दिल्ली विश्वविद्यालय में स्नातक काेर्सों में नामांकन की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा इस बार सामान्य वर्ग के छात्र/छात्राओं के नामांकन की प्रक्रिया को सरल बनाने का दावा किया जा रहा है। लेकिन दूसरी ओर ओबीसी वर्ग के छात्र/छात्राओं के नामांकन को जटिल बनाया जा रहा है। ओबीसी छात्र-छात्राओं को कहा जा रहा है कि उनका नामांकन आवेदन तभी स्वीकृत होगा जब वे अपने सभी दस्तावेज एक साथ जमा करेंगे। इन दस्तावेजों में अद्यतन मार्कशीट, ओबीसी वर्ग प्रमाण पत्र और गैर क्रीमीलेयर प्रमाण पत्र आदि शामिल हैं। कोई एक दस्तावेज किसी कारण उपलब्ध नहीं रहने की स्थिति में नामांकन नहीं हो सकेगा। यह नियम केवल ओबीसी वर्ग के छात्र/छात्राओं के लिए ही है।

सवाल यह है कि प्राय: सभी विश्वविद्यालय में अन्डरटेकिंग के नियम के तहत नामांकन लेने की व्यवस्था होती है फिर दिल्ली विश्वविद्यालय में क्यों नहीं? अंडरटेकिंग का अर्थ है कि अगर किसी अभ्यर्थी के पास कोई विशेष दस्तावेज नहीं है, अथवा पुराना है तो वह लिखित रूप में यह वादा करता है कि वह एक निर्धारित अवधि में संबंधित दस्तावेज जमा कर देगा। अगर वह ऐसा करने में असफल रहता है तो उसका नामांकन रद्द कर दिया जाता है। इसके तहत कॉलेज अभ्यर्थियों को एक महीने से छह महीने तक का समय देते हैं।
बीते सोमवार को दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा शुरू हुए काउंसिलिंग में भी ओबीसी वर्ग के छात्र/छात्राओं के नामांकन का सवाल उठा। एक छात्रा ने सवाल पूछा कि मैं हिमाचल प्रदेश से हूं और मेरे पास ओबीसी का प्रमाणपत्र है। क्या दाखिले में मुझे ओबीसी को मिलने वाले आरक्षण का लाभ मिल सकता है? इसके जवाब में उसे बताया गया कि जिस जाति से वह संबंध रखती हैं, यदि वह केंद्रीय सूची में शामिल है तो उसे आरक्षण का लाभ जरूर मिल सकता है। लेकिन साथ ही यह भी कहा गया कि ओबीसी का प्रमाण 31 मार्च 2017 के पहले का न हो और यह भी कि गैर क्रीमीलेयर प्रमाण पत्र 31 मार्च 2018 के बाद जारी किया गया हो। अगर वह पहले का हुआ तो किसी भी हालत में उसका नामांकन नहीं किया जाएगा।

दिल्ली विश्वविद्यालय में नामांकन से जुड़ी एक पदाधिकारी ने इस संवाददाता को भी कहा कि यदि कोई ओबीसी रिजर्वेशन का लाभ लेना चाहता है तो इस बार उसे ओबीसी प्रमाण पत्र और गैर क्रीमीलेयर का प्रमाण हर हाल में नामांकन के समय देना ही होगा। अन्यथा उनका नामांकन नहीं लिया जाएगा।
सर्वविदित है कि देश भर में फरवरी-मार्च में बोर्ड की परीक्षाएं शुरू हो जाती हैं। ऐसे में छात्र-छात्राएं परीक्षा में व्यस्त रहते हैं। ऐसे में अधिकांश के पास पुराने प्रमाण पत्र होते हैं।
दिल्ली विश्वविद्यालय में ओबीसी के हितों की लड़ाई लड़ने वाले प्रो. हैनी बाबू के मुताबिक ओबीसी वर्ग के छात्र-छात्राओं को यदि अन्डरटेकिंग के तहत नामांकन का अधिकार नहीं दिया जा रहा है तो इसका सीधा मतलब यह है कि विश्वविद्यालय प्रशासन उन्हें उनके अधिकार से वंचित कर देना चाहता है।
ओबीसी वर्ग के छात्र-छात्रा अपने साथ हो रहे इस नाइंसाफी की शिकायत भी नहीं दर्ज करा सकते हैं। विश्वविद्यालय प्रशासन ने दलित, आदिवासी, ओबीसी वर्ग के छात्र-छात्राओं के शिकायतों के निवारण के लिए अलग से कोई व्यवस्था नहीं की है। हालांकि प्रशासन का कहना है कि उसने समान अवसर प्रकोष्ठ (इक्वल ऑपर्चयूनिटी सेल, दूरभाष 011-27662602) बनाया है। लेकिन यह सेल केवल विकलांग छात्र-छात्राओं की सहायता के लिए कार्य करता है। इसके अलावा विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा कहा गया है कि अपने साथ किसी तरह की नाइंसाफी व परेशानी के बारे में छात्र-छात्रा ज्वायंट डीन, स्टूडेंट्स वेलफेयर के कार्यालय (दूरभाष : 011-24116178) से संपर्क कर सकते हैं। जब इस संवाददाता ने स्टूडेंट्स वेलफेयर कार्यालय से संपर्क किया तो बताया गया कि ओबीसी के आरक्षण व इससे जुड़े मसलों के लिए अलग से कोई व्यवस्था नहीं है।

