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बुद्ध और आंबेडकर की राह जीवन जीता एक दंपत्ति

प्रज्ञा कृति और पद्म सिंह गौतम दोनों एक-दूसरे के पर्याय हैं। दिल्ली के विभिन्न इलाकों में दोनों मिलकर बाबा साहब और महात्मा बुद्ध से जुड़ी किताबें व अन्य प्रतीक चिन्ह बेचते हैं। दोनों आये दिन होने वाले बहुजनों के कार्यक्रम में शामिल रहते हैं। यह उनका पेशा ही नहीं, बल्कि उनके जीवन का मिशन भी है। एक खबर :

करीब दो साल पहले उसका नाम प्रमिता गौतम था। अब वह प्रज्ञा कृति है। यह महज केवल नाम बदलने की दास्तां नहीं है। लगभग 50 वर्षीया प्रमिता अब बौद्ध धम्म की दीक्षा ले चुकी हैं। वह मूलत: उत्तर प्रदेश के मथुरा जनपद की रहने वाली हैं। लेकिन बीते एक-डेढ़ दशक से बौद्ध धर्म और बाबा साहब डॉ. भीमराव आंबेडकर से जुड़ी किताबों व अन्य प्रतीक चिन्हों को स्टॉल लगाकर बेचती हैं जहां बहुजन समाज के लोग एकत्रित होते हैं। पूछने पर कहती हैं कि सवर्ण हिंदू बाबा साहब का संविधान जलाने की बात करते हैं, मैं देश के हर घर में बाबा साहब का संविधान पहुंचाना चाहती हूं। यही मेरा मिशन है।

प्रज्ञा कृति के मिशन में उनके पति पद्म सिंह गौतम भी शामिल हैं। जहां कहीं भी बहुजनों का कार्यक्रम होता है, दंपत्ति अपने साथ किताबों को लेकर पहुंच जाते हैं। इस काम से आपको इतना धनोपार्जन हो जाता है जिससे कि आपका घर चल सके, यह पूछने पर प्रज्ञा कृति कहती हैं कि यह काम वे अपना घर चलाने के लिए नहीं करती हैं। सामान्य तौर पर रविवार को होने वाले कार्यक्रम स्थलों पर जाती हैं। बाकी दिनों में वह चादर व अन्य कपड़े बेचती हैं।

बहुजन विमर्श को विस्तार देतीं फारवर्ड प्रेस की पुस्तकें

अपनी पढ़ाई-लिखाई के बारे में प्रज्ञा कहती हैं कि वह पुराने जमाने की इंटर पास हैं। विस्तार से पूछने पर उन्होंने बताया कि 1987 में उन्होंने इंटर पास किया था और उसी साल उनकी शादी पद्म सिंह गौतम से हो गयी। पति ने पढ़ने-लिखने के लिए प्रेरित किया। परंतु घर के हालात अच्छे नहीं थे, इसलिए आगे की पढ़ाई नहीं हो सकी। बाद में बच्चे हो गये तब पढ़ने-लिखने का विचार जाता रहा। रोजगार का कोई साधन नहीं था। इसलिए पूरा परिवार गाजियाबाद जिले के हापूड़ में बस गया। रोजी-रोजगार के लिए किताबें बेचना शुरु किया। बाद में बहुजन आंदोलन के साथ जुड़ते चले गये। वर्तमान में सुजाता बुक सेंटर के नाम से अपना व्यवसाय चलाती हैं।

बाबा साहब का संविधान है सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथ : दिल्ली के कंस्टीच्यूशन क्लब सभागार के बाहर किताबें बेचते प्रज्ञा कृति और पद्म सिंह गौतम

प्रज्ञा बताती हैं कि उनके पांच बच्चे हैं जिनमें तीन बेटे और दो बेटियां हैं। उसे इस बात का संतोष है कि विषमता के बावजूद उनके बच्चों ने अच्छी शिक्षा प्राप्त की है। बड़ी बेटी सीएजी, भारत सरकार में अधिकारी है। वहीं दूसरी बेटी ने बी.टेक करने के बाद एनआईएफटी से फैशन डिजायनिंग पूर्ण कर लिया है। अब वह पूर्णकालिक फैशन डिजायनर है। तीनों बेटे भी अच्छी शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। दो बेटे मास्टर डिग्री हासिल कर चुके हैं और सबसे छोटा बेटा जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय में स्नातक के छात्र है।

पद्म सिंह गौतम बताते हैं कि बाबा साहब और बौद्ध धर्म की किताबें बेचना उनका महज पेशा नहीं है। वे इसे एक मिशन के रूप में कर रहे हैं। पूछने पर बताते हैं कि भारत में जनतांत्रिक मूल्यों की स्थापना के बगैर सामाजिक व्यवस्था में गैरबराबरी कभी खत्म नहीं होगी। इसके लिए आवश्यक है कि बहुजन समाज के लोग बाबा साहब के संविधान को समझें और महात्मा बुद्ध के विचारों को ग्रहण करें।

(कॉपी संपादन : सिद्धार्थ)


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