बीते वर्ष जब जम्मू-कश्मीर में धारा-370 और 35ए को निष्प्रभावी बनाया गया था तब यह आशंका व्यक्त की गई थी कि इस कारण वहां जमीन को लेकर विवाद बढ़ेंगे और वे लोग जिनके पास कम जमीनें हैं, भू-माफिया के शिकार होंगे । इसी आशंका से संबंधित एक खबर उधमपुर जिले में प्रकाश में आई है। गत 2 जुलाई को जिले के डांडयाल गांव में राहुल भगत नामक दलित युवक की हत्या कर दी गई। बताया जा रहा है कि घटना तब हुई जब वह घर से अपनी जमीन के कागजात लेकर स्थानीय थाने जा रहा था। राहुल परिवार का अकेला कमाने वाला था और बाइक मैकेनिक के रूप में काम करता था। उसके पिता शारीरिक नि:शक्तता की वजह से घर खर्च में ज्यादा योगदान नहीं दे पाते हैं।
गौरतलब है कि डांडयाल, एक दलित बहुल गांव है, जहां दलित वर्ग के महसा, मेघ और चमार उपजातियों के लोग रहते हैं। 1970 के दशक में जम्मू-कश्मीर में भूमि सुधार लागू होने के कारण वहां के दलित समुदाय के पास भी थोड़ी बहुत जमीनें हैं। लेकिन धारा 370 और 35ए हटने के बाद से भू-माफियाओं की नज़र दलित समुदाय की जमीनों पर है। ये इनके सॉफ्ट टारगेट बने हुए हैं।
बताते चलें कि जम्मू-कश्मीर में 35ए के खात्मे के बाद वहां की जमीन बाहरी लोगों द्वारा खरीदे जाने पर रोक खत्म हो गई। पहले 35ए के कारण बाहरी लोगों को जम्मू-कश्मीर में जमीन खरीदने का अधिकार नहीं था और इस कारण वहां जमीन को लेकर उस तरह के विवाद नहीं होते थे जैसे देश के अन्य हिस्सों में होते हैं।

मृतक की उम्र 25 साल बतायी जा रही है। उसके घर में अब तीन बहनें और माता-पिता हैं। प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि राहुल पर हमले के उपरांत उन्होंने स्थानीय पुलिस को फोन किया। लेकिन जब दो घंटे तक पुलिस मौका-ए-वारदात पर नहीं पहुंची तब लोगों ने खुद ही घायल राहुल को अस्पताल पहुंचाया। प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक, राहुल का गला रेत दिया गया था और उसके शरीर पर चाकू के वार के निशान थे। इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई।
जमीन पर कब्जा के लिए हत्या
मृतक राहुल की बहन का कहना है कि “जमीन माफिया हमें रोज धमकियां देते थे और डराने के लिए हमारे घर तक आते थे। हमने पुलिस स्टेशन में भी बताया लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई क्योंकि एसएचओ समेत सारा पुलिस स्टेशन भू-माफिया के साथ मिला हुआ है। इनके साथ पटवारी साइमा भी मिली हुई है। पटवारी का मामा भी इसमें शामिल है।”
मृतक की बहन ने मदन सिंह नामक भू-माफिया और उसके अन्य सहयोगियों पर राहुल की हत्या का आरोप लगाया है। उसका कहना है कि “अभियुक्त् मदन सिंह का पूरा परिवार इसमें शामिल है। हमारे साथ इंसाफ हो, यही हमारी मांग है। जिन्होंने मेरे भाई को मारा है, उन्हें फांसी हो। हमें इस पुलिस स्टेशन पर बिल्कुल भी विश्वास नहीं है, क्योंकि स्थानीय पुलिस अपराधियों से मिली हुई है। हमारी मांग है कि जांच बाहर की पुलिस करे।”
वहीं मृतक राहुल के छोटे चाचा रवि कुमार कहते हैं- “अभियुक्त मदन सिंह ने राहुल के पिता सुभाषचंद्र भगत से जब जमीन खरीदी थी तब केवल 20 फीसदी राशि का ही भुगतान किया। अभियुक्त बिना पूरा पैसा दिए ही जमीन पर कब्जा चाहते थे जिसका मृतक राहुल व उसके पिता सुभाषचंद्र भगत विरोध कर रहे थे। इस क्रम में बीते 1 जुलाई को इन लोगों ने राहुल के पिता के खिलाफ मामला दर्ज कराया था। इसी सिलसिले में सारे परिवार को थाने बुलाया गया था। पुलिस ने उनसे जमीन के कागज़ात मांगे और राहुल को कागज़ लेने के लिए अकेले घर भेज दिया और रास्ते में उसकी हत्या कर दी गई।”
