आदिवासी बहुल राज्य छत्तीसगढ़ का एक जिला है जांजगीर चांपा। यह खबर लिखे जाने तक इस जिले के बाराद्वार थाने के इलाके में सतनामी समाज (दलित) के लोग एक अधजली लाश के साथ सड़क पर प्रदर्शन कर रहे हैं। उनकी मांग है कि जिला और पुलिस प्रशासन इस अधजली लाश को फिर उसी श्मशान घाट पर जलाने में सहयोग करे, जहां दो दिन पूर्व इसे जलने नहीं दिया गया। इस मामले में आरोपी पक्ष आदिवासी समुदाय के हैं।
दरअसल, बीते 27 जुलाई, 2022 को बाराद्वार बस्ती के ही भैयालाल पाटले के बेटे प्रदीप पाटले ने फांसी लगाकर खुदकुशी कर ली। स्थानीय पुलिस द्वारा शव काे अंत्यपरीक्षण के लिए स्थानीय अस्पताल में भेजा गया। करीब चार बजे परिजनों को मृतक की लाश सौंप दी गयी। बाराद्वार बस्ती के ही निवासी और भैयालाल पाटले के पड़ोसी नरेश लहरे ने दूरभाष पर बताया कि “हम स्वयं भी सतनामी समाज के हैं और दलित वर्ग से आते हैं। परसों जब प्रदीप पाटले की मौत की सूचना मिली तो हम सब दुखी थे। लाश मिलने के बाद हम उसका अंतिम संस्कार करने के लिए बस्ती में ही सतनामी समाज के लिए बनाए गए श्मशान स्थल ले जाना चाहते थे। इस श्मशान स्थल पर टीन की छत का निर्माण नहीं किया गया है। जब हम पहुंचे तो बारिश होने तथा श्मशान स्थल पर पानी व दलदल होने के कारण वहां लाश का अंतिम संस्कार संभव नहीं था। इसलिए हमलोग गतवा तालाब के पास श्मशान घाट गए। हमलोगों ने चिता सजायी और लाश को जलाने लगे। करीब दस-पंद्रह मिनट हुए होंगे कि गांव के सरपंच जगदीश उरांव कुछ लोगों को साथ वहां आ गए और वे सब चिता पर पानी डालने लगे। इस क्रम में वे सतनामी समाज के लोगों को जातिसूचक गालियां भी दे रहे थे। इतना ही नहीं, वे लाश को लात से मार रहे थे।”
बाराद्वार बस्ती की सामाजिक संरचना के बारे में नरेश लहरे ने बताया कि यहां मुख्य रूप से दलित, आदिवासी, ओबीसी समाज के लोग रहते हैं। सबसे अधिक आबादी दलित वर्ग की है। दो-चार परिवार ही सवर्ण हैं। क्या पूर्व में भी आदिवासी समाज के बीच विवाद हुआ था, के जवाब में लहरे ने बताया कि पहले छोटे-मोटे विवाद जरूर हुए लेकिन सामाजिक भेदभाव का यह पहला मामला है। हालांकि लहरे ने सरपंच जगदीश उरांव पर शराब पीकर सतनामी समाज के लोगों को गालियां देने का आरोप लगाया है।
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इस घटना के बारे में मृतक के पिता भैयालाल पाटले ने बताया कि उन्होंने घटना की शिकायत बाराद्वार थाने में दर्ज करायी है। उन्होंने अपनी प्राथमिकी में जगदीश उरांव (सरपंच), अमृत उरांव, राजकुमार उरांव, विश्राम उरांव, सहदेव उरांव, सिपाही लाल उरांव, उमाशंकर उरांव, कमलेश उरांव को नामजद अभियुक्त बनाया है।
बताते चलें कि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत यह मामला दर्ज नहीं किया गया है, क्योंकि इसमें पीड़ित और उप्तीड़क क्रमश: दलित और आदिवासी हैं। बाराद्वार थाने के प्रभारी ने इसकी पुष्टि करते हुए बताया कि भैयालाल पाटले की शिकायत पर आईपीसी की धारा 147 और 297 के तहत एफआईआर दर्ज कर ली गयी है। लेकिन लोग अभी अधजली लाश के साथ प्रदर्शन कर रहे हैं और कह रहे हैं कि आरोपियों की गिरफ्तारी नहीं हुई है। इस संबंध में पूछने पर थाना के अधिकारी ने कहा कि चार आरोपियों की गिरफ्तारी की जा चुकी है, जिनमें एक मुख्य आरोपी सरपंच जगदीश उरांव भी शामिल है।
दरअसल, बाराद्वार के सतनामी समाज के प्रदर्शनकारी लोग चाहते हैं कि उनके समाज के एक युवक की लाश को जिस तरीके से अपमानित किया गया और उसे जलने नहीं दिया गया, उसकी भरपाई तभी संभव है जब उस लाश को उसी श्मशान स्थल पर सम्मान के साथ जलाया जाय। उनकी यह भी मांग है कि सारे आरोपियों को गिरफ्तार कर जेल भेजा जाय। उनका कहना है कि स्थानीय थाना के अधिकारी इस मामले में झूठ बोल रहे हैं। वे पूरे मामले को रफा-दफा करना चाहते हैं।
बहरहाल, इस पूरी घटना ने राज्य के अनेक सामाजिक कार्यकर्ताओं को सोचने पर मजबूर कर दिया है कि किन कारणों से आदिवासी समुदाय के लोग भी दलितों के उपर अत्याचार कर रहे हैं? इस संबंध में पीयूसीएल, छत्तीसगढ़ के अध्यक्ष डिग्री प्रसाद चौहान ने दूरभाष पर अपनी प्रतिक्रिया में कहा कि निश्चित तौर पर यह दुखद घटना है। एससी और एसटी समुदाय के लोग हमेशा पीड़ित रहे हैं। उनका उत्पीड़न अबतक ऊंची जातियों के लोग करते रहे हैं। लेकिन अब यह एससी और एसटी समुदाय के बीच हो रहा है। इस मामले में आरोपियों के खिलाफ कानूनसम्मत कार्रवाई होनी भी चाहिए। साथ ही, यह स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारी भी है कि वे वंचित समाज के बीच समन्वय बनाने का प्रयास करें।
(संपादन : अनिल)
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