h n

कबीर के गुरु और द्विजों का प्रपंच

द्विज हजारी प्रसाद द्विवेदी से लेकर ब्राह्मणवाद के समर्थक गैर द्विज पुरुषोत्तम अग्रवाल तक ने येन-केन-प्रकारेण रामानन्द को कबीर का गुरु करार दिया। जबकि कबीर और रामानन्द की शिक्षाएं एक समान नहीं। कबीर के गुरु तो उनका आत्मज्ञान था जिसे उन्होंने विवेक की संज्ञा दी थी। बता रहे हैं कंवल भारती :

रामानन्द नहीं, कबीर का विवेक था उनका गुरु

कासी में हम प्रगट भए हैं,

रामानन्द चेताय।[i]

ये पंक्तियां न ‘कबीर-ग्रन्थावली’ में मिलती हैं और न ‘गुरु ग्रन्थ साहब’ में। लेकिन कबीर के सभी जीवनी-लेखकों ने इसके आधार पर यह निष्कर्ष निकाला है कि कबीर को रामानन्द ने दीक्षा दी थी, अर्थात् रामानन्द कबीर के गुरु थे। जब यह पंक्ति कबीर ग्रन्थावली में नहीं है, तो इसका स्रोत क्या है? किसी भी जीवनी लेखक ने इस पंक्ति का स्रोत नहीं बताया है। यह हो सकता है कि इसे किसी रामानन्दी वैष्णव-पंथी ने बाद में गढ़ा हो। लेकिन, इसका अर्थ यह नहीं है, जो द्विज लेखकों ने बताया है। इसका सही अर्थ यह है कि कबीर स्वयं रामानन्द को चेताने के लिये काशी में आये थे।

पूरा आर्टिकल यहां पढें कबीर के गुरु और द्विजों का प्रपंच

 

 

लेखक के बारे में

कंवल भारती

कंवल भारती (जन्म: फरवरी, 1953) प्रगतिशील आंबेडकरवादी चिंतक आज के सर्वाधिक चर्चित व सक्रिय लेखकों में से एक हैं। ‘दलित साहित्य की अवधारणा’, ‘स्वामी अछूतानंद हरिहर संचयिता’ आदि उनकी प्रमुख पुस्तकें हैं। उन्हें 1996 में डॉ. आंबेडकर राष्ट्रीय पुरस्कार तथा 2001 में भीमरत्न पुरस्कार प्राप्त हुआ था।

संबंधित आलेख

वर्तमान परिप्रेक्ष्य में दलित साहित्य
दलित साहित्य के सौंदर्यशास्त्र का विकास दलित समाज, उसकी चेतना, संस्कृति और विचारधारा पर निर्भर करता है, जो एक लंबी प्रक्रिया में होते हुए...
बानू मुश्ताक की कहानियों में विद्रोही महिलाएं
सभी मुस्लिम महिलाओं को लाचार और बतौर वस्तु देखी जाने वाली बताने की बजाय, लेखिका हमारा परिचय ऐसी महिला किरदारों से कराती हैं जो...
योनि और सत्ता पर संवाद करतीं कविताएं
पितृसत्ता की जड़ें समाज के हर वर्ग में अत्यंत गहरी हो चुकी हैं। फिर चाहे वह प्रगतिशीलता के आवरण में लिपटा तथाकथित प्रगतिशील सभ्य...
रोज केरकेट्टा का साहित्य और उनका जीवन
स्वभाव से मृदु भाषी रहीं डॉ. रोज केरकेट्टा ने सरलता से अपने लेखन और संवाद में खड़ी बोली हिंदी को थोड़ा झुका दिया था।...
भक्ति आंदोलन का पुनर्पाठ वाया कंवल भारती
आलोचक कंवल भारती भक्ति आंदोलन की एक नई लौकिक और भौतिक संदर्भों में व्याख्या करते हैं। इनका अभिधात्मक व्याख्या स्वरूप इनके पत्रकार व्यक्तित्व का...