जगदेव प्रसाद (2 फरवरी, 1922 – 5 सितंबर, 1974) की जन्मशती के मौके पर विशेष
भारत लेनिन अमर शहीद जगदेव प्रसाद की आज (2 फरवरी 2022) सौवीं जयंती है। उन्हें जानने, समझने और चाहने वाले लोग जयंती मनाते रहे हैं। इसे सियासती रंग भी दे दिया गया है। परंतु, अफसोस की बात यह है कि जिन सात मांगों को लेकर 5 सितंबर, 1974 को कुर्था प्रखंड कार्यालय परिसर में शोषित समाज दल के बैनर तले दल के राष्ट्रीय महामंत्री की हैसियत से जगदेव बाबू शांतिपूर्ण प्रदर्शन करते हुए शहीद हो गए, वे मांग आज तक पूरा नहीं हो सके। यदि उनकी सभी मांगों को मान लिया गया होता तो आज पिछड़े, दलित और मुसलमानों को बदहाली, अत्याचार और शोषण का सामना नहीं करना पड़ता।
1974 में कांग्रेसी शासन के विरुद्ध जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में संपूर्ण क्रांति आंदोलन चल रहा था तो दूसरी ओर शोषित समाज दल के संस्थापक राष्ट्रीय अध्यक्ष रामस्वरूप वर्मा के नेतृत्व में शोषित आंदोलन चलाया जा रहा था, जिसकी कमान संस्थापक महामंत्री जगदेव प्रसाद के मजबूत हाथों में थी। इसके तहत सभी प्रखंडों और जिलों में मांगों के समर्थन में धरना-प्रदर्शन किया जा रहा था। उसी क्रम में अरवल (तत्कालीन गया जिला) के कुर्था प्रखंड पर प्रदर्शन के दौरान कांग्रेसी पुलिस ने गोली मारकर निर्ममतापूर्वक उनकी हत्या कर दी। यह घटना 5 सितंबर 1974 की है।
उनकी चौथी मांग थी– सामाजिक और शैक्षणिक आधार पर पिछड़े वर्गों को जनसंख्या के अनुपात आरक्षण दिया जाय तथा अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के स्थानों को सुरक्षित रखकर हर साल उनकी नियुक्ति हो। यह मांग वे 1960-70 के दशक में कर रहे थे।
आज की पीढ़ी को जगदेव प्रसाद के विचारों और मांगों के बारे में बताया जाना जरूरी है। उनकी कुल मुख्य सात मांगें थीं। पहली मांग थी– अनिवार्य और समान शिक्षा लागू करो। उनका मानना था कि शिक्षा संबंधी उनकी इस मांग को अमल में लाया जाय तो अशिक्षा, अपराध, बेरोजगारी, अंधविशास, कुरीति, भ्रष्टाचार, शोषण, ठगी आदि में कमी आ जाएगी और जेलों की संख्या में भी कमी आ जाएगी। परंतु, उनकी इस मांग को न तो केंद्र सरकार ने और ना ही राज्य सरकार ने ही पूरा किया है। हालांकि बाद में शिक्षा को अनिवार्य करने की घोषणा केंद्र सरकार को 2010 में करनी पड़ी।
जगदेव बाबू की दूसरी मांग थी कि डॉ. भीमराव आंबेडकर का सारा साहित्य देश के सभी छात्रावासों, और पुस्तकालयों में रखवाया जाय। वहीं तीसरी मांग थी कि भ्रष्टाचार, बेकारी, और महंगाई को दूर करो तथा सभी मतदाताओं को फोटोवाला परिचय पत्र देकर मतदान को अनिवार्य करो। उनकी इस मांग को 1990 के दशक में अमल में लाया गया। हालांकि मतदान को अनिवार्य बनाए जाने संबंधी उनकी मांग अभी भी अधूरी है।
