गयी लेकिन मेरे और कई अन्य लोगों के मन में बहुत से सवाल खड़े कर गई। लोग यहाँ पर तो शमशान का भी बंटवारा कर लेते हैं लेकिन मरने के बाद ऊपर जाने पर भी इसी तरह का बँटवारा होता होगा क्या?