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प्रेम गोरखी : पंजाब के एक हमदर्द इंसान और जनसरोकारी लेखक

जाने-माने पंजाबी लघुकथा लेखक प्रेम गोरखी अपने साथियों के साथ दिल की गहराईयों से रिश्ता रखने के हामी थे। वे युवा लेखकों को प्रतिबद्धता और सरोकार के साथ लेखन करने के लिए प्रोत्साहित करते और छपास की दौड़ से दूर रहने की सलाह देते थे, बता रहे हैं रौनकी राम

प्रेम गोरखी (15 जून 1947 – 25 अप्रैल 2021) समाज के बहिष्कृत और कमजोरों में भी कमज़ोर वर्गों के लिए लिखते थे – उन वर्गों के लिए जो मुख्यधारा के लेखकों के कैनवास से बाहर रहते हैं। 

प्रेम गोरखी पंजाब के कपूरथला जिले के लाढोवाली गांव के एक साधारण दलित परिवार में जन्में थे। वे अर्जुन दास और राखी की छह संतानों में से एक थे। उनके माता-पिता ने उनका नाम रखा था प्रेम निमाना। गोरखी ने हर तरह की मुसीबतों का सामना करते हुए शिक्षा हासिल की और पंजाबी साहित्य की दुनिया में नाम कमाया। 

शीर्षस्थ पंजाबी साहित्यकार वरयाम संधू के शब्दों में, “गोरखी ऐसे पहले लेखक थे जिन्होंने सुजान सिंह के नक्शेकदम पर चलते हुए, सामाजिक उपेक्षा के शिकार लोगों के जीवन को अपने लेखन की मुख्य विषयवस्तु बनाया और सर्वहारा वर्गों के बारे में लिखने वाले कई रचनाकारों, जैसे दविंदर मांड, सोहल, देश राज काली, भगवंत रासुलपुरी और गुरमेल विर्क, को राह दिखाई। वे अपने साथियों के साथ दिल का नजदीकी रिश्ता रखने के हामी थे और उन्होंने आखिरी सांस तक अपने लोगों का साथ निभाया। वे युवा लेखकों को प्रतिबद्धता और सरोकार के साथ लेखन करने के लिए प्रोत्साहित करते थे और छपास की दौड़ से दूर रहने की सलाह देते थे।”

रासुलपुरी याद करते हैं कि उन्हें लिखे गए अपने पत्रों में गोरखी अक्सर इस आख्यान के महत्वपूर्ण पक्षों पर जोर देते थे, जिनमें शामिल होता था विषयवस्तु का विस्तृत परंतु सूक्ष्म विश्लेषण। गोरखी अत्यंत विनम्र और सरल व्यक्तित्व के स्वामी थे। जब भी कोई उन्हें किसी साहित्यिक कार्यक्रम में भाग लेने के लिए आमंत्रित करता, वे कभी ना नहीं कहते थे।  उन्होंने देस राज काली और भगवंत रासुलपुरी की कहानियों के पहले संयुक्त संकलन ‘चन्नन दी लीक’ (1992) की भूमिका लिखी। इन युवा लेखकों को प्रोत्साहित करने के लिए वे किताब के विमोचन कार्यक्रम में भी शामिल हुए। 

देस राज काली और भगवंत रासुलपुरी की कहानियों के पहले संयुक्त संकलन ‘चन्नन दी लीक’ का विमोचन करते हुए प्रेम गोरखी (बाएँ)। काली के दाहिने हाथ पर देविंदर मन्द हैं

कवि और लेखक अमरजीत चंदन ने गोरखी को एक मुकम्मल कथा लेखक के रूप में उभरते देखा। उन्होंने गोरखी को प्रोत्साहित किया कि वे उनके (गोर्की) लोगों के बारे में लिखें और वे तब गोरखी के साथ खड़े रहे जब एक साहित्यकार के रूप में उनकी बढ़ती प्रतिष्ठा से ऊंची जातियों के लेखक उनसे खार खाने लगे। चंदन ने मुझे बताया कि गोरखी अक्सर अपने शुरूआती दिनों को याद करते थे जब वे सड़क के किनारे साइकिल की मरम्मत किया करते थे। गोरखी ने जालंधर के लायलपुर खालसा कॉलेज की लाइब्रेरी में चपरासी की नौकरी भी की। उन्होंने अपनी आत्मकथा, जिसका शीर्षक ‘गैर हाज़िर आदमी’ उनके जीवन को परिभाषित करता है, में अपने इन और अन्य अनुभवों को साझा किया है। उनके नाम में ‘गोरखी’ जुड़ने का भी एक दिलचस्प  कारण है। युवावस्था में वे एक पेट्रोल पंप पर गाड़ियों में पेट्रोल भरने का काम करते थे। उसी समय उनका दिल एक नेपाली लड़की पर आ गया, जिसे गोरखी कहकर बुलाया जाता था। उसके बाद से गोरखी उनके नाम का हिस्सा बन गया। 

