हाल ही में उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले के बूलगढ़ी में मनीषा वाल्मीकि के साथ की गई दरिंदगी और उसके परिवार के उत्पीड़न से आक्रोशित, प्रदेश के गाजियाबाद जिले के साहिबाबाद इलाके की करहेड़ा बस्ती के करीब 50 वाल्मीकि परिवारों के 236 सदस्यों ने बौद्ध धर्म अपना लिया। इन लोगों ने 14 अक्टूबर 2020 को डॉ. आंबेडकर के प्रपौत्र राजरत्न आंबेडकर की उपस्थिति में धर्मपरिवर्तन किया।
धर्म बदलने के पीछे कारण
करहेड़ा गांव के राजेश वाल्मीकि के मुताबिक, “धर्म बदलना इतना आसान नहीं होता। सारे रीति-रिवाज बदल जाते हैं। वह सब छोड़ना पड़ता है जो हमारे पुरखे करते आए हैं। एक नई जीवनशैली अपनानी होती है। हम सवर्णों के भेदभाव से परेशान थे। बहन मनीषा और उसके परिवार के साथ सवर्णों का अमानवीय व्यवहार हमारी बर्दाश्त के बाहर था। इसलिए हमने धर्म बदला। बौद्ध धर्म में जाति-आधारित भेदभाव नहीं है।”
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दलितों के साथ भेदभाव का अनुभव बताते हुए गाजियाबाद में घरेलू सहायिका के तौर पर काम करने वाली सुनीता ने कहा कि जिस घर में वह काम करती हैं, वहां जब उसने पीने के लिए एक गिलास पानी मांगा तो दलित होने की वजह से उन्हें स्टील के गिलास में पानी दिया गया। वे बतातीं हैं, “जिस गिलास में मैं पानी पीती हूँ उसे रसोई के बाहर एक कोने में अलग रखा जाता है ताकि सबको पता रहे कि मैं वाल्मीकि हूं और यह गिलास मेरे लिए है। मैं जिन घरों में काम करती हूं उनमें से अधिकतर में मेरे साथ इसी तरह का भेदभाव होता है।”
सुनीता के बड़े बेटे पवन वाल्मीकि का कहना है कि उन्होंने 2009 में एक कंपनी में चपरासी के पद के लिए आवेदन किया था। परन्तु वाल्मीकि सरनेम होने के चलते उन्हें सिर्फ साफ-सफाई का काम दिया गया। वे कहते हैं, “मैंने साफ-सफाई के काम के लिए आवेदन नहीं किया था लेकिन मुझे पैसों की जरूरत थी इसलिए मैंने इसे स्वीकार कर लिया। मैं इस तरह के भेदभाव से वाकिफ हूं, जो पीढ़ियों से हमारे साथ होता आ रहा है। बौद्ध धर्म हमारा अपना धर्म है। इसमें हमें अलग नहीं समझा जायेगा और हम से भेदभाव नहीं होगा।”
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बौद्ध धर्म स्वीकार करने वालों में पूर्वी दिल्ली के शहादरा में मैकेनिक के तौर पर काम कर चुके करीब 65 वर्षीय इंदर राम भी हैं। उन्होंने कहा, “हाथरस में 19 साल की दलित युवती के साथ जो हुआ, उसके बाद हमने
धर्मपरिवर्तन करने का फैसला किया। बौद्ध धर्म में कोई जाति नहीं है। वहां कोई ठाकुर या वाल्मीकि नहीं है। हर कोई सिर्फ इंसान है, सभी सिर्फ बौद्ध हैं।”
सफाई कर्मचारी के तौर पर काम कर चुके करीब 70 वर्षीय ताराचंद कहते हैं, “बौद्ध धर्म में उपवास नहीं रखा जाता, मूर्ति पूजा नहीं की जाती। हमने इसे पूरी तरह से अंगीकार कर लिया है। अब वह भेदभाव मेरी परिवार की नई पीढ़ी को नहीं झेलना होगा, जिसे अब तक हम झेलते आ रहे थे।”
वहीं, कमल कहते हैं, “स्कूल में सवर्ण जातियों के बच्चे हमारे बच्चों के साथ नहीं बैठते। शिक्षक चाहते हैं कि हमारे बच्चे क्लास में पीछे बैठे क्योंकि उनका सरनेम वाल्मीकि है। इसलिए हम अपना धर्म बदल रहे हैं।
धर्मपरिवर्तन हमारे भविष्य के लिए अच्छा होगा।”
धर्मपरिवर्तन करने वाली रज्जो कहती हैं, “हाथरस की हमारी बेटी के साथ जो हुआ वैसा किसी ऊंची जाति की बेटी के साथ होता तो पूरे देश में हाहाकार मच जाता। और दोषियों को कड़ी सजा मिलती। पर हमारी बेटी के शव को पुलिस ने बिना उसके घर वालों की मर्जी के रात में जला दिया। क्यों? क्योंकि वह एक छोटी जाति की बेटी थी। नहीं चाहिए हमें ऐसा धर्म जो हमारे साथ भेदभाव करता है।”
बहरहाल, द्विज, देश में संविधान की जगह मनु का विधान लागू करना चाहते हैं। इसलिए आज के दौर में बहुत जरूरी हो गया है कि सभी संविधान पढ़ें। देश का संविधान हर भारतीय नागरिक को आत्मसम्मान, समानता और मानवीय गरिमा के साथ जीने का हक देता है और न्याय की बात करता है। बौद्ध धर्म के मूल सिद्धांतों में यह शामिल है।
(संपादन : नवल/अमरीश)
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