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आगामी आयोजन : गांधी पर विचार और बौद्धिक विमर्श में आरएसएस की नई सेंधमारी

बौद्धिक और अकादमिक जगत में जहां महात्मा गांधी विश्वविद्यालय खुद ही बापू की प्रासंगिकता को साबित करने के जतन में है तो सत्तारूढ़ बीजेपी की संस्था आरएसएस की कोशिश है कि पाठ्यक्रमों को बदलने के साथ अब समय आ गया है ये बताने का कि प्रतियोगी परीक्षाओं में कैसे सवाल पूछने चाहिए! ये और कुछ अन्य आगामी आयोजनों की खबर दे रहे हैं कमल चंद्रवंशी

गांधी को भी प्रासंगिक होना होता है!

भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद] नई दिल्ली और महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा (महाराष्ट्र) ने संयुक्त रूप से महात्मा गांधी की प्रासंगिकता को लेकर 20 अगस्त 2019 से तीन दिवसीय राष्ट्रीय परिसंवाद आयोजित किया है। ‘गांधी और उनकी समसामयिक प्रासंगिकता : समाज, संस्कृति और स्वराज’ का इसका प्रमुख विषय है। इसमें गांधी जी के मोहन से महात्मा बनने, उनकी सामाजिक और ऐतिहासिक दृष्टि, खादी, अस्पृश्यता निवारण, हिंदू-मुस्लिम एकता, किसानों और मजदूरों के प्रति उनके नजरिए को समझा जा सकेगा।

इसके अलावा समकालीन भारत के संदर्भ में सांप्रदायिकता और धर्मनिरपेक्षता पर गांधी के विचारों पर विमर्श, संवैधानिक संस्थाओं के कार्यक्षेत्र और कार्यशैली की गांधीवादी आलोचना, भारत की राजनीति और संस्कृति पर गांधी का प्रभाव, हिंसा और गांधीवादी हस्तक्षेप, समकालीन भारत की पत्रकारिता और गांधी की पत्रकारिता विरासत, भाषायिक एकता और देशज साहित्य के प्रश्न जैसे उपविषय भी परिसंवाद के केंद्र में होंगे। इसके अलावा अन्य विषय हैं- गांधी के परिवर्ती जीवन का समाज में विस्तार, उनका नारीवादी विमर्श, सौंदर्य दृष्टि, गांधी और समकालीन भारत में प्रतिरोध की संस्कृति, गांधी और भारतीय बौद्धिक वर्ग, गांधी और अंतरराष्ट्रीयतावाद, गांधी और राष्ट्रवाद, सभ्यता-विमर्श और गांधी।

वर्धा स्थित महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय परिसर में स्थापित गांधी की प्रतिमा

आयोजकों में से एक डॉ. मनोज कुमार राय ने फारवर्ड प्रेस को बताया कि महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. जी. गोपीनाथन, प्रो. गिरीश्वर मिश्र, विभूति नारायण राय, दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. दिनेश सिंह, प्रो. आनंद प्रकाश, समाज शास्त्री प्रो. आनंद कुमार, चंडीगढ़ से प्रो. सुधीर कुमार,बनारस से विश्वनाथ मिश्र, शैलेश मिश्र, कोलकाता से डॉ. देवमित्र कर, पूर्वोत्तर से डॉ. सोनिया राणा, शिमला से प्रो. हितेंद्र पटेल, भागलपुर से डॉ. गिरीश चन्द्र पांडे,जयपुर से प्रो. वशिष्ठ, भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली के अध्यक्ष प्रो. जामखेड़कर, प्रो. कुमार रत्नम, मुंबई से प्रो. अशोक मोदक, नमिता निम्बारकर, बलिया से डॉ. शुभ नीत और गुजरात से प्रो. पुष्प मोतियानी आदि शिरकत करेंगे।

आयोजकों का कहना है कि परिसंवाद कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य वर्तमान परिप्रेक्ष्य में गांधी के विचार एवं योगदानों की प्रासंगिकता को सुनिश्चित करना है, क्योंकि किसी भी महान विचारक और अतीत में एक प्रभावी राजनीतिक शक्ति के रूप में सक्रिय रहे ऐतिहासिक पात्र की प्रासंगिकता को समकालीन समाज अपनी दृष्टि से व्याख्यायित करता है। समकालीन समाज और राजनीति में उसे अपनी प्रासंगिकता सिद्ध करनी होती है। हर विचार की मान्यताएँ और धारणाएँ उसके देश और काल में विद्यमान राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और बौद्धिक प्रश्नों के आलोक में निर्मित होती हैं।