उनकी चौथी मांग थी– सामाजिक और शैक्षणिक आधार पर पिछड़े वर्गों को जनसंख्या के अनुपात आरक्षण दिया जाय तथा अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के स्थानों को सुरक्षित रखकर हर साल उनकी नियुक्ति हो। यह मांग वे 1960-70 के दशक में कर रहे थे। वर्ष 1974 में उनकी हत्या कर दी गयी और उसके बाद 1977 में आई मोरारजी देसाई की हुकूमत ने मंडल आयोग का गठन किया और उसकी अनुशंसा को 1990 में लागू किया गया।
जगदेव बाबू की पांचवीं मांग थी– भूमिहीनों अथवा एक एकड़ तक भूमि वाले दलित, गिरिजनों को 5 साल के अंदर सरकारी वनभूमि में इंसानी बस्ती बसाकर व रोजगार की गारंटी देकर स्वावलंबी तथा स्वाभिमानी बनाया जाय। छठी मांग थी कि किसानों के लिए सात वर्षों के अंदर सिंचाई का प्रबंध सुनिश्चित किया जाय। सातवीं मांग थी कि खेत मजदूरी अधिनियम व बटाईदारी कानून लागू हो।
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इस प्रकार हम देखते हैं कि जगदेव प्रसाद जमीन से जुड़े नेता थे और समाज का समग्र विकास कैसे हो, इसके लिए उनके पास स्पष्ट रोडमैप था। बहुसंख्यक दलित, पिछड़े और आदिवासियों के बीच उनकी लोकप्रियता बढ़ती जा रही थी। यदि उनकी हत्या सामंतियों ने नहीं की होती तो निश्चित तौर पर वे बिहार के मुख्यमंत्री बन जाते और समतामूलक समाज के निर्माण हेतु अपने विचारों को लागू करते।
सर्वविदित हैं कि आजादी के बाद देश के तमाम 90 प्रतिशत पिछड़े, दलितों और मुसलमानों को गरीबी, अपमान शोषण, अत्याचार, अशिक्षा, अंधविश्वास आदि विरासत में मिली थी। उन तमाम समस्याओं के समाधान के लिए पहली बार 60-70 के दशक में जगदेव प्रसाद और रामस्वरूप वर्मा ने मिलकर 90 प्रतिशत का एक नया समीकरण दिया था। राजनीतिक समाधान के लिए 7 अगस्त 1972 को पिछड़े दलितों का निछक्का (विशुद्ध रूप से केवल दलित, पिछड़े, आदिवासी व अल्पसंख्यक) राजनीतिक दल शोषित समाज दल बनाया था। इस माध्यम से समाजवाद की विचारधारा को आगे बढ़ाने का मार्ग प्रशस्त किया था।
ध्यातव्य है कि 1 जून, 1968 को रामस्वरूप वर्मा ने लखनऊ में अर्जक संघ की स्थापना की ताकि मानववाद स्थापित हो सके। जगदेव बाबू ने जब अर्जक संघ के नीति, सिद्धांत, कार्यक्रम को देखा और पढ़ा तो उन्होंने इसे अंगीकार किया और बिहार समेत देश के कई भागों में प्रचार प्रसार करना शुरू कर दिया। वे वैज्ञानिक सोच वाले, साहसी, स्वाभिमानी और अच्छे संगठनकर्ता थे। उन्होंने ऊंची जाति के जुल्म के खिलाफ आवाज उठाना शुरू कर दिया था। साथ ही, तमाम 90 प्रतिशत शोषितों को जगाना भी प्रारंभ कर दिया था।
कहना अतिश्योक्ति नहीं कि यदि जगदेव बाबू की हत्या सामंती तबके ने नहीं की होती तो आज बिहार की स्थिति वैसी नहीं रहती। नब्बे फीसदी की हिस्सेदारी रखनेवाला बहुजन वर्ग खुशहाल होता।
(संपादन : नवल/अनिल)
Bahut sari jankari aisi mili jiske bare me ni pata tha..bahut hi achi article and forward press ki bahut achi bhumika ki is tarah ki article la rahe