h n

दलित नेतृत्व का संकट

राजस्थान के इस एक उदाहरण से लेखक ने यह स्पष्ट किया है कि दलित नेतृत्व का संकट वस्तुत: इस कारण नहीं है कि दलित नेता अयोग्य हैं या दलितों के प्रति उदासीन हैं, बल्कि सच यह है कि हिंदू नेता अपने पूर्वाग्रहों से उनकी उपेक्षा करते हैं और उन्हें अयोग्य दिखाने का षड्यंत्र रचते हैं। कंवल भारती की समीक्षा

पुस्तक समीक्षा

प्रोफ़ेसर श्याम लाल चार दशकों से भी अधिक समय से दलित मुद्दों पर लगातार लिख रहे हैं। विभिन्न दलित जातियों पर उनकी अब तक 21 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। हाल में उनकी नई पुस्तक दलित-नेतृत्व के संकट पर ‘क्राइसिस ऑफ दलित लीडरशिप’ आई है, जो संभवत: अंग्रेजी में भी इस विषय की पहली किताब है। हालांकि अंग्रेजी में आनंद तेलतुमड़े ने दलित राजनीति पर धारदार लेखन किया है।

पूरा आर्टिकल यहां पढें : दलित नेतृत्व का संकट

लेखक के बारे में

कंवल भारती

कंवल भारती (जन्म: फरवरी, 1953) प्रगतिशील आंबेडकरवादी चिंतक आज के सर्वाधिक चर्चित व सक्रिय लेखकों में से एक हैं। ‘दलित साहित्य की अवधारणा’, ‘स्वामी अछूतानंद हरिहर संचयिता’ आदि उनकी प्रमुख पुस्तकें हैं। उन्हें 1996 में डॉ. आंबेडकर राष्ट्रीय पुरस्कार तथा 2001 में भीमरत्न पुरस्कार प्राप्त हुआ था।

संबंधित आलेख

मनुस्मृति पढ़ाना ही है तो ‘गुलामगिरी’ और ‘जाति का विनाश’ भी पढ़ाइए : लक्ष्मण यादव
अभी यह स्थिति हो गई है कि भाजपा आज भले चुनाव हार जाए, लेकिन आरएसएस ने जिस तरह से विश्वविद्यालयों को अपने कैडर से...
आखिर ‘चंद्रगुप्त’ नाटक के पन्नों में क्यों गायब है आजीवक प्रसंग?
नाटक के मूल संस्करण से हटाए गए तीन दृश्य वे हैं, जिनमें आजीवक नामक पात्र आता है। आजीवक प्राक्वैदिक भारत की श्रमण परंपरा के...
कौशांबी कांड : सियासी हस्तक्षेप के बाद खुलकर सामने आई ‘जाति’
बीते 27 मई को उत्तर प्रदेश के कौशांबी में एक आठ साल की मासूम बच्ची के साथ यौन हिंसा का मामला अब जातिवादी बनता...
अपने जन्मदिन पर क्या सचमुच लालू ने किया बाबा साहब का अपमान?
संघ और भाजपा जहां मजबूत हैं, वहां उसके नेता बाबा साहब के विचारों और योगदानों को मिटाने में जुटे हैं। लेकिन जहां वे कमजोर...
कॉमरेड ए.के. राय कहते थे, थोपा गया विकास नहीं चाहते आदिवासी
कामरेड राय की स्पष्ट धारणा थी कि झारखंडी नेतृत्व के अंदर समाजवादी एवं वामपंथी विचारधारा उनके अस्तित्व रक्षा के लिए नितांत जरूरी है। लेकिन...