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1886 का उड़ीसा अकाल और त्रासदियों का यथार्थपरक विश्लेषण

सबसे गंभीर प्रभावितों को भोजन उपलब्ध करवाने वाले केंद्रों में शरण लेनी पड़ी, जहां वे औपनिवेशिक प्रशासन और परोपकारी संस्थारओं की मदद से जिंदा भर रह सके। उनमें से कुछ को तो उनकी जाति से बाहर कर दिया गया, क्योंकि उन्होंने अन्य जातियों के लोगों के साथ भोजन किया था। बिद्युत मोहंती की पुस्‍तक 'ए होन्‍टिंग ट्रेजेडी' की ज्यां द्रेज द्वारा समीक्षा

पुस्तक समीक्षा

बहुत समय नही गुज़रा जब भारत में अकाल में स्‍थानीय आबादी का एक-तिहाई हिस्‍सा काल कवलित हो जाता था। सन् 1866 में उड़ीसा में एक भयावह अकाल पड़ा था। वह एक ‘होन्‍टिंग ट्रेजेडी’ (लम्‍बे समय तक याद रहने वाली त्रासदी) थी। और यही बिद्युत मोहंती की इस विषय पर‍ लिखी गई विचारोत्‍तेजक पुस्‍तक का शीर्षक है।

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लेखक के बारे में

ज्यां द्रेज

ज्यां द्रेज बेल्जियन मूल के भारतीय नागरिक हैं और सम्मानित विकास अर्थशास्त्री हैं। वे रांची विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के अतिथि प्राध्यापक हैं और दिल्ली स्कूल आॅफ इकानामिक्स में आनरेरी प्रोफेसर हैं। वे लंदन स्कूल आॅफ इकानामिक्स और इलाहबाद विश्वविद्यालय में शिक्षण कार्य कर चुके हैं। भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था की स्थिति के दस्तावेजीकरण में उनकी महती भूमिका रही है। वे (महात्मा गांधी) राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम के प्रमुख निर्माताओं में से एक हैं। उन्हाेंने नोबेल पुरस्कार विजेता अर्मत्य सेन के साथ कई पुस्तकों का सहलेखन किया है जिनमें ‘हंगर एंड पब्लिक एक्शन‘ व ‘एन अनसरटेन ग्लोरी : इंडिया एंड इटस कोन्ट्राडिक्शंस‘ शामिल हैं। सामाजिक असमानता, प्राथमिक शिक्षा, बाल पोषण, स्वास्थ्य सुविधाओं व खाद्य सुरक्षा जैसे विषयों पर शोध में उनकी विशेष रूचि है

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