डॉ. मनोज राय कहते हैं कि तेजी से बदलते इस भौतिक समाज में हर चीज़ के अस्तित्व पर आज प्रश्नचिन्ह लगाया जा रहा है, अतः हमारा बौद्धिक विमर्श विचारकों के विचारों की वर्तमान उपयोगिता पर प्रश्न उठाने को तैयार है। ऐसे में गांधी के योगदान, कार्य और नीतियाँ, जैसे- स्वतंत्रता आंदोलन में उनकी सक्रियता, सत्याग्रह, रचनात्मक कार्यक्रम, सर्वोदय, नारी संबंन्धित दृष्टिकोण, इतिहास दृष्टि, समकालीन महापुरुषों से संबंध आदि को उनके जीवनकाल में देखने के अलावा उनको विश्लेषित करने के लिए ऐसे विमर्शों का होना हो जाता है। कार्यक्रम में देश के लगभग 47 प्रतिष्ठित विद्वानों सहित विश्वविद्यालय के सभी पूर्व कुलपति शिरकत कर रहे हैं।

कार्यक्रम के संरक्षक महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. रजनीश शुक्ल और भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद के अध्यक्ष प्रो. अरविंद प्र. जामखेड़कर हैं। आयोजन समिति के अध्यक्ष प्रो. कुमार रतनम् हैं जो कि इतिहास अनुसंधान परिषद के सदस्य सचिव हैं तथा सह अध्यक्ष दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलसचिव प्रो. कृष्ण कुमार सिंह हैं। विश्वविद्यालय के सभी संकायों के अधिष्ठाता इस कार्यक्रम के परामर्शदाता समिति में सम्मिलित हैं। कार्यक्रम के समन्वयक डॉ. विनोद कुमार शर्मा हैं जो इतिहास अनुसंधान परिषद के सहायक निदेशक हैं। यह कार्यक्रम हिन्दी विश्वविद्यालय के गालिब सभागार तथा बापू कुटी सेवाग्राम में आयोजित होगी।

कार्यक्रम के बारे में ज्यादा जानकारी के लिए डॉ. मनोज राय को 9404822608 फोन नंबर पर संपर्क किया जा सकता है।

आरएसएस का ज्ञानोत्सव

शिक्षा में भारतीयता और प्रतियोगी परीक्षाओं में पूछे जाने वाले सवालों को लेकर धार्मिक संगठन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) से जुड़ी संस्था शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास का ज्ञानोत्सव-2076 राष्ट्रीय कृषि विज्ञान केंद्र देव प्रकाश शास्त्री मार्ग स्थित सुब्रमण्यम सभागार में 17-18 अगस्त को हो रहा है। ज्ञानोत्सव नाम से तकरीबन हर साल यह जलसा होता है जिसमें आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत हिस्सा लेते हैं। आरएसएस सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी का मातृ संगठन है जो सरकार की राजनीतिक और सांस्कृतिक धुरियों की दशा-दिशा तय करता है।

जाहिर है, इसलिए भी अमूमन माना जाता है कि मौजूदा सत्तारुढ़ दल आरएसएस की सोच थोपने का काम समय-समय पर करता है। वह देश के 100 फीसद केंद्रीय विश्वविद्यालयों में इस विचारधारा से ताल्लुक रखने वालों को प्रमुख पदों पर आसीन कर चुका है। साथ ही, स्कूली और कॉलेज पाठ्यक्रमों में मनमाफिक बदलाव कर रहा है। इसी के तहत सरकार ने हाल में दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ाए जाने वाले दलित, बहुजन और प्रगतिशील साहित्य से जुड़े कई विषयों या महान लोगों की जीवनियों से जुड़े अध्यायों को कोर्स से बाहर कर दिया है। आरएसएस की नजर अब देश में उच्च प्रतियोगी परीक्षाओं में पूछे जाने वाले सवालों के इर्दगिर्द है और वह इनको लेकर एक ऐसा प्रोपेगेंडा के शोर को पैदा करने की फिराक में है जिसे वह आगे चलकर कथित तौर पर राष्ट्रीय विमर्श से निकले परिणाम कहने की सहूलियत में हो सकता है।

