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‘सत्राची सम्मान’ – 2022 से सम्मानित होंगे प्रो. चौथीराम यादव

इस बार पढ़ें, प्रो. चौथीराम यादव को मिले सत्राची सम्मान के अलावा संसद में चांडाल शब्द के उपयोग पर प्रतिबंध, हिमांशु कुमार को पांच लाख रुपए के जुर्माने व महराष्ट्र में ओबीसी राजकीय अघाड़ी पार्टी के गठन संबंधी खबर

बहुजन चिंतक और साहित्य समालोचक प्रो. चौथीराम यादव को इस साल के सत्राची सम्मान से सम्मानित किया जाएगा। इस आशय की जानकारी सत्राची फाउंडेशन, पटना के निदेशक डॉ. आनंद बिहारी द्वारा दी गई है। संस्थान के मुताबिक सत्राची सम्मान – 2022 के लिए प्रो. वीर भारत तलवार की अध्यक्षता में चयन समिति गठित की गयी थी। इस समिति के सदस्य पटना विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के अध्यक्ष प्रो. तरुण कुमार और ‘सत्राची’ के प्रधान संपादक प्रो. कमलेश वर्मा थे। इस सम्मान के तहत आगामी 20 सितम्बर, 2022 को प्रो. वीर भारत तलवार की अध्यक्षता में प्रो. चौथीराम यादव को सम्मान-स्वरूप इक्यावन हजार रुपए का चेक, मानपत्र, अंगवस्त्र और स्मृति-चिह्न प्रदान किया जाएगा।

डॉ. आनंद बिहारी ने बताया कि सत्राची सम्मान की शुरुआत 2021 से की गयी है। इसका उद्देश्य न्यायपूर्ण सामाजिक सरोकारों से जुड़े लेखन को रेखांकित करना है। उन्होंने बताया कि प्रो. चौथीराम यादव के लेखन और भाषणों के केंद्र में एक ऐसे समाज की परिकल्पना रही है जो न्यायपूर्ण हो। उन्होंने भारत के विभिन्न शहरों में अनेक सभाओं को संबोधित किया है। अकादमिक संगोष्ठियों, जनसभाओं और आंदोलनों में उन्होंने असंख्य भाषण किए हैं। बुद्ध-कबीर-फुले-आंबेडकर की वैचारिक परंपरा से प्रतिबद्ध रहते हुए उन्होंने न्यायपूर्ण सामाजिक सरोकारों को नयी पीढ़ी तक पहुंचाया है। 

बताते चलें कि 29 जनवरी, 1941 को कायमगंज, जौनपुर, उत्तर प्रदेश के एक सामान्य किसान परिवार में जन्मे चौथीराम यादव हिंदी के प्रसिद्ध आलोचक, विचारक और वक्ता हैं। उनकी प्रारम्भिक शिक्षा जौनपुर जिले की शिक्षण संस्थाओं में हुई। उन्होंने स्नातक-स्नातकोत्तर एवं पीएचडी की उपाधि हिंदी विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी से प्राप्त की। यहीं 1971 से 2003 तक अध्यापन करते हुए वे प्रोफ़ेसर एवं अध्यक्ष के पद से सेवामुक्त हुए।  

प्रो. चौथीराम यादव की तस्वीर

प्रो. चौथीराम यादव ने हजारी प्रसाद द्विवेदी और छायावाद पर गंभीर अकादमिक काम किए हैं। उनकी प्रमुख पुस्तकों में ‘हजारीप्रसाद द्विवेदी समग्र पुनरावलोकन’, ‘सांस्कृतिक पुनर्जागरण और छायावादी काव्य’, ‘लोकधर्मी साहित्य की दूसरी धारा’, ‘उत्तरशती के विमर्श और हाशिए का समाज’, ‘लोक और वेद आमने-सामने’, ‘आधुनिकता का लोकपक्ष और साहित्य’ आदि शामिल हैं।

