h n

‘दूसरी भाषा वाले नहीं लिख सकते गोंडी साहित्य, इसमें है प्रकृति से जुड़ाव व दमन के खिलाफ आक्रोश’

गोंडी भाषा व साहित्य की अध्येता उषाकिरण आत्राम के अनुसार, गोंडी साहित्य और मराठी साहित्य या दूसरे अन्य साहित्य में बहुत फर्क है। गोंडी की अपनी भाषा है। इसमें अधिकांश मौखिक साहित्य है, लेकिन वह निसर्ग के साथ ज्यादा जुड़ा हुआ है। निसर्ग यानी धरती से– प्रकृति से जुड़ा हुआ है। पढ़ें, उनका विशेष साक्षात्कार

गोंडी भाषा व साहित्य की अध्येता उषाकिरण आत्राम से साक्षात्कार

उषाकिरण आत्राम गोंडी साहित्य की चर्चित साहित्यकार हैं। वह महराष्ट्र के गढ़चिरौली में रहती हैं। इन्होंने मराठी में भी विपुल लेखन किया है। इनकी प्रकाशित रचनाओं में ‘मोट्यारिन’ (गोंडी काव्य संग्रह), ‘म्होरकी’ (मराठी काव्य), ‘अहेर’ (मराठी कहानी), ‘एक झोंका आनंदाचा’ (मराठी बालगीत), ‘गोंडवाना की महान विरांगनाएं’ (हिन्दी), ‘गोंडवाना मे कचारगढ़ : पवित्र भूमि’ और ‘अहेराचा बदला अहेर’ (मराठी नाटक) आदि शामिल हैं। फारवर्ड प्रेस के हिंदी संपादक नवल किशोर कुमार ने उनसे दूरभाष पर विशेष बातचीत की। प्रस्तुत है इस बातचीत का संपादित अंश :

आपका जन्म कब और कहां हुआ? आपकी पारिवारिक स्थिति कैसी रही?

मेरा जन्म 28 अप्रैल, 1954 को नंदौरी गांव में हुआ। पिताजी का नाम दादाजी कुशन शाह आत्राम और मेरी आई का नाम शालूबाई था। मेरे पिताजी चन्दागढ़ आत्राम राजवंश घराने के जमींदार के बेटे थे। दादाजी का नाम सुंदरशाह आत्राम था।

पूरा आर्टिकल यहां पढें : ‘दूसरी भाषा वाले नहीं लिख सकते गोंडी साहित्य, इसमें है प्रकृति से जुड़ाव व दमन के खिलाफ आक्रोश’

लेखक के बारे में

नवल किशोर कुमार

नवल किशोर कुमार फॉरवर्ड प्रेस के संपादक (हिन्दी) हैं।

संबंधित आलेख

अशराफ़िया अदब को चुनौती देती ‘तश्तरी’ : पसमांदा यथार्थ की कहानियां
तश्तरी, जो आमतौर पर मुस्लिम घरों में मेहमानों को चाय-नाश्ता पेश करने, यानी इज़्ज़त और मेहमान-नवाज़ी का प्रतीक मानी जाती है, वही तश्तरी जब...
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में दलित साहित्य
दलित साहित्य के सौंदर्यशास्त्र का विकास दलित समाज, उसकी चेतना, संस्कृति और विचारधारा पर निर्भर करता है, जो एक लंबी प्रक्रिया में होते हुए...
बानू मुश्ताक की कहानियों में विद्रोही महिलाएं
सभी मुस्लिम महिलाओं को लाचार और बतौर वस्तु देखी जाने वाली बताने की बजाय, लेखिका हमारा परिचय ऐसी महिला किरदारों से कराती हैं जो...
योनि और सत्ता पर संवाद करतीं कविताएं
पितृसत्ता की जड़ें समाज के हर वर्ग में अत्यंत गहरी हो चुकी हैं। फिर चाहे वह प्रगतिशीलता के आवरण में लिपटा तथाकथित प्रगतिशील सभ्य...
रोज केरकेट्टा का साहित्य और उनका जीवन
स्वभाव से मृदु भाषी रहीं डॉ. रोज केरकेट्टा ने सरलता से अपने लेखन और संवाद में खड़ी बोली हिंदी को थोड़ा झुका दिया था।...