मॉब लिंचिंग की घटनाओं को झेलने वाले लोगों की दास्तान भले ही लोगों के पास पत्र-पत्रिकाओं एवं वीडियो के माध्यम से पहुंची हो, लेकिन साहित्य की सशक्त विधा कहानी अब तक अछूती थी, जिस कमी को अब पूरा किया है जावेद इस्लाम ने। वे झारखंड के कथाकार एवं पत्रकार हैं। बीते 9 जून को उत्तर प्रदेश के मऊ जिले के मेउड़ी कलां गांव में उन्हें उनकी पुस्तक ‘रामपुर का रूस्तम’ के लिए सम्मानित किया गया।
उन्हें यह सम्मान ‘गाँव के लोग’ सोशल एंड एजुकेशनल ट्रस्ट की ओर से दिया गया। ‘गांव के लोग’ पत्रिका के संपादक रामजी यादव ने बताया कि श्री इस्लाम को पत्रिका में प्रकाशित उनकी कहानी ‘रामपुर का रूस्तम’ के लिए सम्मानित किया गया। इसके तहत उन्हें शाल, स्मृति चिन्ह, सम्मान पत्र और पाँच हज़ार रुपए प्रदान किए गए। उनका सम्मान करने वालों में लखनऊ से आए समाजसेवी सदानंद कुशवाहा, कथाकार शिवमूर्ति और गोरखपुर से आए वरिष्ठ कथाकार मदन मोहन भी शामिल रहें।
बताते चलें कि मोहम्मद अखलाक से लेकर रकबर खान तक मॉब लिंचिंग की घटनाओं में 134 में से 68 से ज्यादा लोगों की जानें जा चुकी हैं। लगभग 4 साल होने जा रहे हैं और अखलाक के मुजरिमों को अभी भी सजा नहीं मिल पाई है। अगर ध्यान दिया जाय तो ऐसी घटनाओं के शिकार सिर्फ मुसलमान ही नहीं होते बल्कि दलित-बहुजन भी होते हैं।

कथाकार शिवमूर्ति ने कहा कि ‘जावेद इस्लाम की कहानियां सच से मुंह नहीं छिपातीं बल्कि उनका सामना करती हैं।’ उन्होंने ‘रामपुर का रुस्तम’ की चर्चा करते हुए कहा कि ‘जावेद इस्लाम ने इस समय के सबसे नाज़ुक सवाल को उठाया है। यह कहानी बताती है कि भारत में हिन्दू-मुस्लिम एकता और भाईचारे की नींव को खोखला करने की दक्षिणपंथियों की साजिश किस तरह एक खतरनाक मंजिल तक जा पहुंची है कि आज गोमांस के शक में पूरी की पूरी भीड़ किसी की हत्या तक कर डालती है। जावेद इस्लाम ने इस संवेदनशील मुद्दे को अपनी कहानी का विषय बनाकर एक समकालीन विमर्श को जन्म दिया है। यह कहानी अपने दृष्टिकोण में तो उल्लेखनीय है ही, साथ ही इतनी सहजता से इन्होंने बिना क्लिष्ट हुए, बिना कठिन हुए, बिना शब्दों और भाषा का आतंक पैदा किए पात्र के मन में जो डर है, दूसरे समुदाय को लेकर जो शंकाएँ हैं उसे अत्यंत सहज और विश्वसनीय ढंग से प्रस्तुत किया है।’
कहानी का पाठ करते हुये जावेद इस्लाम ने कहा कि ‘मैं कोई सिद्धहस्त लेखक नहीं हूँ इसलिए मेरी कहानियों में कोई कलात्मक ऊंचाई नहीं मिलेगी। लेकिन आस-पास जो घटनाएँ घट रही हैं उनकी अनदेखी करना किसी भी संवेदनशील व्यक्ति के लिए मुश्किल है।’
मुख्य अतिथि के रूप में जाने-माने कथाकार और उपन्यासकार मदन मोहन ने कहा कि ‘गाँव के लोग’ पत्रिका यद्यपि मेरे पास किसी न किसी माध्यम से आती रहती है लेकिन जावेद की कहानी जिस अंक में थी वह मुझे नहीं मिल पाई। बाद में मैंने कहानी मंगाकर पढ़ा और सचमुच अवाक रह गया कि बिलकुल जो हमारे दौर में घट रहा है उस पर इतनी बढ़िया कहानी लिखी जा सकती है। मेरा मानना है कि जावेद इस्लाम एक सिद्धहस्त लेखक हैं और उन्हें अच्छी तरह पता है कि किस विषय को कहाँ से कैसे उठाना चाहिए और किस तरह उसका निर्वाह करना चाहिए।’ सच कहा जाये तो किसी उत्पीड़ित की हकीकत बयान करना हो तो उसके लिए विद्वान् होने की जरूरत नहीं हैं अपितु अपने आपको उस व्यक्ति की जगह पर खड़ा होकर महसूस करना होगा, उसकी बचैनी, छटपटाहट, असुरक्षा, टूटते विश्वाश के धागे, एवं उसके शरीर से निकले लहू को अपना ही लहू मानना होगा। यही किसी कहानीकार के लिए थाती है, बाकी कागज का ढेर।
हिन्दू मुस्लिम संबंधों में आये दरारों एवं उन्हें पाटने की आवश्यकता पर जोर देते हुए कवि-आलोचक बलभद्र ने कहा कि ‘यह दो समुदायों के बीच उनके दस्तक की कहानी है। कहानी के शुरू में हिन्दू के घर में मुस्लिम की दस्तक है और अंत में मुस्लिम के घर में हिन्दू की दस्तक है। लेकिन यह दोस्ती और भाईचारे की दस्तक है जहां रिश्तों की गर्मजोशी और अधिकारबोध है। रुस्तम का अंतर्द्वंद्व बहुत अलग है जो इस निजाम द्वारा पोषित हत्यारों के द्वारा की जा रही मॉब लिन्चिंग से वह बुरी तरह डरा हुआ है। उसे मालूम है मांस गाय का नहीं है लेकिन बछिया भी उसी की गायब हुई है।’
इस मौके पर ‘गाँव के लोग’ सम्मान समिति के अध्यक्ष जाने-माने ग़ज़लकर बी. आर. विप्लवी, रामप्रकाश कुशवाहा, जयप्रकाश धूमकेतु बलिया से आशुतोष यादव, विनोद कुमार विमल और इलाहाबाद से जगदीश मौर्य समेत सौ से अधिक ग्रामीण लोग उपस्थित थे। अतिथियों का स्वागत और धन्यवाद ज्ञापन हरीन्द्र प्रसाद ने किया। जबकि मंच का संचालन सम्मान समिति की संयोजक/महासचिव तथा ‘गाँव के लोग’ की कार्यकारी संपादक अपर्णा ने किया।
(कॉपी संपादन : नवल)
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