आखिर दिल्ली विश्वविद्यालय ओबीसी वर्ग के छात्र-छात्राओं के लिए यह नियम क्यों लागू करना चाहता है? अन्य पिछड़ा वर्ग से संबंध रखने वाले दिल्ली विश्वविद्यालय के ही एक अध्यापक बताते हैं कि यूनिवर्सिटी प्रशासन में बैठे लोग ओबीसी आरक्षण को केवल 27 फीसदी तक सीमित कर देना चाहते हैं। वे नहीं चाहते हैं कि अधिक अंक लाने वाले ओबीसी विद्यार्थियों का नामांकन समान्य श्रेणी में हो। यही कारण है कि वे इस तबके से आने वाले विद्यार्थियों को किसी भी प्रकार से परेशान कर हतोत्साहित करना चाहते हैं। वे कहते हैं ओबीसी सर्टिफिकेट के लिए अंडरटेकिंग हर हाल में ली जानी चाहिए। अंडरटेकिंग नहीं लेने जैसे नियमों की कोई वैधानिकता नहीं है। वे कहते हैं कि कॉलेज यदि किसी छात्र/छात्रा का नामांकन अंडरटेकिंग के आधार पर नहीं लेता तो उसे इसका खुलकर विरोध करना चाहिए। दलित-बहुजन हितों की परवाह करने वाले छात्र-संगठनाें को भी इसके लिए आगे आना चाहिए।
डेमोक्रेटिक स्टूडेंट्स यूनियन, दिल्ली विश्वविद्यालय के संयोजक सुशील कुमार का भी कहना है कि विश्वविद्यालय ओबीसी के प्रवेश को रोकना चाहता है। इसी कारण से ऐसे सख्त नियम बनाये गये हैं। देश के कई विश्वविद्यालयों में प्रोविजनल सर्टिफिकेट अथवा पुराने दस्तावेज के आधार पर नामांकन होते हैं। अद्यतन दस्तावेज जमा करने के लिए समय दिया जाता है। लेकिन दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा कोई समय नहीं दिया जाना ओबीसी युवाओं को उनके अधिकार से वंचित किया जाना है। सुशील ने कहा कि जल्द ही वे अपने संगठन और उन सभी संगठन जो सामाजिक न्याय के लिए कार्य करती हैं, दिल्ली विश्वविद्यालय के खिलाफ अभियान चलाएंगे ताकि ओबीसी छात्र-छात्राओं के नामांकन में कोई परेशानी न खड़ी की जा सके।
महात्मा ज्योतिबा फुले स्टडी सर्किल के बैनर तले ओबीसी छात्र/छात्राओं के लिए आवाज उठाने वाले एडवोकेट आेमकार सिंह कुशवाहा ने कि पिछले साल भी दिल्ली विश्वविद्यालय में ओबीसी स्टूडेंट्स का बैकलॉग रह गया था और 8-10 हजार ओबीसी छात्र/छात्राओं का नामांकन नहीं हो सका था। तब विश्वविद्यालय ने कट ऑफ मार्क्स के नाम पर ऐसा किया था। इस बार विश्वविद्यालय दस्तावेज के नाम पर ऐसा कर रहा है। उन्होंने कहा कि अभी हाल ही में क्रीमीलेयर की सीमा 6 लाख से बढ़ाकर 8 लाख रुपए की गई है। अधिकांश बच्चों के पास पुराना प्रमाण पत्र होगा। विश्वविद्यालय प्रशासन में बैठे आरक्षण विरोधी यह समझते हैं कि ओबीसी बच्चे चाहें भी तो इतनी जल्दी क्रीमीलेयर का प्रमाण पत्र हासिल नहीं कर सकेंगे। ओमकार ने बताया कि विश्वविद्यालय की इस मनमानी के खिलाफ आगामी 3 जून 2018 को विश्वविद्यालय के शंकरलाल सभागार में एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया है। इसमें ओबीसी के छात्र/छात्राओं के समस्याओं पर विचार किया जाएगा। साथ ही केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय से हस्तक्षेप करने की मांग की जाएगी।
(दिल्ली विश्वविद्यालय में नामांकन के दौरान अगर आपके अथवा आपके के किसी परिचित के साथ नाइंसाफी होती तो फारवर्ड प्रेस को अवगत करायें। मोबाइल – 7004975366, ईमेल – editor@forwardpress.in )
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