उच्च शिक्षा के क्षेत्र में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को प्रवेश कम से कम मिले, इसकी पूरी कोशिश की जा रही है। इसका एक प्रमाण नीट के आधार पर ऑल इंडिया कोटे के तहत राज्याधीन काॅलेजों में ओबीसी वर्ग को आरक्षण नहीं दिए जाने से मिलता है। खास बात यह कि इस कोशिश को केंद्र में सत्तासीन उस भाजपा सरकार के संज्ञान में होने के बावजूद अंजाम दिया जा रहा है, जो वर्ष 2014 से ही ओबीसी के नाम पर राजनीति कर रही है। इसका परिणाम है कि हर साल देश भर के मेडिकल कॉलेजों में उन तीन हजार से अधिक सीटों पर सामान्य वर्ग के छात्रों का नामांकन हो रहा है, जिन पर ओबीसी वर्ग के छात्रों का नामांकन होना चाहिए। ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि ऑल इंडिया कोटे के तहत राज्याधीन कॉलेजों में स्नातक और स्नातकोत्तर कोर्सों में ओबीसी को आरक्षण नहीं दिया जा रहा है। यह हालत तब है जबकि देश भर के केंद्र सरकार के अधीन उच्च शिक्षण संस्थानों के सीटों में ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण दिए जाने का कानून लागू है।
मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया और स्वास्थ्य मंत्रालय, भारत सरकार की इस ओबीसी आरक्षण विरोधी नीति के संदर्भ में ऑल इंडिया फेडरेशन ऑफ अदर बैकवर्ड क्लासेज इम्प्लॉयज वेलफेयर एसोसिएशन (एआईओबीसी) के महासचिव जी. करूणानिधि ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर उनसे हस्तक्षेप करने की मांग की है।
ऐसे हो रहा ओबीसी के लिए आरक्षित सीटों का नुकसान
अपने पत्र में करूणानिधि ने कहा है कि शैक्षणिक सत्र 2017-18, 2018-19 और 2019-20 के दौरान स्नातक (यूजी-एमबीबीएस) और स्नातकोत्तर (पीजी) कोर्सों में ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण नहीं दिया गया है। बतौर उदाहरण वर्ष 2018-19 में मेडिकल कॉलेजों में स्नातकोत्तर कोर्सों में देश भर में ओबीसी के केवल 220 छात्रों का दाखिला हुआ। जबकि 27 प्रतिशत के हिसाब से कुल 7982 सीटों में से ओबीसी के लिए 2152 सीटों पर ओबीसी को आरक्षण मिलना चाहिए था। इसी प्रकार स्नातक कोर्स (एमबीबीएस) में केवल 66 सीटों पर ओबीसी वर्ग के छात्रों को आरक्षण मिला। जबकि कुल सीटों की संख्या 4061 थी और 27 प्रतिशत के हिसाब से 1096 सीटों पर ओबीसी छात्रों का दाखिला सुनिश्चित कराने की जिम्मेदारी भारत सरकार की थी।

प्रति वर्ष ओबीसी की तीन हजार से अधिक सीटों की हकमारी
केंद्र को कोर्ट के फैसले का इंतजार
गौरतलब है कि इस मामले को लेकर संसद में भी कई बार सवाल उठाए जा चुके हैं। बावजूद इसके कि सरकार कोई ठोस पहल करे, राज्यसभा सदस्य पी. विल्सन द्वारा उठाए गए सवाल के जवाब में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्द्धन ने अपने हाथ खड़े कर दिए हैं। 18 दिसंबर 2019 को अपने पत्र में उन्होंने साफ कहा है कि मेडिकल कॉलेजों में आरक्षण के सवाल को लेकर नियम मौजूद हैं। उनका कहना है कि ओबीसी के लिए आरक्षण की सीमा हर राज्य में अलग-अलग है और चूंकि स्टेट कोटे में आरक्षण तय करने का अधिकार राज्य सरकारों को है, इसलिए इस मामले में केंद्र कुछ नहीं कर सकता। डा. हर्षवर्द्धन ने कहा है कि केंद्र सरकार इसलिए भी अक्षम है क्योंकि इसी विषय पर एक मामला (सलोनी कुमारी बनाम स्वास्थ्य सेवा निदेशालय याचिका संख्या 596/2015) सुप्रीम कोर्ट में लंबित है।

डा. हर्षवर्द्धन, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री
एससी-एसटी को मिलता है अखिल भारतीय स्तर पर आरक्षण
कुल मिलाकर केंद्रीय मंत्री ने इस पूरे मामले से अपना पल्ला झाड़ लिया है। दरअसल, इस पूरे मामले में एक तथ्य यह है कि देश भर के मेडिकल कॉलेजों में अनुसूचित जाति को 15 प्रतिशत और अनुसूचित जनजाति को 7.5 प्रतिशत आरक्षण दिया जाता है। यह व्यवस्था 31 जनवरी 2007 को सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की खंडपीठ के फैसले के बाद हुई। इस खंडपीठ के अध्यक्ष तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश के. जी. बालाकृष्णन थे। उनके अलावा इस खंडपीठ में न्यायाधीश दलवीर भंडारी और न्यायाधीश डी. के. जैन थे। अपने फैसले में उन्होंने 28 फरवरी 2005 को सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए न्यायादेश की व्याख्या करते हुए कहा कि मेडिकल कॉलेजों/संस्थानों में प्रवेश परीक्षाओं में 50 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था हो तथा इसमें एससी व एसटी को क्रमश: 15 प्रतिशत और 7.5 प्रतिशत आरक्षण सुनिश्चित किया जाए।

