रामस्वरूप वर्मा जी को पहली दफा 1974 में देखा। हालांकि उन्हें उसके तीन साल पहले से जानता था। मुझे स्मरण है, 1971 का साल रहा होगा, जब मेरे हाथ एक पुस्तिका लगी। यह हिंदुस्तानी शोषित समाज दल का चुनाव घोषणा पत्र था। शोषित दल, बिहार के जुझारू नेता जगदेव प्रसाद के प्रयासों से बना एक राजनीतिक दल था। जो परिवर्तित होकर हिंदुस्तानी शोषित दल हो गया था। कुछ ही समय बाद यह नामांतरित होकर शोषित समाज दल हो गया। जब मैंने वह घोषणा पत्र देखा-पढ़ा, तब मुझे वह प्रभावित नहीं कर सका। उसमें कृषक क्रांति पर जोर था, जिसकी बुनियाद लालबहादुर शास्त्री के प्रधानमंत्रित्व काल में सरकारी स्तर पर रखी गयी थी। हालांकि इसकी मांग विभिन्न राजनीतिक संगठनों द्वारा एक अरसे से की जा रही थी। 1971 में मैं बिलकुल तरुण था, इंटर का छात्र, लेकिन राजनीतिक रूप से बिलकुल अनजान नहीं था। जानने की उत्सुकता रहती थी और चूकि मार्क्स-एंगेल्स का कम्युनिस्ट घोषणा पत्र पढ़ चुका था, इसलिए मन में यह बात जम चुकी थी कि किसी भी राजनीतिक दल की रीती-नीति को जानने का सबसे अच्छा तरीका है– उसके घोषणा पत्र को पढ़ा जाय और इसी भाव से मैंने उक्त पुस्तिका पढ़ी थी। जिस किसी ने वह पुस्तिका दी थी, उसी ने बताया था कि इसे रामस्वरूप वर्मा ने लिखा है, और कि वह उत्तरप्रदेश के एक जानेमाने नेता हैं।
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