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महाराष्ट्र में आदिवासी महिलाओं ने कहा– रावण हमारे पुरखा, उनकी प्रतिमाएं जलाना बंद हो

उषाकिरण आत्राम के मुताबिक, रावण जो कि हमारे पुरखा हैं, उन्हें हिंसक बताया जाता है और एक तरह से हमारी संस्कृति को दूषित किया जा रहा है। यह ब्राह्मणवादी साजिश है, जिसके कारण हमारी संस्कृति में जातिवाद का जहर घोला जा रहा है, जबकि हम सभी मानते हैं कि हम कोयतुर हैं। हमारी संस्कृति में जातिगत भेदभाव नहीं है

गत 2 सितंबर, 2022 को महाराष्ट्र के गोंदिया जिले के समाहरणालय परिसर का दृश्य अलहदा था। अनेक महिलाएं “रावण दहन बंद करो” और “आदिवासी को वनवासी कहना बंद करो” की मांग कर रहे थे। आदिवासी भाषा शोध संस्थान (धनेगाव), बिरसा महिला ब्रिगेड, रानी दुर्गावती महिला मंडल और नेशनल आदिवासी पीपुल्स फेडरेशन के संयुक्त तत्वावधान में वे जिलाधिकारी को एक ज्ञापन देने गए थे। इसका नेतृत्व गोंड भाषा की अध्येता व लेखिका ऊषाकिरण आत्राम ताराम ने किया।

उन्होंने बताया कि भारत में रावण दहन किया जाता है। यह बेहद गंभीर बात है क्योंकि हम आदिवासी रावण को अपना पुरखा, अपना सम्राट और विद्ववान मानते हैं। हम उनकी पूजा करते हैं और उनके प्रति हमारे लिए मन में श्रद्धा है। लेकिन उच्च जातियों के लोग उन्हें दुष्ट, व्याभिचारी, अहंकारी बताते हैं। साथ ही, उन्हें हेय दृष्टि से देखते, समझते और नीच मानते हैं। वे रावण की प्रतिमा जलाते हैं और गाली-गलाज करते हैं। वे जब ऐसा करते हैं तो हमें दुख होता है और हमारी धार्मिक भावनाओं पर आघात पहुंचाता है। 

ताराम ने कहा कि रावण जो कि हमारे पुरखा हैं, उन्हें हिंसक बताया जाता है और एक तरह से हमारी संस्कृति को दूषित किया जा रहा है। यह ब्राह्मणवादी साजिश है, जिसके कारण हमारी संस्कृति में जातिवाद का जहर घोला जा रहा है, जबकि हम सभी मानते हैं कि हम कोयतुर हैं। हमारी संस्कृति में जातिगत भेदभाव नहीं है। लेकिन बाहरी संस्कृति वाले हमारे लोगों पर बुरा प्रभाव डालने की कोशिश कर रहे हैं। 

गोंदिया जिला समाहरणालय परिसर में विरोध करतीं आदिवासी महिलाएं

उन्होंने आगे कहा कि रावण बुरे नहीं थे। लेकिन समाज में अपराधी, फरेबी, धोखेबाज, बलात्कारी, खूनी, डाकु, चोर और लुटेरे हैं, जिनसे महिलाएं, आदिवासी, दलित, गरीब सभी लोग भयभीत हैं। उन को सजा क्यों नहीं दी जाती है। क्या किसी अपराधी की प्रतिमा को हर साल जलाने का रिवाज है? अभी हाल ही में राजस्थान में घुंट भर पानी के वास्ते नौ साल के बच्चे इंद्र मेघवाल का खून कर दिया गया? क्या यह समाज जो रावण की प्रतिमा जलाता है, वह इंद्र मेघवाल के हत्यारे को ऐसे ही सजा देगा? फिर रावण ने तो कुछ भी ऐसा नहीं किया। इसका कोई प्रमाण नहीं है। वह हम आदिवासियों का प्रिय पुरखा है। इसलिए रावण दहन बंद होना चाहिए।

ताराम ने कहा कि दूसरा मुद्दा है महाराष्ट्र में हम आदिवासियों को आरएसएस जबरदस्ती “वनवासी” कहकर अपमानित कर रहा है। जबकि हम तो इस धरती के मूलनिवासी हैं। फिर हमे वनवासी संबोधन से अपमानित करना, हमें नीचा दिखाने की कोशिश क्यों की जाती है? यह शब्द हमारे लिए गाली के समान है और हम इसके उपयोग पर प्रतिबंध लगाने की मांग करते हैं। साथ ही महाराष्ट्र में जितने आदिवासी वनवासी आश्रम स्कूल हैं, उन्हें गोंडवाना आश्रम कहा जाय। 

ताराम ने कहा कि सभी संगठनों के लोगों ने मिलकर यह ज्ञापन तैयार किया है, जिसे जिलाधिकारी को सौंपने के अलावा हमने देश के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, महराष्ट्र के मुख्यमंत्री सहित सभी को भेजा है। इस मुहिम में बिरसा महिला ब्रिगेड की अध्यक्ष मालती किनाके, रानी दुर्गावती महिला मंडल की अध्यक्ष गीता सलामे, गीता तुमराम, लता मडावी, वनिता सलामे, हेमलता आहाके, योगीता गेडाम, सरीता भलावी, बिंदु कोडवते, भावना ऊईके, बबीता कुंबरे, मनिषा कुंबरे, लक्ष्मी फरदे आदि शामिल रहे। 

(संपादन : नवल/अनिल)


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