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छत्तीसगढ़ में खतरे में बघेल सरकार, राम का नाम भी नहीं आ रहा काम

बहुजन साप्ताहिकी के तहत इस बार पढ़ें छत्तीसगढ़ में पहले ओबीसी मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की कुर्सी पर छाए संकट के बारे में। साथ ही गुजरात के अहमदाबाद में दो सफाईकर्मियों की मौत कैसे हुई और कैसे सरकार ने अपने हाथ खड़े कर लिए हैं

बहुजन साप्ताहिकी

पंजाब के बाद अब छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के अंदर नेतृत्व को लेकर आपसी सिरफुटौव्वल जारी है। नतीजा यह हुआ है कि छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की कुर्सी खतरे में पड़ गयी है। उन्होंने शुक्रवार को दिल्ली में राहुल गांधी से मुलाकात करने के बाद रायपुर पहुंचने पर पत्रकारों से बातचीत में कह दिया है कि वे आलाकमान की बात मानेंगे और यदि आलाकमान ने उन्हें इस्तीफा देने को कहा तो वे इस्तीफा दे देंगे। वहीं उनके मंत्रिमंडल में शामिल स्वास्थ्य मंत्री त्रिभुवनेश्वर सिंह सिंहदेव का नाम सीएम पद के नये दावेदार के रूप में सामने आ रहा है। इससे पहले सिंहदेव गुट ने दिल्ली में पहले प्रदेश कांग्रेस प्रभारी पीएल पुनिया से मुलाकात की तथा बाद में राहुल गांधी से मिलकर अपना दावा ठोका।

छत्तीसगढ़ में मचे इस सियासी बवाल को लेकर तमाम तरह की कयासबाजियां लगायी जा रही हैं। सामाजिक कार्यकर्ता व पीयूसीएल, छत्तीसगढ़ के अध्यक्ष डिग्री प्रसाद चौहान की मानें तो कांग्रेस में वर्ण व्यवस्था को संपोषित करनेवाली ताकतें हमेशा मजबूत रही हैं। लेकिन चूंकि भाजपा अब इस मामले में कांग्रेस से आगे निकल चुकी है और द्विजों की बड़ी पार्टी बन चुकी है तथा दलितों, पिछड़ों और आदिवासियों का हस्तक्षेप बढ़ा है, इसलिए ओबीसी समुदाय के भूपेश बघेल की मेहतन के कारण कांग्रेस सत्ता में वापस लौट सकी। लेकिन अब कांग्रेस के अंदर का सामंतवाद सामने आ रहा है। उन्होंने बताया कि त्रिभुवनेश्वर सिंह सिंहदेव का संबंध राजपूत बिरादरी से है और वे सरगूजा के इलाके के राज परिवार से आते हैं।

संकट में पहले ओबीसी सीएम की कुर्सी

चौहान यह भी बताते हैं कि भूपेश बघेल की कुर्सी का संकट में आना एक संकेत और देता है कि दलित-बहुजन यदि द्विजों के सामने दंडवत भी हो जाएं तो द्विज उनके नेतृत्व को लंबे समय तक स्वीकार नहीं कर सकते हैं। भूपेश बघेल ने भाजपा और आरएसएस के एजेंडे राम वनगमन पथ परियोजना को दिल खोलकर लागू किया और यह जताने की कोशिश की कि वे भले ही पिछड़े वर्ग से आते हैं, लेकिन राम के संबंध में उनके विचार वही हैं जो भाजपा और आरएसएस के हैं या फिर कांग्रेस में राम के अनुयायियों के।

अब गुजरात के अहमदाबाद में सीवर में दो मरे, तीसरे की खोज जारी

सीवरों में सफाईकर्मियों की मौत का सिलसिला जारी है। बीते 26 अगस्त, 2021 को गुजरात के अहमदाबाद में तीन सफाईकर्मी गंदे नाले की सफाई करने उतरे थे। नाले में जहरीली गैस का रिसाव था और इस कारण दो कर्मियों की मौत हो गई। उनकी लाश को अहमदाबाद पुलिस और अहमदाबाद प्रशासन ने बाहर निकाल लिया। तीसरे कर्मी की लाश नाले में ही फंसी है। उसे निकालने के लिए एक अलग से गड्ढा खोदा जा रहा है। स्थानीय प्रशासन ने तीसरे कर्मी की मौत की संभावना व्यक्त की है।

मिली जानकारी के अनुसार सीवर में उतरे कर्मियों के पास कोई सुरक्षा उपकरण नहीं था। यह स्थिति तब है जबकि सुप्रीम कोर्ट द्वारा 2018 में ही गाइडलाइन जारी किया जा चुका है कि बिना सुरक्षा उपकरणों के सफाईकर्मियों को सीवर में न उतारा जाय। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि सफाई के काम का जितना मशीनीकरण हो सकता है, किया जाय। यह कहना अतिश्योक्ति नहीं कि सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन का अनुपालन दिल्ली में भी नहीं किया जा रहा है। आए दिन दिल्ली में सफाईकर्मियों की मौत की सूचनाएं प्रकाश में आती हैं।

बहरहाल, इस घटना के बाद अहमदाबाद नगर निगम प्रशासन ने अपने यह कहकर अपने हाथ खड़े कर लिए हैं कि तीनों सफाईकर्मी मजदूर उसके द्वारा नियोजित नहीं थे। निगम ने नाले की सफाई कराने का काम एक ठेकेदार को दे रखा है। तीनों उसी ठेकेदार के कर्मचारी थे। 

