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डकैतों के नाम से कुख्यात चंबल की छवि बदल रहा संग्रहालय

चंबल संग्रहालय में अब तक करीब 14 हजार पुस्तकें, सैकड़ों दुर्लभ दस्तावेज, विभिन्न रियासतों के डाक टिकटें, विदेशों के डाक टिकटें, राजा भोज के दौर से लेकर सैकड़ों प्राचीन सिक्के, सैकड़ों दस्तावेजी फिल्में आदि उपलब्ध हैं। संग्रहालय में आठ कांड रामायण से लेकर रानी एलिजाबेथ के दरबारी कवि की 1862 में प्रकाशित वह किताब भी मौजूद है, जिसके हर पन्ने पर सोना है।

अन्तरराष्ट्रीय आर्काइव्स डे (9जून) पर विशेष

बीहड़ और बागियों के लिए कुख्यात चम्बल में स्वाधीनता आंदोलन की भी एक लंबी और निर्णायक लड़ाई लड़ी गई है। उसके संघर्षों का भी अपना एक स्वर्णिम इतिहास रहा है। इस इतिहास पर अभी तक किसी की नज़र नहीं पड़ी या जानबूझकर उपेक्षा की गई, बात दोनों ही हो सकती हैं। …पर स्थितियां अब बदल चुकी हैं। चम्बल अब वैसा नहीं रह गया है, वह अब स्वयं ही अपने शहीदों-सुधारकों और नायकों की अमूल्य धरोहरों और उनकी स्मृतियों व उनसे जुड़ी तमाम लिखित-अलिखित सामग्री को सहेजने की स्वयं ही कमर कस चुका है।

देश-दुनिया के शोधार्थी हो रहे आकर्षित

चम्बल का ज़िक्र आते ही ज़ेहन में कंपकंपी होने लगती है। मन में डकैतों का खौफनाक मंजर उभरने लगता है। चंबल के प्रति यह सोच नकारात्मकता दृष्टिकोण भी लाता है। लेकिन मध्यप्रदेश की चंबल घाटी की छवि डकैतों के नाम से खराब क्यों हो। कुछ लोगों के मन में जब यह ख्याल आया तो उन्होंने इसकी छवि बेहतर करने की कोशिश की जिसका परिणाम है आज यहां बहुत बड़ा संग्रहालय है जिसमें अथाह ज्ञान का भंडार समाया हुआ है।

संग्रहालय में शाह आलम

देश के सबसे बड़े गुप्त क्रांतिकारी दल ‘मातृवेदी’ के शताब्दी वर्ष के अवसर पर करीब 2700 किमी की चंबल संवाद यात्रा साइकिल से की गई थी। इस यात्रा का नेतृत्व शाह आलम ने किया। शोध यात्रा के दौरान उन्होंने संग्रहालय का ख्वाब बुना था। मार्च, 2018 में यह ख्वाब हकीकत में बदल गया। चंबल में संग्रहालय की यात्रा आरंभ हुई।

दुर्लभ दस्तावेजों का संग्रह

चंबल संग्रहालय में अब तक करीब 14 हजार पुस्तकें, सैकड़ों दुर्लभ दस्तावेज, विभिन्न रियासतों के डाक टिकटें, विदेशों के डाक टिकटें, राजा भोज के दौर से लेकर सैकड़ों प्राचीन सिक्के, सैकड़ों दस्तावेजी फिल्में आदि उपलब्ध हैं। संग्रहालय में आठ कांड रामायण से लेकर रानी एलिजाबेथ के दरबारी कवि की 1862 में प्रकाशित वह किताब भी मौजूद है, जिसके हर पन्ने पर सोना है। यहां दुर्लभ और दुनिया के सबसे पुराने स्टांप, डाक टिकट, ब्रिटिश काल से लेकर दुनिया भर के करीब चालीस हजार डाक टिकट इस संग्रहालय की शोभा बढ़ा रहे हैं। यही नहीं यहां करीब तीन हजार प्राचीन सिक्कों का कलेक्शन भी अपनी ओर आकर्षित करता है।

