नेशनल एलिजीबिलिटी कम इंट्र्रेंस टेस्ट के स्नातक परीक्षा (एनईईटी-यूजी) में भ्रष्टाचार का सवाल इस समय देश में सबसे बड़ा मुद्दा बना हुआ है। कहा जा रहा है कि इस बार देश भर के मेडिकल कॉलेजों में दाखिले के लिए हुई इस परीक्षा का प्रश्न-पत्र और उसका उत्तर पहले ही कुछ छात्रों को मिल गया था। एनईईटी परीक्षा में अनियमितताओं के आरोपों के बीच, बिहार पुलिस की आर्थिक अपराध इकाई द्वारा गिरफ्तार किए गए चार छात्रों ने परीक्षा से एक दिन पहले प्रश्नपत्र और उत्तर पाने की बात कबूल की है। अब तक इस संदर्भ में 14 लोगों को गिरफ्तार किया गया है।
वहीं इस परीक्षा में 1,563 अभ्यर्थियों को मनमाने तरीके से परीक्षा कराने वाली नेशनल टेस्टिंग एजेंसी (एनटीए) ने कृपांक (ग्रेस मार्क) दिया। कृपांक के लिए एनटीए ने कोई नोटिफिकेशन पहले से जारी नहीं किया था। कुछ छात्रों को कृपांक किस आधार पर दिया गया और किन सेंटरों पर दिया गया, इसका कोई भी तार्किक और नियम संगत जवाब देने में एजेंसी असफल रही और सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद कृपांक देने का फैसला निरस्त किया गया। ऐसे छात्रों को 23 जून, 2024 को पुन: परीक्षा देने का विकल्प दिया गया है।
इतना ही नहीं, इस बार 67 छात्रों ने पूरे-के-पूरे 720 अंक प्राप्त किए, जबकि 2023 में इसी परीक्षा में सिर्फ दो छात्रों ने 720 अंक प्राप्त किए थे। इसके पहले के वर्षों में एक-दो छात्र ही कुल प्राप्तांक प्राप्त करते रहे हैं। किसी को भी इस बात का तर्क समझ में नहीं आ रहा है कि आखिर कैसे अचानक 67 छात्रों ने पूरे-के-पूरे 720 अंक प्राप्त कर लिये।
इतना ही नहीं, एक ही परीक्षा केंद्र से 6 छात्रों का 720 अंक प्राप्त करना भी इस पूरी परीक्षा की विश्वसनीयता को संदेहास्पद बना देता है। एनटीए ने टॉपरों की जो सूची जारी की है, उसमें 8 छात्रों का क्रमांक एक ही सीरीज का है। सीरीज 62 से 69 तक के 8 छात्रों में 6 छात्र टॉपर लिस्ट में हैं। इन 8 में 6 को कुल प्राप्तांक 720 प्राप्त हुए हैं। शेष दो 719 और 718 अंक मिले हैं। नीट की परीक्षा में 718 और 719 अंक पाना असंभव है, क्योंकि नीट परीक्षा में एक सवाल पर चार अंक है। गलत उत्तर देने पर एक अंक कटता है। यदि किसी को कुल प्राप्तांक 720 प्राप्त होता है तो इसका मतलब यह है कि उसने सभी सवालों के सही जवाब दिये। और यदि उसने सारे सवालों में से केवल एक सवाल का जवाब नहीं दिया तब इस स्थिति में उसे अधिकतम 716 अंक प्राप्त हो सकते हैं। इसके अलावा यदि उसने सभी सवालों के उत्तर दिए और एक भी गलती हुई तो उसे 715 अंक प्राप्त हो सकते हैं। इस प्रकार किसी भी स्थिति में 718 और 719 अंक प्राप्त नहीं किया जा सकता है। यह असंभव है।
एक सवाल यह भी कि एनईईटी-यूजी की परीक्षा परिणामों को लोकसभा के चुनाव परिणाम की गणना के दिन क्यों जारी किया गया, जबकि इसे 10 दिन बाद यानी 14 जून को जारी होना था? सवाल उठ रहा है कि क्या लोकसभा चुनाव परिणाम के हो-हल्ला में परीक्षा एनटीए अपनी गडबड़ियों को ढंकना चाहती थी?