यह भी पढ़ें – हिंदुत्व : ब्राह्मणवाद का राजनैतिक संस्करण 

इस बार के मेहमानों में मोहन भागवत के अलावा मानव संसाधन मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक, योगगुरु बाबा रामदेव भी हैं। इनके अलावा केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह, प्रणव पंड्या और पतंजलि पीठ वाले बालकृष्ण भी शिरकत करेंगे। ‘भारत में प्रतियोगी परीक्षाएं-राष्ट्रीय विमर्श’ पर 18 अगस्त को सुबह 10 बजे से चर्चा होगी जिसमें विशेष मेहमान के तौर पर जितेंद्र सिंह शामिल होंगे।  न्यास के राष्ट्रीय सचिव अतुल कोठारी हैं जो मानते हैं कि “हमारा देश आध्यात्मिक संस्कृति का वारिस है जिसमें कण-कण में परमात्मा का अंश माना जाता है। ऐसे में जातिवाद, प्रांतवाद भाषावाद सहित नारी-पुरुष, अमीर-गरीब और ऊंच-नीच वाले भेदभाव हमारी संस्कृति का हिस्सा नहीं हो सकते हैं।” 

कार्यक्रम 17 अगस्त को शाम 6 बजे शुरू होगा।

छायावाद के सौ साल

‘छायावाद के सौ बरस’ विषय पर दिल्ली में सत्यवती महाविद्यालय के हिंदी विभाग और रज़ा फाउंडेशन की ओर से 20-21 अगस्त को इसी कालेज के संगोष्ठी कक्ष में दो दिन की राष्ट्रीय विचार संगोष्ठी रखी गई है। संगोष्ठी में छायावाद के ऐतिहासिक योगदान और भाषा संबंधी विवेक को लेकर भी चर्चा की जाएगी। पहले दिन के सत्र में अशोक वाजपेयी, चौथीराम यादव, माधव हांडा, अनामिका, गीत चतुर्वेदी शिरकत करेंगे जबकि दूसरे दिन के प्रमुख वक्ताओं में उदय प्रकाश, आशुतोष कुमार, रामेश्वर राय, सुधीर प्रताप सिंह और अच्युतानंद मिश्र होंगे।

छायावादी दौर के प्रमुख रचनाकार जयशंकर प्रसाद, सुमित्रानंदन पंत, महादेवी वर्मा और निराला

हिंदी साहित्य में छायावादी कविता का दौर अमूमन 1918 से लेकर 1936 के बीच माना जाता है। आयोजन समिति के एक संयोजक ने कहा, ‘जयशंकर प्रसाद, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, सुमित्रानंदन पंत, महादेवी वर्मा इस काव्य धारा के प्रमुख नाम हैं जिनका हिंदी साहित्य पर गहरा प्रभाव रहा है।’ 

इस संगोष्ठी के लिए निशुल्क पंजीकरण कराया जा सकता है। विभाग इसके लिए प्रतिभागियों को कोड जारी करेगा। अगर आप संगोष्ठी में शिरकत करना चाहते हैं तो praveenkumar94@yahoo.com पर ईमेल के जरिए संपर्क कर सकते हैं। कोड मिलने के बाद प्रतिभागी को संगोष्ठी में शिरकत करने की इजाजत दी जाएगी। बाद में हर पंजीकृत प्रतिभागी को प्रमाण पत्र दिए जाएंगे। इस संगोष्ठी में शिरकत के लिए मुकेश मानस, विदित अहलावत और प्रवीण कुमार से संपर्क किया जा सकता है जिनके मोबाइल नंबर क्रम से 9873134564, 9466493383 और 8800904606 हैं।

जैव प्रौद्योगिकी का कितना असर

समाज में जैव-प्रौद्योगिकी का दखल लगातार बढ़ता जा रहा है। उसका मनुष्य के जीवन और पर्यावरण पर लगातार असर हो रहा है। इसी विषय को लेकर दिल्ली विश्वविद्यालय के मैत्रेयी कालेज ने परिसर स्थित सभागार में “बायोटेक्नोलॉजी इन प्रजेंट इरा- इंपेक्ट ऑन ह्यूमन लाइफ एंड एनवायरमेंट” विषय पर 23 अगस्त को राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किया है।


आयोजकों के बताया कि सुबह के सत्र में एम्स की प्रो. सविता यादव आज की लाइफ स्टाइल, पर्यावरण और कैंसर पर विचार रखेंगी। इसी सत्र में आईआईटी दिल्ली के रसायन विभाग के प्रो. एस.के. खरे भी सम्मेलन को संबोधित करेंगे। दोपहर के सत्र में एडवांस मोबाइल टैक्नोलॉजी के मानव शरीर पर पड़ने वाले प्रभावों के बारे में जेएनयू पर्यावरण अध्ययन केंद्र के प्रो. पॉलराज आर. जानकारी देंगे।