पी. विल्सन, राज्यसभा सांसद
सुप्रीम कोर्ट की इस व्याख्या के बाद भारत सरकार ने पूरे देश में इसे लागू किया। लेकिन ओबीसी के मामले में अबतक ऐसा नहीं हो पाया है। सरकार का कहना है कि हर राज्य में ओबीसी के लिए आरक्षण अलग-अलग है। जबकि एससी व एसटी आरक्षण की सीमा भी हर राज्य में अलग है। मसलन उत्तर प्रदेश में एससी को 21 फीसदी व एसटी को 2 फीसदी, बिहार में एससी को 15 फीसदी व एसटी को 1 फीसदी आरक्षण है। दक्षिण भारत के राज्य तामिलनाडु में एससी को 18 फीसदी और एसटी को 1 फीसदी आरक्षण दिया जाता है। पूर्वोत्तर के राज्यों में एसटी को 80 प्रतिशत तक आरक्षण दिया जाता है।
बहरहाल, मूल सवाल यही है कि जब एससी-एसटी के मामले में अखिल भारतीय स्तर पर एकरूपता के आधार पर क्रमश: 15 फीसदी व 7.5 फीसदी आरक्षण का लाभ मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश परीक्षाओं में दिया जा सकता है फिर यही व्यवस्था ओबीसी के लिए क्यों नहीं हो सकती है।
सरकार के पास क्या है उपाय?
इस पूरे मामले में फेडरेशन के महासचिव जी. करूणानिधि ने पत्र के माध्यम से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अनुरोध किया है कि जिस तरीके से सरकार ने एससी व एसटी के मामले में सप्रीम कोर्ट में हलफनामा दिया था और उसी के आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने अखिल भारतीय स्तर पर आरक्षण सुनिश्चित करने का आदेश दिया था, उसी तर्ज पर वह एक याचिका दायर कर सकती है ताकि ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण मिल सके। लेकिन ऐसा नहीं कर सरकार कोर्ट के फैसले का इंतजार कर रही है और इस दरम्यान ओबीसी को हर साल तीन हजार से अधिक सीटों का नुकसान हो रहा है।
(संपादन : अनिल/सिद्धार्थ)
* आलेख परिवर्द्धित : 4 जुलाई, 2020 01:31 PM
बहुत अहम एक्सपोज।
OBC,SC,ST का संविधान द्वारा प्रदत्त आरक्षण खत्म करने का जो घात लगाकर कुचक्र चाल चल रही है यह इन पिंछडों के साथ बहुत भारी अन्याय है अतः इन वर्गों का दुखित दर्द BJP सरकार को ले डुबेगी आने वाले समय में यही बहुसंख्यक वर्ग BJP को सबक सिखायेंगे।।।
राइट सर अब कौन समझाए, अब इनके भी छुट्टी का नंबर आ गया है 🙏🙏
बहू संख्यक इन्हे बहुत अच्छे से जवाब देगा, का रास्ता दिखा कर 😡😡😡😡
Reservation in neet medical entrance test should be very neat clean.neet medical entrance test should concern reservation norm and parameter as decided by sc and mci act.neither it would be decreased or increase.as reservation is implemented for those student for other academic and professional ug and pg course,similarly implemented in neet medical entrance test.
आप लोग हिंदू हिंदू करते रहे और यह तथाकथित ब्राह्मण बानिया राजपूत जो स्वर्ण हिंदू हैं आपके हकों को ऐसे ही लूटते रहेंगे। आपने वोट दिए हैं ना केंद्र में मोदी जी को, जो खुद तो ओबीसी है ही नहीं। ओबीसी के नाम पर सत्ता हासिल की और अब ओबीसी को बड़े छूरे से काटने में लगे हुए हैं।
ओ बी सी को जागरूक होने की जरूरत है।सता में बैठे लोगobc का नाम लेकर उससे वोट ले लेते है और उसीobc का गला घोंटने का काम करते हैं।
आरक्षण को योग्यता का बहाना बनाकर दशकों से टाला जा रहा है !
इस लेख को लिखने में और अधिक शोध किये जाने तथा विस्तृत आलेख की जरुरत थी बहरहाल ठीक है लेख में भावनात्मकता ज्यादा है जबकि अधिक ठोस तथ्यों की आवश्यकता है |
आज देश में OBC की जो हालत है उसमें सबसे बड़ा हाथ OBC के उन नेताओं का है जिन्हें हमने अपना हितैषी समझ कर संसद में भेजा
बीजेपी भूल रही है कि अगर इन्होंने आराछड़ बड़ा दिया तो फिर कोई घटेगा नहीं सकता, हमें कांग्रेस या सपा गवर्मेंट पर पूरा भरोसा है अगर इनकी गवर्मेंट आती है तो हमें भी बराबर का हक मिलेगा।😡😡😡😡