निश्चित तौर किसी परीक्षा में पेपर का लीक होना और अन्य स्तरों पर भ्रष्टाचार एक महत्वपूर्ण मुद्दा हैं, जो चिंता का विषय होना चाहिए। भ्रष्टाचार से क्या हुआ या फिर क्या हो सकता है? यही न कि सत्ता-व्यवस्था, परीक्षा कराने वाली एजेंसी और बिचौलियों तक पहुंच रखने वाले लोगों ने पहले से ही परीक्षा प्रश्न-पत्र और उसका उत्तर प्राप्त कर लिया होगा या प्राप्त कर सकते हैं? आखिर ऐसे लोगों में निश्चित तौर पर ताकतवर, ऊंची पहुंच वाले और पैसे वाले लोग शामिल होंगे। ऐसे लोगों के बेटे-बेटी अब डाक्टरी की पढाई करेंगे और डाक्टर बनेंगे।

सवाल यह है कि यदि एनईईटी की परीक्षा ईमानदारी से हो और हो सकता है कि पिछले वर्षों में ईमानदारी से हुई हो, तो वे कौन लोग हैं, जिनके बेटे-बेटी इस परीक्षा में शामिल होंगे या होते हैं और किसके सफल होने की संभावना सबसे ज्यादा है?
इस प्रश्न का उत्तर तलाशने से पहले एनईईटी-यूजी परीक्षा क्या है, कब से शुरू हुई, इसके पहले मेडिकल की पढ़ाई कौन-सी परीक्षा होती थी, इसके बारे में संक्षेप में जान लेना जरूरी है। एनईईटी यानी राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा पूरे देश में किसी भी चिकित्सा संस्थान के मेडिकल पाठ्यक्रम में प्रवेश का इस समय एकमात्र आधार है। इसकी घोषणा और शुरूआत कांग्रेस के शासन काल में तत्कालीन मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल ने की थी, लेकिन यह पूरी तरह से 2020 में लागू हो पाई। एनईईटी-यूजी ने ऑल इंडिया प्री-मेडिकल टेस्ट (एआईपीएमटी) और राज्यों और विभिन्न मेडिकल कॉलेजों द्वारा आयोजित कई अन्य प्री-मेडिकल परीक्षाओं का स्थान ले लिया। सितंबर 2019 में राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग अधिनियम-2019 के अधिनियमन के बाद, एनईईटी-यूजी अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) और जवाहरलाल इंस्टीट्यूट ऑफ पोस्टग्रेजुएट मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च (जेआईपीएमईआर) सहित भारत के सभी मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश के लिए एकमात्र प्रवेश परीक्षा बन गई। इसकी अलग-अलग परीक्षाएं आयोजित की जाती थीं।
देश भर में एनईईटी-यूजी के लागू होने से पहले देश के सभी राज्य अपनी परीक्षाएं आयोजित करते थे। साथ ही देश की कुछ प्रतिष्ठित शिक्षा संस्थान जैसे एम्स, जेआईपीएमईआर, आईएमएस-बीएचयू, केएमसी मणिपाल एंड मैंगलोर और सीएमसी वेल्लोर अपनी अलग परीक्षाएं आयोजित करते थे।
सर्वविदित है कि केंद्रीय शिक्षा संस्थानों को छोड़कर सभी राज्यों का प्राथमिक विद्यालय से लेकर उच्च शिक्षा संस्थानों तक अपना पाठ्यक्रम होता है। मेडिकल की पढ़ाई के लिए इंटर (12वीं) की परीक्षा पास होना जरूरी होता है। 12वीं तक की पढ़ाई भी अलग-अलग राज्य अपने पाठ्यक्रम के अनुसार कराते हैं और उनके अपने बोर्ड उसी पाठ्यक्रम के आधार परीक्षा लेते हैं। पहले मेडिकल की पढ़ाई के लिए राज्य अपने प्रदेश के 12वीं के पाठ्यक्रम के आधार पर अपनी परीक्षा एजेंसी से परीक्षा कराते थे और राज्यों के मेडिकल कॉलेजों में उसके आधार पर दाखिला होता था। भारत के संघीय ढांचे में शिक्षा अब भी समवर्ती सूची में शामिल है। हालांकि 1976 से पूर्व शिक्षा पूर्ण रूप से राज्यों का उत्तरदायित्व था। शिक्षा राज्य सूची में शामिल थी। लेकिन 1976 में किये गए 42वें संविधान संशोधन द्वारा जिन पांच विषयों को राज्य सूची से हटाकर समवर्ती सूची में डाला गया, उनमें शिक्षा भी शामिल थी। तब शिक्षा को राज्य सूची में डालने का उद्देश्य यह था कि अलग-अलग राज्यों की अपनी-अपनी विशिष्टताएं और जरूरतें हैं, उन्हें अपने हिसाब से पाठ्यक्रम बनाने और परीक्षा कराने का अधिकार होना चाहिए। संघीय ढांचे की यह अनिवार्य शर्त है।
