h n

बहुजन नवजागरण में रामस्वरूप वर्मा का योगदान

रामस्वरूप वर्मा के अर्जक आन्दोलन की बुनियाद में ब्राह्मणवाद और वर्णव्यवस्था का विनाश तथा एक समतामूलक समाज की स्थापना का आदर्श था। उनका साप्ताहिक पत्र ‘अर्जक’ सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन की दिशा में बहुजनों को वही चेतना और वही प्रकाश दे रहा था, जिसके लिए डॉ. आंबेडकर ने इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी बनाई थीI बता रहे हैं, कंवल भारती :

रामस्वरूप वर्मा की अर्जक वैचारिकी

रामस्वरूप वर्मा (जन्म : 22 अगस्त, 1923 – निधन : 19 अगस्त, 1998)

22 अगस्त 1923 को कानपुर, उत्तर प्रदेश में जन्मे रामस्वरूप वर्मा अपनी पढ़ाई के समय से ही समाजवादी विचारों के थे। इसलिए जब वे साठ के दशक में सक्रिय राजनीति में आए, तो सोशिलिस्ट पार्टी से जुड़ गए और विधायक बने। 1967 में वे उत्तर प्रदेश में चौधरी चरण सिंह सरकार में वित्त मंत्री बने। 1 जून 1968 को उन्होंने अर्जक संघ की स्थापना की, और उसके एक साल बाद 1 जून 1969 को ‘अर्जक’ अख़बार निकालकर बहुजन पत्रकारिता की आधारशिला रखी।

पूरा आर्टिकल यहां पढें बहुजन नवजागरण में रामस्वरूप वर्मा का योगदान

 

लेखक के बारे में

कंवल भारती

कंवल भारती (जन्म: फरवरी, 1953) प्रगतिशील आंबेडकरवादी चिंतक आज के सर्वाधिक चर्चित व सक्रिय लेखकों में से एक हैं। ‘दलित साहित्य की अवधारणा’, ‘स्वामी अछूतानंद हरिहर संचयिता’ आदि उनकी प्रमुख पुस्तकें हैं। उन्हें 1996 में डॉ. आंबेडकर राष्ट्रीय पुरस्कार तथा 2001 में भीमरत्न पुरस्कार प्राप्त हुआ था।

संबंधित आलेख

राष्ट्रीय स्तर पर शोषितों का संघ ऐसे बनाना चाहते थे जगदेव प्रसाद
‘ऊंची जाति के साम्राज्यवादियों से मुक्ति दिलाने के लिए मद्रास में डीएमके, बिहार में शोषित दल और उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय शोषित संघ बना...
‘बाबा साहब की किताबों पर प्रतिबंध के खिलाफ लड़ने और जीतनेवाले महान योद्धा थे ललई सिंह यादव’
बाबा साहब की किताब ‘सम्मान के लिए धर्म परिवर्तन करें’ और ‘जाति का विनाश’ को जब तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने जब्त कर लिया तब...
जननायक को भारत रत्न का सम्मान देकर स्वयं सम्मानित हुई भारत सरकार
17 फरवरी, 1988 को ठाकुर जी का जब निधन हुआ तब उनके समान प्रतिष्ठा और समाज पर पकड़ रखनेवाला तथा सामाजिक न्याय की राजनीति...
जगदेव प्रसाद की नजर में केवल सांप्रदायिक हिंसा-घृणा तक सीमित नहीं रहा जनसंघ और आरएसएस
जगदेव प्रसाद हिंदू-मुसलमान के बायनरी में नहीं फंसते हैं। वह ऊंची जात बनाम शोषित वर्ग के बायनरी में एक वर्गीय राजनीति गढ़ने की पहल...
समाजिक न्याय के सांस्कृतिक पुरोधा भिखारी ठाकुर को अब भी नहीं मिल रहा समुचित सम्मान
प्रेमचंद के इस प्रसिद्ध वक्तव्य कि “संस्कृति राजनीति के आगे चलने वाली मशाल है” को आधार बनाएं तो यह कहा जा सकता है कि...