इनके अलावा लाइफ साइंस अध्ययन से जुड़े जानकार, उद्योग जगत के प्रतिनिधि और साइंस फैकल्टी के विद्वान भी सम्मेलन में विचार साझा करेंगे। कार्यक्रम संयोजकों में एक डॉ. अनामिका सिंह ने बताया कि सम्मेलन में 200 से अधिक प्रतिभागी शिरकत करेंगे। कार्यक्रम की ज्यादा जानकारी के लिए अनामिका सिंह को 8826125568 के अलावा कमल शर्मा से 9958472567 पर संपर्क किया जा सकता है। कार्यक्रम सुबह साढे नौ बजे शुरू होगा और शाम पांच बजे तक चलेगा। मैत्रेयी कालेज के परिसर का सभागार न्यू आडिटोरियम के नाम से जाना जाता है जहां यह सम्मेलन आयोजित किया गया है।

हिंदुस्तानियत की नई जमीन

भारत में कुछ विचारक और रचनाकार हिंदुस्तानियत की सच्ची पाठशाला रहे हैं। इनमें एक नाम है फिराक गोरखपुरी साहब का। फिराक गोरखपुरी की सालगिरह के मौके पर प्रयागराज में जोश व फिराक लिटरेरी सोसाइटी ने 25 अगस्त को विशेष संवाद कार्यक्रम रखा है। यह कार्यक्रम स्वराज पीठ इलाहाबाद में होगा जो इलाहाबाद विश्वविद्यालय के महिला कालेज के पास स्थित है।

लेखक और विचारक प्रो. आलोक राय की अध्यक्षता में चलने वाले संवाद कार्यक्रम में प्रमुख वक्ता के तौर पर प्रो. अपूर्वानंद शामिल होंगे। भारतीय अस्मिता की हिफाजत के लिए  अपूर्वानंद इन दिनों सभा-गोष्ठियों और टीवी चर्चाओं के कारण काफी लोकप्रिय हैं। जाहिर है फिराक गोरखपुरी की रचनाएं और उनके विचार तब और भी प्रासंगिक हो जाते हैं जब देश में विविध संस्कृतियों के अस्तित्व को खत्म कर एक रंग में रंगने का प्रयास किया जा रहा है। फिराक ने भी पुरजोर आवाज में कहा है- 

“पैदा करें जमीन नई आसमां नया

इतना तो ले कोई असर दौरे कामनात।

अहले रज़ा में शाने बगावत भी हो ज़रा

इतनी भी जिंदगी ने हो पाबंदे रस्मियात।”

बहरहाल, फिराक के बहाने सही, आज जब प्रयागराज नाम खुद ही हिंदुस्तानियत के सवालों से घिरा है तब ये विचार गोष्ठी और भी अहम हो जाती है। लिटरेरी सोसाइटी में उमेश नारायण शर्मा अध्यक्ष हैं जबकि जफर बख्त और फख्ररूल करीम उपाध्याक्ष हैं। शहर के ज्यादा से ज्यादा लोग इसमें शामिल हों तो उनके लिए काफी उपयोगी होगा। प्रोग्राम शाम के पांच बजे शुरू होगा।

पालि का मौजूदा परिप्रेक्ष्य

उत्तर-भारत और खासकर बिहार में जब मंदिर-मठों की बात होती है तो संस्कृत और पालि भाषाओं की जरूर बात होती है। पालि भाषा के बहुआयामों को जानने के लिए जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय ने पालि साहित्य पर 31 अगस्त को एक दिन का राष्ट्रीय सेमिनार आयोजित किया है। यह आयोजन स्कूल ऑफ संस्कृत एंड इंडिक भाषा केंद्र ने आयोजित किया है। बताते चलें कि पालि प्राचीन बौद्ध विश्वविद्यालयों में पढ़ाई जाती थी।

कार्यक्रम के आयोजक और संस्कृत व पालि भाषा के प्रोफेसर सी. उपेंद्र राव ने बताया कि पालि में हमारे देश की बड़ी सांस्कृतिक धरोहर छिपी है। कहा जाता है कि बुद्ध ने पालि भाषा में ही अपने उपदेश दिए थे। 

यह भी पढ़ें : जनपद से महाजनपद 

कार्यक्रम की अधिक जानकारी के लिए प्रो. उपेंद्र से upendra@mail.jnu.ac.in पर मेल से या फिर उनके मोबाइल नंबर 9818969756 पर संपर्क किया जा सकता है। अगर आप प्रतिभागी के तौर पर शामिल होना चाहते हैं तो उपरोक्त मेल आईडी पर ही पालि भाषा के परिप्रेक्ष्य में लेख का सार संक्षेप 250 शब्दों में भेज सकते हैं जिसकी आखिरी तारीख 20 अगस्त है।

(कॉपी संपादन : नवल)


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लेखक के बारे में

कमल चंद्रवंशी

लेखक दिल्ली के एक प्रमुख मीडिया संस्थान में कार्यरत टीवी पत्रकार हैं।

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