इस प्रावधान के तहत राज्यों को अपनी जरूरत और पाठ्यक्रम के हिसाब से मेडिकल प्रवेश परीक्षा कराने का भी अधिकार मिला था। लेकिन 2012 में कांग्रेस के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने यह अधिकार राज्यों से छीन लिया और पूरे देश के लिए एक पाठ्यक्रम (सीबीएसई) पर आधारित मेडिकल प्रवेश परीक्षा कराने लिए एनईईटी-यूजी लागू करने का निर्णय लिया।
सुप्रीम कोर्ट में इसके खिलाफ याचिकाएं दायर की गईं। तमिलनाडु सरकार ने भी शुरू से इसका पुरजोर विरोध किया। वह भी याचिकाकर्ताओं में शामिल थी। बाद में तमिलनाडु विधान सभा में इसके खिलाफ प्रस्ताव तक पारित किया गया। लेकिन वहां के राज्यपाल एन. रवि ने उसे लौटा दिया। फिर उसे राष्ट्रपति के द्रौपदी मुर्मु के पास भेजा गया।
एनईईटी का विरोध करते हुए तमिलनाडु सरकार ने कहा कि यह सीबीएसई/एनसीईआरटी पाठ्यक्रम पर आधारित है, जिससे ग्रामीण छात्रों को नुकसान होता है। राज्य ने आरोप लगाया कि ग्रामीण क्षेत्रों के छात्रों के पास कोचिंग कक्षाओं का खर्च उठाने के लिये आर्थिक संसाधनों की कमी होती है, जो राज्य बोर्डों में अच्छे स्कोर के बावजूद मेडिकल में प्रवेश नहीं पा पाते। एनईईटी उन अमीरों का पक्षधर है, जो अपनी नियमित बारहवीं कक्षा की शिक्षा के अलावा विशेष कोचिंग का खर्च उठा सकते हैं। इतना ही नहीं, संपन्न वर्ग के ड़ाक्टर ग्रामीण क्षेत्रों में सेवा करने से हिचकिचाते हैं। वे विदेशों में उच्च शिक्षा प्राप्त करने की इच्छा रखते हैं। दूसरी ओर, ग्रामीण क्षेत्रों के 90 फीसदी मेडिकल के छात्र अपने पैतृक गांवों में सेवा करके खुश हैं।
तमिलनाडु के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री मा. सुब्रमण्यन ने कहा कि “एनईईटी ने गरीब पृष्ठभूमि के छात्रों के लिए मेडिकल की पढ़ाई को दूर का सपना बना दिया है।”
एनईईटी-यूजी के सीबीएसई/एनसीईआरटी पर आधारित होने के चलते राज्यों के पाठ्यक्रम के आधार पर पढ़ाई करने वाले छात्रों के इसमें सफल होने की संभावना बहुत कम हो गई है। इस बार 73 प्रतिशत सफल छात्र वे हैं, जिन्होंने सीबीएसई/एनसीईआरटी के पाठ्यक्रम से पढ़ाई की है। सिर्फ 27 प्रतिशत छात्र राज्यों के पाठ्यक्रम या अन्य पाठ्यक्रमों के हैं। करीब-करीब यही या इससे बदतर स्थिति पहले भी रही है।
राज्यों का पाठ्यक्रम पढ़कर फिर से सीबीएसई के पाठ्यक्रम के आधार पर तैयारी करना तभी संभव है, जब उन्नत स्तर के कोंचिग संस्थान का सहारा लिया जाए। ऐसे संस्थानों की फीस लाखों में है। ऐसे संस्थान अधिकत्तर ए-ग्रेड के शहरों में केंद्रित हैं, जहां रहने और खाने का खर्च अलग से है। कई बार अभिभावकों को भी रहना पड़ता है। खासकर लड़कियों के मामले में।
पहले से ए-ग्रेड शहरों में सीबीएसई के पाठ्यक्रम के अनुसार पढाई करें, फिर मंहगे कोचिंग संस्थानों में कोचिंग करें। यदि आप ए-ग्रेड शहरों में सीबीएसई के पाठ्यक्रम के अनुसार पढाई नहीं किए हैं, तो पहले स्तर पर ही आप मात खा जाएंगे। आप को हर हाल में इस पाठ्यक्रम पर आधारित कोचिंग करनी ही पड़ेगी, फिर भी छात्र के उन छात्रों से पीछे रहने की संभावना प्रबल होगी, जो प्रारंभ से ही सीबीएसई पाठ्यक्रम के स्कूलों में पढ़े हैं, फिर आपके साथ कोचिंग भी कर रहे हैं। इस संदर्भ में तमिलनाडु के शिक्षा मंत्री ने ठीक ही कहा कि ग्रामीण पृष्ठभूमि के छात्रों को कई प्रयासों के बाद ही सफल होने की संभावना रहती है। इससे खर्च भी कई गुना बढ़ जाता है।
