शीतकालीन सत्र से जेएनयू के सभी छात्रों को “अनिवार्य” हाजरी देनी होगी। जेएनयू प्रशासन ने 22 दिसम्बर के रोज़ एक सर्कुलर जारी किया है, जिसमें कहा गया है कि स्नातक, स्नातकोतर छात्रों ही नहीं, बल्कि एमफिल और पीएचडी शोधार्थी को भी अपनी लाज़मी हाजरी देनी होगी। कई छात्रों ने अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि “क्या कुलपति जगदीश कुमार जेएनयू जैसे प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय को स्कूल बनाना चाहते हैं”। बहुत सारे शोधार्थी कुलपति के फरमान के औचित्य पर सवाल उठा रहे हैं। अगर जबरन अनिवार्य उपस्थिति के लिए बाध्य किया जायेगा तो कब छात्र फिल्ड वर्क करेंगे? या वे बाहर के पुस्तकालयों और लेखागार के लिए कब जा सकेंगे? चर्चा तो इस बात की भी हो रही है कि शिक्षकों की उपस्थिति के लिए भी बायोमेट्रिक मशीन लगाया जाएगा। संघी प्रशासन ने, कर्मचारी के बाद अब छात्र और शिक्षकों, की नकेल कसने की पूरी तैयारी कर ली है।
जेएनयू छात्रों की शंका वाजिब है कि यदि यह संघी फरमान लागू होता है तो यह जेएनयू के आज़ाद और प्रगतिशील किरदार पर बड़ा हमला होगा और छात्रों को काफी असुविधा पहुंचाएगा। इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि खौफ और पहरे के माहौल में आलोचनावादी विमर्श की गुंजाईश न के बराबर हो जाती है।

जब से हिन्दूत्वादी ताकतें 2014 से सत्ता में आई हैं, इसने जेएनयू के किरदार को बर्बाद करने का कोई भी मौक़ा नहीं गवाया है। हिन्दुत्ववादी ताकतें जेएनयू को नापसंद करती हैं क्योंकि यह कैम्पस, अपनी तमाम कमियों के बावजूद, धर्मनिरपेक्ष और प्रगतिशील सोच को बढावा देता है और शोषित और दबे–कुचले समूह के साथ खड़ा रहता है।
यही वजह है कि जेएनयू कुलपति जगदीश कुमार जब से अपना कार्यभार संभाले हैं तब से उन्होंने जेएनयू के किरदार पर एक के बाद एक हमला किया है : अपने ही छात्र नेता को गिरफ्तार करने के लिए परिसर में पहली बार पुलिस बुलाना, गरीब और हाशिए पर खड़े समाज से आए छात्रों की बुनियादी आवश्यकता यानि छात्रवृति में कटौती करना, पीएचडी की सीटों में जबर्दस्त कटौती करना, छात्रों में तथाकथित “राष्ट्रीयता” और “देशभक्ति” की भावना “इंजेक्ट” के नाम पर कैम्पस में टैंक लाने के लिए सरकार से अपील करना और अब अनिवार्य हाजरी!
विडम्बना यह है कि इन सभी हमलों को जेएनयू में “राष्ट्रीयता” की भावना पैदा करने के नाम पर सही ठहराया जा रहा है। तथाकथित “राष्ट्रवादी” कुलपति कुमार मगर यह भूल जाते हैं कि राष्ट्रकवि रवीन्द्रनाथ टैगोर ने एक ऐसे भारत का सपना देखा था जहां “सोच पर पहरा न हो” और ज्ञान को किसी बंधन में न बांधा जाए।
कई लोगों को लगता है कि जेएनयू की सुंदरता उसकी ऊंची–ऊंची लाल ईमारत और अरावली की गोद में बैठे हरा–भरा कैम्पस में है। लेकिन मेरे लिए इसका असली हुस्न इसकी आलोचना और वाद–विवाद की संस्कृति में है। मैं समझता हूं कि हमारी समझदारी अक्सर क्लासरूम के बाहर ही विकसित होती है। ढ़ाबा, कैन्टिन, हास्टल के अलावा आंदोलन सीखने के लिए वास्तविक जगह होता है। यह इसलिए होता है कि क्योंकि क्लासरू498+1म में शिक्षक और छात्र के बीच “पावर डायनामिक्स” पाया जाता है।
विडम्बना देखिए कि कुलपति जगदीश कुमार ने पूरी जिंदगी विज्ञान की पढ़ाई में लगा दी है लेकिन जब वह अपना निर्णय लेते हैं तो उसमें कहीं भी वैज्ञानिक दृष्टिकोण नहीं दीखता। अगर वे ऐसा सोचते हैं कि अनिवार्य हाजरी से रिसर्च को बढ़ावा मिलेगा तो क्या वह इसे वैज्ञानिक तथ्य से साबित कर सकेंगे? क्या वह कोई ऐसा रिसर्च का हवाला दे सकते हैं जो यह साबित करे कि अनिवार्य अटैंडेंस से रिसर्च की गुणवता में सुधार होता है? क्या लाजमी हाजरी ने छात्र की विषय में रुचि बढ़ाने में कोई महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है? जब शिक्षाविद ओपेन लर्निंग और परीक्षा और ग्रेड मुक्त शिक्षा की बात कर रहें हैं, वहीं हमारे कुलपति, “राष्ट्रवाद” के नाम पर, इसके विपरीत दिशा में दौड़ रहे हैं!

