h n

हर दलित-बहुजन परिवार घर में रखे ‘हिंदू धर्म की पहेलियां’ : कालीचरण स्नेही

बीते 20 फरवरी, 2021 को उत्तर प्रदेश के उन्नाव में दो किताबें “बहुजन हुंकार” और “हिंदू धर्म की पहेलियां” का विमाेचन किया गया। इस मौके पर कवि व समालोचक प्रो. कालीचरण स्नेही ने बताया कि जिसे मनुवादी कलियुग कहते हैं, वह हमारा स्वर्णयुग है। फारवर्ड प्रेस की खबर

जैसे मनुवादी अपने घरों गीता-रामायण आदि ग्रंथ रखते हैं, उनका पाठ करते हैं, उसी तरह से हर दलित-बहुजन परिवारों को अपने घर में डॉ. आंबेडकर की किताब “हिंदू धर्म की पहेलियां” रखनी चाहिए। यह किताब बहुजनों की मुक्ति का साधन है, जिसके बात डॉ. बाबासाहेब ने कही। ये बातें लखनऊ विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष सह कवि और समालोचक प्रो. कालीचरण स्नेही ने बीते 20 फरवरी को उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के प्रज्ञा बुद्ध बिहार एवं शिक्षण संस्थान, राजेपुर में आयोजित पुस्तक विमोचन सह विचार गोष्ठी को संबोधित करते हुए कही। 

इस मौके पर फारवर्ड प्रेस द्वारा हाल ही में प्रकाशित “हिंदू धर्म की पहेलियां : बहुजनो! ब्राह्मणवाद सच जानो” तथा विजया बुक्स, नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित आर जी कुरील की कविता संग्रह “बहुजन हुंकार” का विमोचन किया गया। 

अपने संबोधन में प्रो. स्नेही ने कहा कि डॉ. आंबेडकर की यह किताब पहले भी प्रकाशित हो चुकी है लेकिन फारवर्ड प्रेस द्वारा प्रकाशित किताब में नये सिरे से अनुवाद किया गया है तथा इसे संदर्भों के साथ प्रस्तुत किया गया है। इसमें इस किताब के संकलक, संपादक और संदर्भ टिप्पणीकार डॉ. सिद्धार्थ ने कड़ी मेहनत की है। उनके इस योगदान को हमेशा याद किया जाएगा। इस किताब की भूमिका प्रो. कांचा इलैया शेपर्ड ने लिखी है। 

उत्तर प्रदेश के उन्नाव में आयोजित कार्यक्रम में “हिंदू धर्म की पहेलियां” का विमोचन करते मंचासीन बुद्धिजीवी

वहीं आर.जी. कुरील की कविता संग्रह की चर्चा करते हुए प्रो. स्नेही ने कहा कि जबसे दलित-बहुजन लिखकर अपनी पीड़ा की अभिव्यक्ति करने लगे हैं तथा वर्चस्ववादियों की पोल खोलने लगे हैं, तब इसे कलियुग कहा जाने लगा है। जबकि यह हमारे लिए स्वर्णयुग है। उन्होंने यह भी कहा कि दलित-बहुजन जनप्रतिनिधि फिर वे चाहे एमपी हों या एमएलए हों, दलित-बहुजनों के साहित्य को प्रोत्साहित कर सकते हैं। आगे बढ़ा सकते हैं। उन्होंने आर. जी. कुरील का उदाहरण देते हुए कहा कि वे अपने निजी संसाधनों का उपयोग कर समाज के काम में लगे रहते हैं। यह सराहनीय है। 

इस अवसर पर “बहुजन मुक्ति आंदोलन में बहुजन साहित्य की भूमिका” विषय पर भी अनेक वक्ताओं ने अपनी बात रखी। इसके पहले साहित्यकार गिरीश कुमार वर्मा उर्फ़ डंडा लखनवी ने उद्घाटन किया। इनके अलावा हिंदी पत्रिका ‘कमेरी दुनिया’ के संपादक आर.ए. दिवाकर, कवि आर.जी. कुरील वरिष्ठ, साहित्यकार डॉ. सुरेश उजाला और साहित्यकार शिव बालक राम सरोज आदि ने भी अपने विचार रखे।  

इस मौके पर ‘बहुजन हुंकार’ के कवि व हिंदी पत्रिका ‘बहुजन सवेरा’ के संपादक आर.जी.कुरील ने अतिथियों का स्वागत करने के साथ-साथ अपनी किताब के बारे बताया। इस क्रम में उन्होंने कुछ चुनिंदा कविताओं का पाठ भी किया।

कार्यक्रम की अध्यक्षता बहुजन चिंतक गजोधर प्रसाद जी ने किया तथा संचालन जाने-माने बहुजन चिंतक और प्रखर वक्ता राजकीय पॉलिटेक्निक, इलाहाबाद के प्रधानाचार्य एस.पी. करवाल ने किया। 

(संपादन : नवल)


फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्‍त बहुजन मुद्दों की पुस्‍तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्‍स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्‍य, सस्‍क‍ृति व सामाजिक-राजनीति की व्‍यापक समस्‍याओं के साथ-साथ इसके सूक्ष्म पहलुओं को भी गहराई से उजागर करती हैं। एफपी बुक्‍स की सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +917827427311, ईमेल : info@forwardmagazine.in

फारवर्ड प्रेस की किताबें किंडल पर प्रिंट की तुलना में सस्ते दामों पर उपलब्ध हैं। कृपया इन लिंकों पर देखें 

मिस कैथरीन मेयो की बहुचर्चित कृति : मदर इंडिया

बहुजन साहित्य की प्रस्तावना 

दलित पैंथर्स : एन ऑथरेटिव हिस्ट्री : लेखक : जेवी पवार 

महिषासुर एक जननायक’

महिषासुर : मिथक व परंपराए

जाति के प्रश्न पर कबी

चिंतन के जन सरोकार

लेखक के बारे में

एफपी डेस्‍क

संबंधित आलेख

अशराफ़िया अदब को चुनौती देती ‘तश्तरी’ : पसमांदा यथार्थ की कहानियां
तश्तरी, जो आमतौर पर मुस्लिम घरों में मेहमानों को चाय-नाश्ता पेश करने, यानी इज़्ज़त और मेहमान-नवाज़ी का प्रतीक मानी जाती है, वही तश्तरी जब...
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में दलित साहित्य
दलित साहित्य के सौंदर्यशास्त्र का विकास दलित समाज, उसकी चेतना, संस्कृति और विचारधारा पर निर्भर करता है, जो एक लंबी प्रक्रिया में होते हुए...
बानू मुश्ताक की कहानियों में विद्रोही महिलाएं
सभी मुस्लिम महिलाओं को लाचार और बतौर वस्तु देखी जाने वाली बताने की बजाय, लेखिका हमारा परिचय ऐसी महिला किरदारों से कराती हैं जो...
योनि और सत्ता पर संवाद करतीं कविताएं
पितृसत्ता की जड़ें समाज के हर वर्ग में अत्यंत गहरी हो चुकी हैं। फिर चाहे वह प्रगतिशीलता के आवरण में लिपटा तथाकथित प्रगतिशील सभ्य...
रोज केरकेट्टा का साहित्य और उनका जीवन
स्वभाव से मृदु भाषी रहीं डॉ. रोज केरकेट्टा ने सरलता से अपने लेखन और संवाद में खड़ी बोली हिंदी को थोड़ा झुका दिया था।...