चंबल संग्राहलय को सहयोग और शोध के लिए विदेशों से भी लोग संपर्क कर रहे हैं। यह वाकई सुखद है कि जो चंबल सिर्फ डाकुओं के खौफनाक किस्सों से भरपूर था आज उस हिस्से में संग्रहालय बन चुका है।

चंबल संग्रहालय में सहेजी जा रही अमूल्य किताबें

संग्रहालय को बेतहर बनाने के लिए और भी शोध सामग्री तलाश की जा रही है। संग्रहालय समाज में बिखरे अमूल्य ज्ञान स्रोत सामग्री को सहेजने के मिशन में जुटा है, जहां से भी बौद्धिक संपदा मिलने की रोशनी दिखती है यही नहीं संग्रहालय  के संचालक उन सुधी जनों से संपर्क कर रहा है जिनके पास ज्ञान का दुर्लभ खजाना हो। दुर्लभ दस्तावेज, लेटर, गजेटियर, हाथ से लिखा कोई पुर्जा, डाक टिकट, सिक्के, स्मृति चिन्ह, समाचार पत्र, पत्रिका, पुस्तकें, तस्वीरें, पुरस्कार, सामग्री-निशानी, अभिनंदन ग्रंथ, पांडुलिपि आदि के गिफ्ट करने के लिए हर दिन हमख्याल लोगों के दर्जनों फोन आ रहें है। इस ज्ञानकोष से चंबल संग्रहालय समृद्ध और गौरवान्वित होगा

सरस्वती की जिल्दसाजी का नमूना

यहां उपलब्ध सामग्री के संरक्षण के लिये डिजिटाइजेशन, लेमिनेशन आदि पर बीते तीन महीने से शिद्दत से काम चल रहा है। दुर्लभ वस्तुओं की सहेजने वाले किशन पोरवाल की पांच दशकों की कड़ी मेहनत और दस्तावेजी फिल्म निर्माता शाह आलम की दो दशकों की सामग्री से यह यात्रा शुरु हुई है। चंद ही दिनों में इस पहल से आज तमाम लोग इसकी महत्ता को समझते हुए खुले दिल से जुड़ रहें हैं।

 रानी एलिजाबेथ के दरबारी कवि की किताब मौजूद

चंबल संग्रहालय में आठ कांड की रामायण, जिसमें लव कुश कांड भी है। प्राचीन गीता, संस्कृत और उर्दू में लिखी दुर्लभ मनुस्मृति तो है ही, रानी एलिजावेथ के दरबारी कवि की 1862 में प्रकाशित वह किताब जिसके हर पन्ने पर सोना है, भी यहां मौजूद है। 1913 में छपी एओ ह्यूम की डायरी, प्रभा पत्रिका के सभी अंक, चांद का जब्तशुदा फांसी अंक और झंडा अंक, गणेश शंकर विद्यार्थी जी द्वारा अनुदित ‘बलिदान’ और आयरलैंड का इतिहास पुस्तक, जिस पढ़कर नौजवान क्रांतिकारी बनने का ककहरा सीखते थे की मूल प्रति, तमाम गजेटियर, क्रांतिकारियों के मुकदमों से जुड़ी फाइलों के इलावा देश और विदेश की 18वीं और 19वीं शताब्दी के हर मुद्दों की दुर्लभ किताबों का जखीरा मौजूद है।