कुलपति जगदीश कुमार को कौन बताए कि नीलाद्री भट्टाचार्य, अभिजित पाठक, निवेदिता मेनन, गोपाल गुरु, उत्सा पटनायक, प्रभात पटनायक जैसे प्रोफेसर छात्रों के बीच इतने लोकप्रिय हैं कि उनके क्लास में बड़ी तादाद में छात्र पहुंचते हैं। जेएनयू आने से पहले ही मैं इन शिक्षकों के बारे में सुन चुका था। जामिया मिल्लिया इस्लामिया में मेरे सीनीयर साथी इनके लेक्चर सुनने के लिए जेएनयू आते थे। ये शिक्षक हाथ में नोट्स और किताब लिए क्लास में प्रवेश करते हैं, लेकिन उनके हाथों में अब कुलपति अटैंडेंस–शीट थमाना चाहते हैं। कुलपति का यह छात्र–विरोधी फ़रमान इतना अलोकप्रिय है कि आरएसएस का छात्र संगठन एबीवीपी ने भी इसके विरोध में परचा जारी किया है।
कुलपति यह नहीं समझ रहे हैं कि जेएनयू में पहले से ही छात्रों को विभिन्न विषयों में कोर्स लेने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। तभी तो छात्र कई बार आवश्यकता से अधिक कोर्सेज को “क्रेडिट” और “ऑडिट” करते हैं । वे जानते हैं कि एक विषय दूसरे विषय के अध्ययन के बगैर अधूरा है। पाठ्यक्रम को पूरा करने के लिए शिक्षक अपनी तरफ से अतिरिक्त क्लासेज भी लेते हैं। सभी शिक्षक तन्यमता से कार्यों को करते हैं क्योंकि वे ज्ञान और रिसर्च के महत्व को बखूबी समझते हैं। यह सब अब तक बिना अनिवार्य हाजरी के चलता आ रहा है।
इस के पीछे जो संघी साजिश है वह यह है कि प्रशासन छात्र और शिक्षक के उपर और अधिक शिकंजा कसे। इस तरह की कार्रवाई जेएनयू में प्रगतिशील राजनीति पर नकेल और आलोचनात्मक सोच पर पहरा लगाने की वजह से की गई है। यह सब छात्रों, विशेषकर “एक्टिविस्ट” छात्रों, के उपर नज़र रखने और उन्हे परेशान करने के लिए किया जा रहा।
दूसरी समस्या प्रशासन के बढ़ते कार्यक्षेत्र से भी है। शिक्षाविदों का मानना है कि शिक्षण संस्थानों के अंदर प्रशासन की भूमिका बेहद ही सीमित होनी चाहिए, लेकिन अफ़सोस कि जब से यह कुलपति जगदीश कुमार ने अपना कार्यभाल संभाला है, तब से ही प्रशासन की दखल–अंदाजी बहुत ज्यादा बढ़ गई है। यह सब करके कुलपति भले ही अपने सियासी आका को खुश कर लें और इससे अपना व्यक्तिगत स्वार्थ भी साध लें लेकिन लंबे समय के लिए इस तरह के हमले इस संस्था को बर्बाद देगा।
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