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भूख से मौत : आदिवासियों, दलितों व ओबीसी को शतप्रतिशत आरक्षण क्यों?

आदिवासी बहुल झारखंड में एक बार फिर एक व्यक्ति की मौत भूख के कारण हो गई है। मृतक का नाम भुखल घासी है, जो दलित समुदाय का था। विशद कुमार बता रहे हैं कि 2016 से लेकर अब तक झारखंड में 23 लोग भूख के कारण मरे हैं। इनमें कोई सवर्ण नहीं है। सबके सब दलित-बहुजन हैं

झारखंड में भूख से हुई मौतों से संबंधित आंकड़े एक ही सवाल खड़ा पूछते हैं। आखिर भुखमरी में दलित, आदिवासी और पिछड़े ही क्यों?  वर्ष 2015 से 2019 तक पूरे देश में 86 मौतें भूख से हुई हैं। वहीं झारखंड में पिछले दिसंबर 2016 से अबतक लगभग 23 लोगों की मौत भोजन की अनुपलब्धता के कारण हुई है, जिसमें सभी दलित-बहुजन ही थे। यह सवाल एक बार फिर हमारे सामने है। वजह यह कि बीते 6 मार्च, 2020 को झारखंड के ही बोकारो जिला मुख्यालय से लगभग 50 किमी दूर, कसमार प्रखंड के अंतर्गत सिंहपुर पंचायत का करमा शंकरडीह टोला निवासी दलित भूखल घासी (42 वर्ष) की मौत भूख से हो गई। वह अपने पीछे एक भरा पूरा परिवार छोड़ गया। उसके परिवार में अब उसकी पत्नी और पांच बच्चे हैं। इनमें दो बेटे और तीन बेटियां हैं। बड़ा बेटा जिसकी उम्र 14 वर्ष है, होटल में गिलास-प्लेट धोने का काम करता है।

गौरतलब है कि मृतक का नाम भूखल घासी था। इससे झारखंड में भुखमरी के आलम का अंदाज लगाया जा सकता है कि लोग अपने बच्चों का नाम भुखल यानी भूखा तक रखते हैं। खैर, इससे पहले कि इसके अन्य पहलुओं पर विचार करें, पहले यह सारणी देखें, जो यह बताती है कि भुखमरी के कारण मरने वालों में दलितों, आदिवासियों और पिछड़ों की शत-प्रतिशत हिस्सेदारी है।

भूख के कारण झारखंड में दिसंबर 2016 से लेकर अबतक हुई मौतें

कब और कहांमृतक का नाम, उम्र व लिंगवर्ग
11 दिसंबर 2016, हजारीबाग, इंदरदेव माली (40 वर्ष, पुरूष) ओबीसी
28 सितंबर 2017, सिमडेगासंतोषी कुमारी (11 वर्ष, महिला) दलित
21 अक्टूबर 2017, झरिया बैजनाथ रविदास (40 वर्ष, पुरूष) दलित
23 अक्टूबर 2017, देवघररूपलाल मरांडी (60 वर्ष, पुरूष) आदिवासी
अक्टूबर 2017, गढ़वा ललिता कुमारी (45 वर्ष, महिला) दलित
1 दिसंबर 2017, गढ़वाप्रेममणी कुनवार (64 वर्ष, महिला) आदिवासी
25 दिसंबर 2017, गढ़वाएतवरिया देवी (67 वर्ष, महिला) आदिवासी
13 जनवरी 2018, गिरिडीहबुधनी सोरेन (40 वर्ष, महिला) आदिवासी
23 जनवरी 2018, पाकुड़लक्खी मुर्मू (30 वर्ष, महिला) आदिवासी
29 अप्रैल 2018, धनबादसारथी महतोवाइन (महिला)ओबीसी 
2 जून 2018, गिरिडीहसावित्री देवी (55 वर्ष, महिला) दलित
4 जून 2018, चतरामीना मुसहर (45 वर्ष, महिला) दलित
14 जून 2018, रामगढ़चिंतामल मल्हार (40 वर्ष, पुरूष) आदिवासी
10 जुलाई 2018, जामताड़ा लालजी महतो (70 वर्ष, पुरूष) ओबीसी
24 जुलाई 2018, रामगढ़, राजेंद्र बिरहोर (39 वर्ष, पुरूष) आदिवासी (आदिम जनजाति)
16 सितंबर 2018, पूर्वी सिंहभूमचमटू सबर (45 वर्ष, पुरूष) आदिवासी
25 अक्टूबर 2018, गुमलासीता देवी (75 वर्ष), महिला आदिवासी
11 नवंबर 2018, दुमकाकालेश्वर सोरेन (45 वर्ष, पुरूष) आदिवासी
1 जनवरी 2019, लातेहारबुधनी बिरजिआन (80 वर्ष, महिला) आदिवासी (आदिम जनजाति)
22 मई 2019, दुमकामोटका मांझी (50 वर्ष, पुरूष) आदिवासी
5 जून 2019, लातेहाररामचरण मुंडा (65 वर्ष, पुरूष) आदिवासी
16 जून 2019, चतरा, झिंगूर भूंइया (42 वर्ष, पुरूष) आदिवासी
6 मार्च 2020, बोकारोभूखल घासी, (42 वर्ष, पुरूष) दलित