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प्रेम गोरखी के लेखन की जडें सन् 1960 के दशक के मध्य में पंजाब में उभरे अति-वामपंथी आंदोलन की क्रांतिकारी साहित्यिक परंपरा में थीं। पंजाब में प्रगतिशील साहित्य रचना के इस दौर के रचनाकारों में शामिल थे पाश, लाल सिंह दिल, संत राम उदासी, अमरजीत चंदन, दर्शन खटकर, हरभजन हल्वार्वी और कई अन्य। गोरखी ने अपने आसपास की दुनिया के बारे में अपनी सोच को अभिव्यक्त करने के लिए लघुकथा को अपना माध्यम बनाया। अपनी पत्रिका ‘नागमणि’ के ज़रिए अमृता प्रीतम ने भी लेखक के रूप में उनके उदय में भूमिका निभायी। ‘नागमणि’ ने उनके लेखन को एक बड़े पाठक वर्ग तक पहुंचाया। ‘कुंडा’, ‘बचना बक्कर वाड’ और ‘अर्जन सफेदी वाला’ उनकी उन कहानियों में हैं, जिन्हें बहुत सराहना मिली। 

प्रेम गोरखी की कुछ पुस्तकें: ‘गैर हाज़िर आदमी’ (आत्मकथा), ‘अर्जन सफेदी वाला’ और ‘जनरेशन गैप’ (दोनों लघु कथा संग्रह)

गोरखी की कहानियों के कई संकलन प्रकाशित हुए हैं। इनमें ‘मिट्टी के रंग’, ‘जीन मारन’, ‘ अर्जन सफेदी वाला’, ‘धरती पुत्तर’, ‘कुंडा’, ‘उक्की अक्को’, भेटी बन्दे’, विथ’, ‘धीन’ ‘आखरी कानी’, औखे वेले’, ‘जदों हमभ गिया हुकमी’, ‘मोह दियन तंदन, ‘मुंशी अल्लाहबदी’ और ‘पाला ईसाई’ शामिल हैं। वे पंजाबी ट्रिब्यून से भी जुड़े थे। 25 अप्रैल, 2021 को चंडीगढ़ में उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कहा। वे अपने पीछे एक समृद्ध विरासत छोड़ गए हैं।

गोरखी के विपुल लेखन ने बहुतों को प्रभावित किया, परंतु इसके बाद भी साहित्यिक संस्थाओं का ध्यान उन पर नहीं गया। उनके समकालीनों ने साहित्य अकादमी पुरस्कार जीते, परंतु उन्हें कोई पुरस्कार नहीं मिला। वरयाम संधू ने फेसबुक पर लिखा, “हर साल, मैं चिल्ला-चिल्लाकर कहता रहा कि उपेक्षित लेखकों को सम्मान मिलना चाहिए… गोरखी ने इतना कुछ लिखा परंतु बड़ी संस्थाओं ने उन्हें नज़रअंदाज़ किया…”

प्रेम गोरखी एक जुनूनी लेखक थे। उनके लेखन में वही गर्माहट है जो उनके रिश्तों में थी। जब भी मैं उनसे मिलता, मुझे लगता मैं उनसे पहली बारे मिल रहा हूं उनकी चुप्पी और उनकी पैनी आँखों के पीछे एक ताजगी हुआ करती थी। वे जोश, प्रेम और दूसरों के प्रति हमदर्दी से भरे रहते थे। 

(अनुवाद:अमरीश हरदेनिया, संपादन : नवल)


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लेखक के बारे में

रौनकी राम

रौनकी राम पंजाब विश्वविद्यालय,चंडीगढ़ में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर हैं। उनके द्वारा रचित और संपादित पुस्तकों में ‘दलित पहचान, मुक्ति, अतेय शक्तिकरण’, (दलित आइडेंटिटी, इमॅनिशिपेशन एंड ऍमपॉवरमेंट, पटियाला, पंजाब विश्वविद्यालय पब्लिकेशन ब्यूरो, 2012), ‘दलित चेतना : सरोत ते साररूप’ (दलित कॉन्सशनेस : सोर्सेए एंड फॉर्म; चंडीगढ़, लोकगीत प्रकाशन, 2010) और ‘ग्लोबलाइजेशन एंड द पॉलिटिक्स ऑफ आइडेंटिटी इन इंडिया’, दिल्ली, पियर्सन लॉंगमैन, 2008, (भूपिंदर बरार और आशुतोष कुमार के साथ सह संपादन) शामिल हैं।

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