एक साल के अंदर सभी केंद्रीय उच्च शिक्षण संस्थानों में बैकलॉग भरे जाने का निर्देश

केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने बीते 24 अगस्त को एक निर्देश जारी किया है। मंत्रालय के सचिव अमित खरे की ओर से 24 अगस्त, 2021 को जारी निर्देश के मुताबिक सभी केंद्रीय उच्च शिक्षण संस्थानों व विश्वविद्यालयों में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग व आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए आरक्षित व रिक्त पड़े पदों को मिशन मोड में एक साल के अंदर भरा जाना है। इसके लिए 5 सितंबर, 2021 से लेकर 4 सितंबर, 2022 तक का समय दिया गया है। साथ ही सभी शिक्षण संस्थानों के प्रमुखों को हर महीने की प्रगति रिपोर्ट देने की मांग की गयी है। 

शिक्षा मंत्रालय के इस रूख का अनेक लोगों ने स्वागत किया है और उम्मीद जतायी है कि इससे बैकलॉग को खत्म करने में मदद मिलेगी। वहीं कुछ लोगों का यह भी मानना है कि यह चुनावी मौसम में एक शिगूफा मात्र है। उनके मुताबिक मंत्रालय द्वरा जारी पत्र में स्पष्ट रूप से इसका उल्लेख नहीं किया गया है कि किस काल से रिक्त पड़े बैकलॉग को भरा जाना है। 

झारखंड के आदिवासी संगठन भी जातिगत जनगणना के पक्ष में

जातिगत जनगणना के पक्ष में अब झारखंड के आदिवासी संगठन भी खड़े हो गए हैं। झारखंड जनाधिकार महासभा ने इसके समर्थन में बयान जारी किया है। महासभा से संबद्ध आलोका कुजूर ने इस संबंध में कहा कि जातिगत जनगणना के साथ ही अन्य गैरपरंपरागत या अब तक अनदेखे सामाजिक समुदायों की भी गणना होनी चाहिए। थर्ड सेक्स, अन्तर्जातीय अन्तर्धार्मिक विवाहों से बने समूह अब नजर आने लगे हैं। कई और ऐसे समुदाय होंगे जो अबतक अदृश्य हैं और जिन्हें देखना और दर्ज करना जरूरी हो। यह खुले और सूक्ष्म सर्वेक्षण से ही संभव होगा।

उन्होंने कहा कि वार्ड सदस्यों, ग्राम सभाओं के जरिये ज्यादा प्रामाणिक तौर पर और ज्यादा तेजी से ऐसी सामाजिक व सांस्कृतिक जनगणना हो सकती है। इसे ध्यान में रखते हुए इन्हें जनगणना में शामिल करना चाहिए। उन्होंने कहा कि जाति एक सामाजिक-आर्थिक सच्चाई है, जिसका असर लोगों के जीवन और शासन के हर आयाम पर होता है। विशेषाधिकार और वर्जना पर आधारित श्रेणीबद्धता की यह संरचना समता, स्वतंत्रता, न्याय और खुशहाली की संभावनाओं पर नाकेबन्दी किये बैठी है। इस नाकेबन्दी को ढाहने के लिए ही आरक्षण और सामाजिक कल्याण की नीतियाँ और योजनाएँ चलायी जाती हैं। कुजूर ने यह भी कहा कि जिस तरह आर्थिक लक्ष्यों और योजनाओं को तय करने के लिए आर्थिक परिस्थिति व आर्थिक समूहों की पूरी एवं सूक्ष्म से सूक्ष्म जानकारी होनी चाहिए, उसी तरह सामाजिक सांस्कृतिक लक्ष्यों और योजनाओं के लिए सामाजिक स्थितियों, सामाजिक सांस्कृतिक समूहों की ज्यादा से ज्यादा जानकारी जरूरी है और इसके लिए जातीय जनगणना भी जरूरी है।

ओबीसी के लिए ‘नो वैकेंसी’

साऊथ इस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड, बिलासपुर, छत्तीसगढ़ को मिनी सरकारी रत्न का दर्जा हासिल है। भारत सरकार के अधीन इस लोकउपक्रम के द्वारा बीते 24 अगस्त, 2021 को एक विज्ञापन जारी किया गया है जिसमें पिछड़ा वर्ग के लिए कोई रिक्ति नहीं दिखायी गयी है। विज्ञापन के मुताबिक लिपिकीय संवर्ग के 196 पदों के लिए नियुक्तियां होनी हैं। हालांकि इसमें कोई बाहरी अभ्यर्थी भाग नहीं ले सकेंगे। यह विज्ञापन केवल उनके लिए है जो इस उपक्रम में पहले से कार्यरत हैं। विज्ञापन के अनुसार। 196 पदों में से 90 पद अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के लिए 37 और सामान्य वर्ग के लिए 69 पद निर्धारित हैं। पूरे विज्ञापन में ओबीसी की चर्चा नहीं की गयी है।

(संपादन : अनिल)

लेखक के बारे में

नवल किशोर कुमार

नवल किशोर कुमार फॉरवर्ड प्रेस के संपादक (हिन्दी) हैं।

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