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रवि कुमार ने कहा कि “हमें न्याय चाहिए। जांच ठीक से नहीं हो रही है। एसएचओ विजय चौधरी भी भू-माफियाओं के साथ इस घटना में पूरी तरह से शामिल हैं। जिस दिन इस वारदात को अंजाम दिया गया उस दिन स्थानीय थाना प्रभारी ने हमारे पूरे परिवार को पुलिस स्टेशन में बिठाकर रखा था और राहुल को अकेले जमीन का कागज लेने के लिए दोपहर 11-12 बजे के बीच घर भेजा। हत्यारे रास्ते में उसके लौटने का इंतज़ार कर रहे थे। जैसे उन्हें मालूम था कि राहुल थाने से अकेले ही लौटेगा।”
ऊधमपुर पुलिस का पक्ष
उधमपुर पुलिस ने 2 जुलाई को प्रेस कान्फ्रेंस कर बयान जारी करते हुए कहा – “हमें दोपहर 1 बजे के करीब सूचना मिली की एक लाश पड़ी हुई है। लाश की पहचान डांडयाल गांव के निवासी सुभाषचंद्र भगत के पुत्र राहुल भगत के रूप में हुई। इस संबंध में एक मामला मृतक के परिजनों के बयान के आधार पर दर्ज किया गया है जिसमें चार संदिग्धों राकेश गोड्डा, रविंदर सिंह पुत्र मदन सिंह दंडयाल, सुनील कुमार पुत्र प्रेम नाथ रामनगर, मदन सिंह पुत्र फजरु को अभियुक्त बनाया गया है।
वहीं 3 जुलाई को एक प्रेस कान्फ्रेंस कर स्थानीय डीआईजी सुजीत कुमार ने बताया कि पुलिस ने पूछताछ के लिए 4 लोगो को हिरासत में लिया था। पूछताछ में मनीष सिंह (पुत्र मदन सिंह) ने स्वीकार किया कि उसने अपने सहयोगी मोहम्मद असलम (पुत्र नवाबदीन) के साथ मिलकर जमीन विवाद के चलते धारदार हथियार से राहुल भगत की हत्या की थी। अभियुक्त मनीष सिंह की निशानदेही पर हत्या का हथियार बरामद कर लिया गया है। जबकि दूसरा अभियुक्त मोहम्मद असलम अभी भी फरार है।
विभिन्न संगठनों ने उठाया सवाल
इस बीच जम्मू में दलित संगठनों ने मृतक राहुल के परिवार के लिए उचित मुआवजा एवं क्षतिपूर्ति की मांग को लेकर पिछले दिनों उप-राज्यपाल के कार्यालय के सामने प्रदर्शन भी किया। संगठनों ने पुलिस पर ऊंची जाति के पक्षधर होने का आरोप लगाया। ऑल इंडिया कन्फेडरेशन ऑफ एससी, एसटी एंड ओबीसी के प्रदेश संयोजक आर.के. कलसोत्रा ने बताया कि “यह पूरा मामला केवल जमीन हड़पने तक सीमित नहीं है। राहुल भगत की हत्या के पीछे अभियुक्तों की जातिगत वर्चस्व को बनाए रखने की मंशा भी है। दरअसल, धारा 370 और 35ए के हटाए जाने के बाद बेशक प्रांत में केंद्र के कानून जैसे कि एससी-एसटी एट्रोसिटी एक्ट लागू कर दिया गया है लेकिन अब भी इस कानून का अनुपालन नहीं हो रहा है। राहुल की हत्या के मामले में भी इस कानून का पालन नहीं किया जा रहा है। ऐसे ही कई और मामले जम्मू क्षेत्र में ही आए हैं जिन्हें लेकर हम लोगों ने उप-राज्यपाल को लिखित रूप में सूचित किया है। हालांकि हमें आश्वासन भी दिया गया है कि इन मामलों में कार्रवाई होगी। लेकिन अब भी हमें कार्रवाई का इंतजार ही है।”

राहुल की हत्या की न्यायिक जांच की मांग करते हुए कलसोत्रा ने कहा कि स्थानीय पुलिस की भूमिका संदिग्ध है और उस पर अपराधियों को संरक्षण देने का आरोप भी है इसलिए सरकार इस पूरे मामले की न्यायिक जांच कराये।
आखिर दलितों की जमीन ही क्यों?
आखिर दलितों के ज़मीन पर ही लैंड माफियाओं की नज़र क्यों है? इस सवाल के जवाब में जम्मू के रिसर्च स्कॉलर और सामाजिक कार्यकर्ता कुणाल भारद्वाज कहते है कि “यहां के सवर्ण मानते है कि जाति व्यवस्था के निचले पायदान में रहने वाले दलितों को जमीन जायदाद रखने का कोई हक़ नहीं है। इसी वजह से दलित ही इनके सॉफ्ट टारगेट है। जब शेख अब्दुल्ला सीएम थे तब उनके कारण यहां दलितों को भी छोटे-छोटे जमीन के टुकड़े मिले थे। पहले यहां जातिगत हिंसा और जातिवाद जैसी समस्याएं नहीं होने की बड़ी वजहों में एक वजह यह भी है। साथ ही धारा 370 और 35ए लागू रहने के कारण बाहरी लोग जमीन नहीं खरीद सकते थे। इसलिए भी जमीन संबंधी विवाद कम ही होते थे। लेकिन अब स्थिति बदल गयी है। इन कानूनों के निष्प्रभावी होने के कारण जम्मू कश्मीर में बाहर के लोग भी जमीन खरीद-बिक्री कर सकते है। इसी को द्विज दलितों के खिलाफ एक औज़ार के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं।”
(संपादन : नवल/गोल्डी/अमरीश)