संसद में ‘चांडाल’ शब्द के उपयोग पर प्रतिबंध

गत 14 जुलाई को संसद के मानसून सत्र के दौरान असंसदीय शब्दों को लेकर घमासान मचा। जहां एक ओर विपक्षी सदस्यों ने इसे लेकर सत्ता पक्ष को घेरा और अभिव्यक्ति की आजादी पर प्रतिबंध तक की संज्ञा दी, तो दूसरी ओर लोकसभा अध्यक्ष ने कहा कि किसी भी शब्द के उपयोग पर प्रतिबंध नहीं लगाया गया है। हर साल असंसदीय शब्दों की सूची तैयार की जाती है और उसे सभी सदस्यों के पास भेजा जाता है। दरअसल, जिन शब्दों को लेकर संसद में घमासान मचा, उनमें शामिल मुख्य शब्द हैं–जुमलाजीवी, बाल बुद्धि सांसद, शकुनी, जयचंद, लालीपाॅप, चांडाल चौकड़ी, गुल खिलाए, तानाशाह, भ्रष्ट्, ड्रामा, अक्षम और पिट्ठू। इन शब्दों में चांडाल शब्द भी शामिल है, जो कि दलित वर्ग में शामिल जाति के लिए अपमानजनक तरीके सेइस्तेमाल किया जाता है। हालांकि इनमें अधिकांश वे शब्द हैं, जिनका उपयोग विपक्ष द्वारा हाल के वर्षों में सत्ता पक्ष के लिए किया जाता रहा है।

हिमांशु कुमार ने पांच लाख रुपए का जुर्माना भरने से किया इंकार

प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता हिमांशु कुमार को सुप्रीम कोर्ट ने चार सप्ताह के अंदर पांच लाख रुपए का जुर्माना जमा करने का आदेश दिया है। साथ ही अदालत ने छत्तीसगढ़ सरकार को उनके खिलाफ कार्रवाई करने की छूट भी दी है। दरअसल, हिमांशु कुमार ने वर्ष 2009 में कथित तौर पर सुरक्षा बलों द्वारा आदिवासियों की न्यायेत्तर हत्या के संबंध में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर निष्पक्ष जांच की मांग की थी। 

कल यानी 14 जुलाई, 2022 को इस मामले में न्यायमूर्ति ए.एम. खानविलकर और न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला की खंडपीठ ने फैसला सुनाया। खंडपीठ ने हिमांशु कुमार की याचिका को खारिज करते हुए टिप्पणी की कि याचिकाकर्ता की याचिका साजिश या जांच किये जाने पर अन्य अपराध का मामला भी सामने आ सकता है। इसके साथ ही उसने छत्तीसगढ़ सरकार को धारा 211 के तहत याचिकाकर्ता हिमांशु कुमार के खिलाफ कार्रवाई करने की छूट दी।

वहीं इस संबंध में हिमांशु कुमार ने सोशल मीडिया पर अपने संदेश में कहा है कि वह जुर्माना नहीं भरेंगे। उनके मुताबिक, जुर्माना भरने का मतलब गलती कबूल करना है। लेकिन उनका मानना है कि आदिवासियों के हितों का सवाल उठाकर उन्होंने कोई गलती नहीं की है।

श्रावण देवरे ने किया ओबीसी राजकीय आघाड़ी पार्टी का गठन

महाराष्ट्र के प्रसिद्ध ओबीसी सामाजिक कार्यकर्ता प्रो. श्रावण देवरे ने ओबीसी राजकीय आघाड़ी नामक का पार्टी का गठन किया है। इस संबंध में उन्होंने बताया कि “तमिलनाडु, बिहार, उत्तर प्रदेश की तरह महाराष्ट्र में ओबीसी वोटबैंक मजबूत करना है तो ओबीसी की स्वतंत्र स्वाभिमानी पार्टी स्थापित करने की जरूरत है। हमने इसकी शुरुआत की है। ‘ओबीसी राजकीय आघाड़ी’ नाम की पार्टी स्थापित करके ओबीसी की मजबूत राजनीति की शुरुआत हमने की है। अपने अपने ओबीसी संगठनों का अस्तित्व कायम रखते हुए भी इस राजनीतिक मोर्चे में शामिल हुआ जा सकता है।” 

(संपादन : अनिल)


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लेखक के बारे में

नवल किशोर कुमार

नवल किशोर कुमार फॉरवर्ड प्रेस के संपादक (हिन्दी) हैं।

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