दिल्ली विश्वविद्यालय में स्नातक व परास्नातक कोर्सों में नामांकन की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। लेकिन विश्वविद्यालय की कार्यशैली के कारण सबसे अधिक नुकसान ओबीसी वर्ग के बच्चों एवं उनके अभिभावकों को उठाना पड़ा रहा है। दरअसल, विश्वविद्यालय ने साफ कहा है कि ओबीसी वर्ग के छात्र/छात्राओं के गैर क्रीमीलेयर प्रमाण पत्र 30 मार्च 2019 को या इसके बाद के होने चाहिए। साथ ही यह भी कहा जा रहा है कि जबतक गैर क्रीमीलेयर प्रमाण पत्र के साथ आवेदन पत्र जमा नहीं किए जाएंगे तब तक पंजीकरण नहीं किया जाएगा। जबकि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग के छात्र/छात्राओं को इससे अलग रखा गया है।
विश्वविद्यालय के इस फैसले का असर ओबीसी वर्ग के छात्र/छात्राओं के नामांकन पर पड़ा रहा है। इसकी बानगी यह कि 11 जून 2019 तक दिल्ली विश्वविद्यालय में नामांकन हेतु कुल 1 लाख 83 हजार 516 छात्र/छात्राओं ने सशुल्क पंजीकरण कराया है और इनमें ओबीसी वर्ग के छात्र/छात्राओं की संख्या केवल 35 हजार 452 है। कुल पंजीकरण की तुलना में देखें तो ओबीसी के छात्र/छात्राओं की हिस्सेदारी केवल 19.3 प्रतिशत है।
सनद रहे कि अंडर ग्रेजुएट कोर्सों में दाखिले के लिए विश्वविद्यालय द्वारा 14 जून 2019 तक की अवधि मुकर्रर है। ऐसे में जबकि ओबीसी छात्र/छात्राओं को प्रमाणपत्र लाने के लिए बाध्य किया जा रहा है, उसे देखते हुए यह कहना गैर वाजिब नहीं है कि विश्वविद्यालय प्रशासन ओबीसी को संविधान प्रदत्त हिस्सेदारी नहीं देना चाहता है।
ध्यातव्य है कि उच्च शिक्षण संस्थाओं/विश्वविद्यालयों में ओबीसी को 27 फीसदी, अनुसूचित जाति को 15 फीसदी, अनुसूचित जनजाति को 7.5 फीसदी और आर्थिक आधार पर कमजोर वर्गों के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान है। दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा जारी एडमिशन बुलेटिन के मुताबिक वह आरक्षण के मामले में केंद्र सरकार के नियमों का अनुपालन करेगा। जबकि जमीनी सच्चाई यह है कि दिल्ली और दिल्ली के बाहर अन्य राज्यों में भी गैर क्रीमीलेयर प्रमाणपत्र हासिल करना एक चुनौती है। नौकरशाही लेटलतीफी की वजह से छात्र/छात्राओं को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है।
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विश्वविद्यालय के ओबीसी विरोधी नियमों की शिकार एक छात्रा राखी धीमन हैं। वे हरियाणा की रहने वाली हैं और ओबीसी समुदाय से आती हैं। फारवर्ड प्रेस को भेजे ईमेल में उन्होंने बताया है कि किस तरह से ओबीसी वर्ग के छात्र/छात्राओं को दिल्ली विश्वविद्यालय में दाखिला लेने से रोका जा रहा है। उन्होंने कहा है कि 30 मई 2019 को दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा नामांकन हेतु आवेदन प्रपत्र जारी किए गए। इसके आलोक में राखी ने 3 जून को जब वह फार्म भर रही थीं तब उनके भाई ने बताया कि यदि वह ओबीसी के कैटेगरी में नामांकन चाहती हैं तो उन्हें प्रमाणपत्र देना होगा। उनके पास 25 मई 2017 को स्थानीय सक्षम प्राधिकार द्वारा जारी प्रमाणपत्र पहले से है। लेकिन उन्हें बताया गया कि प्रमाणपत्र अद्यतन होने चाहिए। इसके लिए विश्वविद्यालय ने 30 मार्च 2019 या फिर इसके बाद जारी प्रमाणपत्र ही मान्य होंगे।

राखी का कहना है कि यह जानकारी मिलने के बाद कि दाखिले के लिए अद्यतन प्रमाण पत्र देने ही होंगे, सो उन्होंने अपने जिले में विभिन्न पदाधिकारियों के पास प्रमाणपत्र के लिए चक्कर लगाने लगीं। लेकिन अधिकारियों ने पहले तो चुनाव का बहाना बनाया और बाद में घूमने जाने का बहाना बनाया ।
ध्यातव्य है कि यह पहला मौका नहीं है जब दिल्ली विश्वविद्यालय में ओबीसी व अन्य आरक्षित वर्गों के छात्र/छात्राओं को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। पिछले वर्ष भी ऐसे हालात थे। इस संबंध में एक विस्तृत खबर फारवर्ड प्रेस द्वारा 21 मई 2018 को एक विस्तृत खबर प्रकाशित की गयी थी। इसका शीर्षक था – दिल्ली विश्वविद्यालय : ओबीसी आवेदकों की कोई सुनने वाला नहीं!
तब दिल्ली विश्वविद्यालय के डीन, छात्र कल्याण ने फारवर्ड प्रेस से बातचीत में कहा था कि विश्वविद्यालय के द्वारा ओबीसी छात्र/छात्राओं की सहायता के लिए एक कोषांग का गठन किया गया है। साथ ही यह भी कहा था कि जिनके पास गैर क्रीमीलेयर का अद्यतन प्रमाणपत्र नहीं है, वे चाहें तो आयकर रिटर्न की प्रति भी दे सकते हैं।
बहरहाल, विश्वविद्यालय के तमाम दावों के बावजूद ओबीसी वर्ग के छात्र/छात्राओं की मुश्किलें कम नहीं हो रही हैं। बेहतर तो यह हो कि जिस तरीके से अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति वर्ग के छात्र/छात्राओं को जाति संबंधी अद्यतन प्रमाणपत्र देने के मामले में राहत दी गयी है, ओबीसी वर्ग के छात्र/छात्राओं को भी मिले।
(दिल्ली विश्वविद्यालय में नामांकन के दौरान अगर आपके अथवा आपके के किसी परिचित के साथ नाइंसाफी होती है तो फारवर्ड प्रेस को अवगत करायें। मोबाइल – 7004975366, ईमेल – editor@forwardpress.in )
(कॉपी संपादन : सिद्धार्थ)
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