ऊपर दर्शाए गए तालिका के अनुसार इन तीन सालों के दौरान हुए भुखमरी के कारण मृतकों में 14 आदिवासी, 6 दलित और 3 ओबीसी वर्ग से हैं। इस आधार पर मृत लोगों में 61 प्रतिशत आदिवासी, 26 प्रतिशत दलित और 13 प्रतिशत ओबीसी हैं। यदि इनके लैंगिक अनुपात देखे तो इमसे लगभग 48 प्रतिशत (11) महिलाएं हैं जबकि 52 प्रतिशत (12) पुरुष शामिल हैं।ध्यान दें कि इनमें कोई भी सवर्ण नहीं हैं। एक आदिवासी राज्य के रूप से प्रचलित झारखंड की यह स्थिति काफी चिंतनीय हैं।

6 मार्च, 2020 को झारखंड के बोकारो जिले में भूख के कारण भुखल घासी की मौत हो गई। रोते-बिलखते परिजन

भूखल की मौत की खबर सुन हरकत में आयी सोरेन सरकार

अब एक नजर भुखल घासी की मौत पर। यह जानकारी 7 मार्च, 2020 को रांची से प्रकाशित अखबारों में सामने आयी कि भूखल घासी  की मौत भूख से हो गई। खबर के मुताबिक भूखल घासी के घर में चार दिनों से चूल्हा नहीं जला था। 

खबर सामने आते ही सरकारी तंत्र लीपापोती में जुट गया। झारखंड सरकार के खाद्य आपूर्ति एवं सार्वजनिक वितरण विभाग के सचिव, निदेशक संतोष कुमार, बोकारो उपायुक्त मुकेश कुमार, जिला आपूर्ति पदाधिकारी भूपेंद्र ठाकुर, बेरमो एसडीओ प्रेम रंजन समेत कई अधिकारी कसमार प्रखंड मुख्यालय से मात्र पंद्रह किमी दूर करमा शंकरडीह पहुंचे, घटना की जानकारी ली और थोक भाव में संवेदना भी व्यक्त की। इतना ही नहीं, सरकारी तंत्र ने अपना कसूर स्वीकारने के बजाय स्थानीय प्रखंड विकास पदाधिकारी, विपणन अधिकारी व सिंहपुर पंचायत के मुखिया को डांट-फटकार भी लगाई।

फिर इसके बाद वही हुआ जो आमतौर पर होता है कि पीड़ित परिवार पर सरकारी कृपा जमकर बरसायी जाती है। मृतक भूखल घासी के परिजनों के उपर भी सरकारी कृपा जमकर बरसी। पीड़ित परिवार को कई सुविधाएं एक साथ ऑन द स्पॉट मुहैया कराई गईं। मसलन, मृतक की पत्नी रेखा देवी के नाम पर तुरंत राशन कार्ड बनवाकर दिया गया। साथ ही तुरंत उसके नाम पर विधवा पेंशन की भी स्वीकृति हो गयी। आंबेडकर आवास की भी स्वीकृति हो गयी। इसके अलावा मृतक की पत्नी रेखा देवी के नाम पर पारिवारिक योजना का लाभ स्वीकृत कर 10 हजार रुपए का तुरंत भुगतान कर दिया गया। सचिव द्वारा बाकी 20 हजार रुपए खाता खोलवाकर जल्द से जल्द ट्रांसफर करने का निर्देश दिया गया।

