h n

शीर्षक को सार्थक करती फिल्म ‘जय भीम’

पेरियार की भूमि तमिलनाडु में बनी फिल्म ‘जय भीम’ दरअसल, ‘कर्णन’, ‘जलीकट्टू’, ‘असुरन’ और ‘काला’ जैसी फिल्मों की ही एक अगली कड़ी है, जो फिल्मों के बहुजन युग की धमाकेदार शुरूआत है और ये फिल्में इस तथ्य को भी रेखांकित कर रही हैं कि ऐसी फिल्मों का एक बहुत बड़ा देशव्यापी बहुजन दर्शक वर्ग है। बता रहे हैं सिद्धार्थ

इतिहास में अभिवादन के कुछ तरीके और कुछ नारे किसी वैचारिकी की अंतर्वस्तु एवं विरासत के सारे तत्वों को अपने में समेट लेते हैं, ऐसे ही अभिवादनों में एक ‘जय भीम’ है। जय भीम के अभिवादन एवं नारे का भारत के संदर्भ वही स्थान है, जो वैश्विक स्तर पर मेहनतकश मजदूरों की समाजवादी क्रांतिकारी परंपरा में ‘लाल सलाम’ का है। भारत की वर्ण-जाति, नृजातीय, पेशा, जीवन-पद्धति, लिंग-भेद, आधारित वैदिक आर्य ब्राह्मणवादी हिंदू धर्म एवं विश्व-दृष्टिकोण के बरक्स न्याय, समता और बंधुता आधारित सामाजिक व्यवस्था, संस्कृति, जीवन-पद्धति और विश्व दृष्टिकोण का नाम बहुजन वैचारिकी है। इसी बहुजन वैचारिकी पर आधारित है टी. जे. नानवेल द्वारा निर्देशित फिल्म ‘जय भीम’, जो इन्हीं अर्थों में ‘जय भीम’ अभिवादन एवं नारे के साथ न्याय करती है और उसके पूरे निहितार्थ को अभिव्यक्त करती है।

पूरा आर्टिकल यहां पढें : शीर्षक को सार्थक करती फिल्म ‘जय भीम’

 

लेखक के बारे में

डॉ. सिद्धार्थ रामू

डॉ. सिद्धार्थ रामू लेखक, पत्रकार और अनुवादक हैं। “सामाजिक क्रांति की योद्धा सावित्रीबाई फुले : जीवन के विविध आयाम” एवं “बहुजन नवजागरण और प्रतिरोध के विविध स्वर : बहुजन नायक और नायिकाएं” इनकी प्रकाशित पुस्तकें है। इन्होंने बद्रीनारायण की किताब “कांशीराम : लीडर ऑफ दलित्स” का हिंदी अनुवाद 'बहुजन नायक कांशीराम' नाम से किया है, जो राजकमल प्रकाशन द्वारा प्रकाशित है। साथ ही इन्होंने डॉ. आंबेडकर की किताब “जाति का विनाश” (अनुवादक : राजकिशोर) का एनोटेटेड संस्करण तैयार किया है, जो फारवर्ड प्रेस द्वारा प्रकाशित है।

संबंधित आलेख

इन कारणों से बौद्ध दर्शन से प्रभावित थे पेरियार
बुद्ध के विचारों से प्रेरित होकर पेरियार ने 27 मई, 1953 को ‘बुद्ध उत्सव’ के रूप में मनाने का आह्वान किया, जिसे उनके अनुयायियों...
यात्रा संस्मरण : जब मैं अशोक की पुत्री संघमित्रा की कर्मस्थली श्रीलंका पहुंचा
पर्यटन के दृष्टिकोण से एक पहाड़ी पर रावण का महल भी बता दिया गया है और लिख भी दिया गया है। वैसे ही अनुराधापुर...
ईश्वरवाद और भारतीय समाज की जड़ता
जातिवाद के चलते भारत में माना गया कि ब्राह्मण कुल में जन्म लेना ही ज्ञान की विरासत का वारिस बन जाना है। निहित स्वार्थ...
‘दुनिया-भर के मजदूरों के सुख-दुःख, समस्याएं और चुनौतियां एक हैं’
अपने श्रम का मूल्य जानना भी आपकी जिम्मेदारी है। श्रम और श्रमिक के महत्व, उसकी अपरिहार्यता के बारे में आपको समझना चाहिए। ऐसा लगता...
सावित्रीबाई फुले, जिन्होंने गढ़ा पति की परछाई से आगे बढ़कर अपना स्वतंत्र आकार
सावित्रीबाई फुले ने अपने पति जोतीराव फुले के समाज सुधार के काम में उनका पूरी तरह सहयोग देते हुए एक परछाईं की तरह पूरे...