इस तरह एनईईटी की संरचना ने मेडिकल की पढ़ाई को गरीबों, निम्न, मध्यवर्ग और बहुलांश ग्रामीण समाज की पहुंच से बाहर कर दिया है। मध्यवर्ग के बीच निचले हिस्से के लिए भी इतना खर्च उठा पाना मुश्किल है। बात सिर्फ प्रवेश के लिए खर्च तक तो सीमित नहीं है, प्रवेश का बाद के बाद मेडिकल की पढाई के खर्च के बारे में भी तो पहले से सोचना पड़ता है, इंतजाम करना पड़ता है। भारत में गरीब और निम्न मध्यवर्ग के दायरे में आने वाली बहुलांश आबादी आदिवासियों, दलितों और पिछड़ों की है। एनईईटी की संरचना ने मेडिकल की पढाई को उच्च मध्य वर्ग और मध्यवर्ग के एक छोटे हिस्से तक सीमित कर दिया है। भारत में उच्च मध्यवर्ग और मध्यवर्ग का ऊपरी हिस्से का करीब 80 प्रतिशत ऊंची जातियों से बना है। मेडिकल की पढ़ाई को धनी और शहरी तबकों तक सीमित करने का एनईईटी का यह ढांचा सबसे अधिक आदिवासियों, दलितों और अन्य पिछड़े वर्गों के लोगों के खिलाफ है। ग्रामीण समाज में रहने वाले ऊंची जातियों के लोग अपने बेटे-बेटियों को खेत बेचकर एनईईटी की कोचिंग या उसके पहले सीबीएसई बोर्ड की पढाई के लिए ए-ग्रेड के शहरों में भेज भी सकता है, प्रवेश के बाद पढाई का खर्च उठाने के बारे में सोच सकता है। हालांकि यह सबके लिए संभव नहीं है। लेकिन आदिवासियों, दलितों और अन्य पिछड़े वर्ग के बड़े हिस्से के पास तो खेत भी बेचने के लिए नहीं होता है। जिसके पास थोड़ा बहुत है, यदि वह बेच देगा तो परिवार सहित भूखों मर जाएगा।
इसलिए बात सिर्फ एनईईटी-यूजी में भ्रष्टाचार या पेपर लीक होने से रोकने तक सीमित नहीं है। सवाल इसकी बुनियादी संरचना पर है। हर परीक्षा शुचितपूर्ण और पारदर्शी होनी चाहिए। इसके कोई इंकार नहीं कर सकता। एनईईटी (परीक्षा) भी ईमानदारी से संपन्न होनी ही चाहिए। लेकिन एनईईटी के संदर्भ में बुनियादी सवाल यह है कि यह परीक्षा भारत के संघीय ढांचे को चोट पहुंचाती है। राज्यों से उनके अधिकार छीन लेती है। इससे भी बढ़कर गरीब, निम्न मध्यवर्ग और ग्रामीण समाज के बच्चों के डाक्टर बनने के स्वप्न भी उनसे छीन लेती है। साथ ही, इन सपनों में वह सपना भी शामिल है, जो वे गांवों में जाकर जरुरतमंद अपनी पृष्ठभूमि के लोगों की चिकित्सा सेवा करने का चाहते हैं। इसका पाठ्यक्रम और इसके लिए अनिवार्य-सी हो गई मंहगी कोचिंग डाक्टर बनने के स्वप्न को अमीरों का स्वप्न बना देती है। तय है कि अमीरों में इस इस देश के आदिवासियों, दलितों और अन्य पिछड़े वर्गों का बहुत ही छोटा हिस्सा शामिल है। इस तरह इसकी संरचना डाक्टर बनने का अधिकार उच्च वर्ग, ऊंची जातियों और शहरी लोगों तक सीमित कर देती है।
जैसा कि तमिलनाडु सरकार मांग कर रही है, एनईईटी को खत्म कर दिया जाना चाहिए। राज्यों को अपने मेडिकल कॉलेजों की अपनी परीक्षा अपने पाठ्यक्रम के आधार पर कराने के अधिकार वापस दिया जाना चाहिए। यही भारत के संघीय ढांचे, राज्यों के अधिकारों, आदिवासियों, दलितों, अन्य पिछड़े वर्गों, भारत के ग्रामीण समाज, कमजोर आर्थिक तबके और पूरे देश के हित में होगा।
(संपादन : नवल/अनिल)