मृतक भुखल घासी का घर व उसके परिजन

सरकारी संवेदनशीलता कहिए या फिर सरकारी कृपा तब नहीं बरसी थी जब भूखल घासी जिंदा थे। करीब एक साल पहले से भूखल घासी का स्वास्थ्य खराब था। वह कमाने लायक नहीं था। ऐसी स्थिति में उसे और उसके परिवार वालों को खाने के लाले रहे। तब किसी ने भी उसकी सुध नहीं ली। सरकारी दस्तावेजों में भूखल घासी के पास नरेगा रोजगार कार्ड भी था, जिसकी संख्या – JH-20-007-013-003/211 है। कार्ड पर उल्लेखित विवरण के मुताबिक उसे फरवरी  2010 के बाद से कार्य उपलब्ध नहीं कराया गया है। दूसरी तरफ उसका नाम बीपीएल पुस्तिका की सूची संख्या 7449 में दर्ज होने के बावजूद उसका सरकारी राशन कार्ड नहीं बना था। कारण यह है कि पूरा प्रखंड दलालों के कब्जे में है। वे ही तय करते हैं कि किसे सरकारी योजनाओं का लाभ मिलना चाहिए और किसे नहीं।

आदिवासी, दलित और पिछड़े ही क्यों?

स्वतंत्र पत्रकार रूपेश कुमार सिंह कहते हैं कि इसका प्रमुख कारण यह है कि आदिवासी, दलित व पिछड़े ही समाज के सबसे निचले पायदान पर हैं। इन समुदायों के अधिकांश लोगों के पास खेती की जमीन नहीं है। इस कारण ये लोग सिर्फ व सिर्फ अपनी हाड़तोड़ मेहनत के बल पर ही अपना गुजारा करते हैं, लेकिन वहां भी उनका शोषण ही होता है। न तो उन्हें प्रतिदिन काम मिलता है और न उचित मजदूरी मिलती है, जिस कारण इनके घर में खाने के लाले हो जाते हैं। सरकारी तंत्र की निष्क्रियता के कारण सरकारी योजना का लाभ भी इनके बदले दूसरे को मिल जाता है।  इसलिए भूख से मरने वालों में अधिकांश यही होते हैं। 

यह भी पढ़ें : भूख से अकाल मौत नहीं मर रहे ओबीसी, दलित और आदिवासी, सरकारें दे रही मृत्युदंड

वहीं दलित आर्थिक अधिकार आंदोलन व एनसीडीएचआर (नेशनल कैम्पेन फॉर दलित ह्यूमैन राइट्स) के झारखंड राज्य समन्वयक मिथिलेश कुमार कहते हैं कि इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि योजनाएं जो समाज के अंतिम व्यक्ति के लिए बनती हैं, उसके लागू करने में ईमानदारी का घोर अभाव है। वजह है पंचायत स्तर से लेकर सदन तक भ्रष्टाचारियों का बोलबाला। जब तक भ्रष्टाचार पर सरकार का नियंत्रण नहीं होता है तब तक किसी भी योजना का लाभ उस अंतिम व्यक्ति तक नहीं पहुंच सकता जिसके लिए योजनाएं बनती हैं।  

जबकि भाकपा (माले) बगोदर विधायक बिनोद कुमार सिंह कहते हैं कि इस मामले में सबसे बड़ा दोष सरकारी नीतियों का है। योजनाएं बनती हैं आम जनता के लिए मगर वह वोट की राजनीति तक ही सिमट कर रह जाती हैं। सरकार का अधिकारियों पर नियंत्रण लगभग खत्म हो चुका है।

(संपादन : नवल/गोल्डी)

लेखक के बारे में

विशद कुमार

विशद कुमार साहित्यिक विधाओं सहित चित्रकला और फोटोग्राफी में हस्तक्षेप एवं आवाज, प्रभात खबर, बिहार आब्जर्बर, दैनिक जागरण, हिंदुस्तान, सीनियर इंडिया, इतवार समेत अनेक पत्र-पत्रिकाओं के लिए रिपोर्टिंग की तथा अमर उजाला, दैनिक भास्कर, नवभारत टाईम्स आदि के लिए लेख लिखे। इन दिनों स्वतंत्र पत्रकारिता के माध्यम से सामाजिक-राजनैतिक परिवर्तन के लिए काम कर रहे हैं

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