सात हजार दुर्लभ पत्रिकाओं का जखीरा भी है यहां

सरस्वती, माधुरी, विश्वमित्र, चांद, प्रभा, सुधा, विश्व मित्र, सुकवि, कन्या मनोरंजन, नवजीवन विशाल भारत, हंस, सारिका, धर्मयुग, दिनमान, साप्ताहिक हिन्दुस्तान आदि सहित देश-विदेश की सात हजार दुर्लभ पत्रिकाओं के इलावा प्रतिष्ठित साहित्यकारों की दुर्लभ कृतियां भी पाठकों को अपनी ओर आकर्षित करती हैं। यही नहीं यहां स्वतंत्रता संग्राम के दौरान लिखा गया साहित्य भी यहां उपलब्ध है। सबसे दिलचस्प बात यह है कि सैकड़ों प्रत्रिकाओं के प्रवेशांक भी मौजूद हैं। आजादी के पहले के कुछ मैगजीनों के भेजे गए टिकट लगे लिफाफे भी संरक्षित किये गए हैं।

सारिका पत्रिका का इमरजेंसी अंक

दुनिया से सबसे पुराने स्टांप-डाक, प्राचीन सिक्कों का भी कलेक्शन

चंबल संग्रहालय में डाक टिकट और स्टांप भी सहेजे जा रहे हैं। राजस्थान के भीलवाड़ा जिले के शाहपुरा स्टेट का स्टांप, जिसे दुनिया का सबसे पुराना स्टांप माना जाता है, यहां मौजूद है। इसके साथ ही ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा जारी स्टांप, तथागत बुद्ध की 2550वीं जयंती पर जारी स्टांप, आजादी की 25वीं वर्षगांठ पर भारत और सोवियत संघ द्वारा जारी स्टांप, जंग-ए-आजादी 1857 की 150वीं वर्षगांठ पर रानी लक्ष्मीबाई पर जारी स्टांप प्रमुख संकलन में हैं। भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. आर. वेंकटरमन को विदेशी दौरों के दौरान गिफ्ट, अनोखे डाक टिकटों का संग्रह भी दर्शनीय हैं। बताते हैं कि यहां ब्रिटिश काल से लेकर दुनिया भर के अब तक के करीब चालीस हजार डाक टिकटों का संग्रहण भी है। हजारों लिखित और अलिखित पत्र, लिफाफें भी संग्रहालय की शोभा बढ़ा रहे हैं। इसके अलावा संग्रहालय में करीब तीन हजार प्राचीन सिक्कों का कलेक्शन भी मौजूद है।

कौन हैं शाह आलम?

शाह आलम चंबल संग्रहालय को बनाने में अहम भूमिका निभा रहे हैं। संग्रहालय की कल्पना उन्हीं की उपज है। शाह आलम ने अवध विश्वविद्यालय, फैजाबाद और जामिया सेन्ट्रल यूनिवर्सिटी, नई दिल्ली से पढ़ाई की। डेढ़ दशक से घुमंतु पत्रकारिता का देश-दुनिया में चर्चित नाम रहे हैं। भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन के जानकार भी हैं। उन्होंने वर्ष 2006  में ‘अवाम का सिनेमा’ की नींव रखी। आज देश भर में इसके 17 केन्द्र स्थापित हैं, जहां कला के विभिन्न माध्यमों को समेटे एक दिन से लेकर हफ्ते भर तक आयोजन अक्सर चलते रहते हैं। ‘अवाम का सिनेमा’ के जरिये वे नई पीढ़ी को क्रांतिकारियों की विरासत के बारे में विस्तृत जानकारी उपलब्ध करवाते हैं। शाह आलम का नाम 2700 किमी से अधिक दूरी साइकिल से तय करके मातृवेदी के गहन शोध के लिए जाना जाता है। अभी हाल में ‘चंबल जन संसद’ और आजादी के 70 साल पूरे होने पर ‘आजादी की डगर पे पांव’ 2338 किमी की उनकी यात्रा काफी सुर्खियों में रही। दर्जनों दस्तावेजी फिल्मों का निर्माण करने वाले शाह की इसी साल ‘मातृवेदी-बागियों की अमरगाथा’ पुस्तक प्रकाशित प्रकाशित हुई है।

संपादन: बी. आनंद


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