जम्मू-कश्मीर में धारा 370 को हटाने संबंधी विधेयक को 5 अगस्त, 2019 को राज्यसभा में पेश करते हुए गृहमंत्री अमित शाह ने कहा था कि इससे वहां के दलितों, पिछड़ों और आदिवासियों को लाभ मिलेगा। लेकिन, सच्चाई यह है कि आज भी जम्मू-कश्मीर में दलितों, पिछड़ों और आदिवासियों को उनके वाजिब हक से वंचित रखा जा रहा है। वजह यह है कि सरकार ने पूर्व के आरक्षण नियम को ही बरकरार रखा है। इस प्रकार जम्मू-कश्मीर के दलित, पिछड़े और आदिवासी ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। इस संबंध में एससी-एसटी-ओबीसी फेडरेशन ऑफ इंडिया के सदस्यों ने राज्य के उप-राज्यपाल गिरीश चंद्र मूर्मू से मिलकर ज्ञापन सौंपा है।
बताते चलें कि बीते 31 अक्टूबर, 2019 से जम्मू-कश्मीर में पूर्व में राज्य विधानसभा द्वारा स्वीकृत कानूनों को निष्प्रभावी बना दिया गया है। लेकिन जहां तक आरक्षण का सवाल है तो वहां अभी भी पुराने प्रावधान लागू हैं। इसके तहत अनुसूचित जाति को 8 फीसदी, अनुसूचित जनजाति को 10 और ओबीसी को 2 फीसदी आरक्षण के अलावा 20 फीसदी आरक्षण पिछड़े इलाकों के निवासियों (आरबीए), वास्तविक सीमा रेखा पर रहने वालों के लिए 3 फीसदी, पहाड़ी इलाकों में रहने वालों के लिए 3 फीसदी और सीमा पर रहने वालों के लिए 3 फीसदी आरक्षण का प्रावधान है। इसके अलावा अब इसमें गरीब सवर्णों के लिए 10 फीसदी आरक्षण को भी शामिल कर लिया गया है।

फेडरेशन के संयोजक आर. के. कलसोत्रा ने बताया कि पहले उन्हें उम्मीद थी कि धारा 370 के खत्म होने के बाद राज्य में जब नए कानूनी प्रावधान लागू होंगे तो आरक्षित वर्गों के हितों का ख्याल रखा जाएगा। इस उम्मीद की वजह यह भी कि गृहमंत्री अमित शाह ने संसद में इसकी घोषणा की थी। लेकिन वास्तविकता यह है कि नए प्रावधानों में आरक्षण संबंधी प्रावधानों को शामिल ही नहीं किया गया है और इस प्रकार राज्य के दलित, पिछड़े और आदिवासियों को उनके उस अधिकार से वंचित किया जा रहा है जिसका भारत के संविधान में प्रावधान है।
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कलसोत्रा ने बताया कि उपराज्यपाल को सौंपे गए ज्ञापन में कई मांगों का उल्लेख किया गया है। इनमें से एक ओबीसी आरक्षण से संबंधित है। धारा 370 के निष्प्रभावी होने के बाद भी राज्य में आरक्षण का प्रावधान पूर्ववत है और इसके कारण ओबीसी को केवल 2 प्रतिशत आरक्षण ही मिलेगा। जबकि पहले जब यह कानून बना था तब इसे बनाने वालों ने इस वर्ग के हितों की अनदेखी की थी। जब जम्मू-कश्मीर में आरक्षण का प्रावधान हुआ तो प्रावधान करने वाले ऊंची जाति के हिंदू और मुसलमान ही थे। उन्होंने इसे लागू करने में बेईमानी की। यहां तक कि जब मंडल कमीशन की अनुशंसाओं को लागू करने की बात आयी तब भी बेईमानी की गई।

कलसोत्रा के मुताबिक, आरबीए यानी पिछड़े इलाकों में रहने वालों को 20 फीसदी आरक्षण है। लेकिन इसमें पेंच यह है कि यदि कोई पिछड़े वर्ग का है तो उसे आरबीए के तहत आरक्षण का लाभ नहीं मिलेगा। यही स्थिति एससी और एसटी वर्ग के लोगों के लिए है। जबकि इन पिछड़े इलाकों, सीमा रेखा के समीपवर्ती इलाकों व सीमा पर रहने वाले इलाकों में अधिकांश दलित, पिछड़े और आदिवासी ही हैं।
कलसोत्रा ने बताया कि ओबीसी के लिए आरक्षण का पुनर्निर्धारण हो। उन्होंने यह भी कहा कि राज्य में पहले से ही दलितों, पिछड़ों और आदिवासियों के कोटे के एक लाख पद रिक्त पड़े हैं। सरकार को इस मामले में संज्ञान लेना चाहिए।
(संपादन : अनिल/सिद्धार्थ)