जहां एक ओर ‘ओवर द टॉप’ (ओटीटी) प्लेटफार्म ने दुनियाभर की फिल्मों, वेब सीरीज आदि के माध्यम से भारतीयों को वैश्विक दृष्टिकोण दिया, वहीं दूसरी और भारतीय सवर्ण निर्माताओं ने इसे भी अपनी दक़ियानूसी और संकुचित दृष्टिकोण के जाल में बांध लिया। जबकि ओटीटी प्लेटफार्म पर एंटी-कास्ट (जाति-विरोधी) पृष्ठभूमि से आनेवाले निर्माताओं और कलाकारों ने जहां ऐसी फ़िल्में पेश कीं, जो पूर्व में जितनी भी जाति और इससे जुड़े मुद्दे पर बनी फिल्में हैं, उन सबको आईना दिखाया तथा उनके इस तरह के सामाजिक पहलुओं पर फिल्म बनाने के पैमाने को ही बदल डाला। उन्होंने दिखाया है कि एक दलित ग़रीब तो हो सकता है, मगर लाचार नहीं। वह अपनी आवाज ख़ुद उठाना जानता है। उसे किसी सवर्ण मसीहा की ज़रूरत नहीं है। इसका सबसे बढ़िया उदाहरण हैं– कर्नन, असुरन, काला, कबाली, एवं जय भीम आदि। इस तरह की फिल्मों की सूची अब लंबी हो चुकी है और इसमें वृद्धि अनवरत जारी है।