कबीर और रैदास से लेकर फुले, पेरियार व आंबेडकर तक ब्राह्मणवादी कपोलकल्पनाओं के ख़िलाफ़ दलितों-बहुजनों के भौतिकवादी विमर्श की एक समृद्ध परंपरा रही है। लेकिन मौजूदा समय में दलित-बहुजनों की बौद्धिक, वैज्ञानिक, ऐतिहासिक बातें, उनकी तथ्यात्मक और तार्किक बातें मौजूदा सत्ता को पसंद नहीं आ रही हैं। इसका ताज़ा उदाहरण विवेक पवार और मनीष कुमार के ख़िलाफ़ हुई पुलिसिया कार्रवाई है। इन दोनों ने कुंभ को लेकर कुछ तार्किक बातें और ऐतिहासिक तथ्य अपने फेसबुक के जरिए रखने की कोशिश की थी, जिसके चलते इन्हें पुलिस की यातना से गुज़रना पड़ा।
सबसे पहले बात विवेक पवार की करते हैं। वे ओबीसी समुदाय से आते हैं और मध्य प्रदेश के मंडला जिले के बिछिया थाना बिछिया के निवासी हैं। पोलियो ने भले ही विवेक के हाथों में बैसाखियां पकड़ा दी हो, लेकिन उनके हौसले को कमज़ोर नहीं कर सकी है। वे आदिवासियों के अधिकारों को लेकर पिछले दो दशक से अधिक समय से सत्ता और प्रशासन के ख़िलाफ़ प्रतिरोध का बिगुल फूंके हुए हैं।
ध्यातव्य है कि 13 जनवरी, 2025 को पौष पूर्णिमा के स्नान के साथ महाकुंभ शुरू हुआ। फिर 14 जनवरी को मकर संक्राति यानी दूसरे शाही स्नान पर चार करोड़ लोगों के नहाने का दावा यूपी सरकार द्वारा किया गया। इसी दावे को लेकर विवेक पवार ने 16 जनवरी को फेसबुक पर अपनी एक पोस्ट में लिखा– “प्रयागराज में 4 करोड़ लोगों ने जो हगा-मूता होगा, वह कहां प्रवाहित किया होगा।”
उनके इसी पोस्ट को आधार बनाकर उनके ख़िलाफ़ बिछिया तहसील की एसडीएम रामप्यारी धुर्वे द्वारा परिवाद पत्र क्रमांक 01/2025 धारा 129 (ई) बीएनएसएस के तहत एफआईआर दर्ज़ करवाया गया। इसमें लिखा गया कि इस व्यक्ति द्वारा कुंभ आयोजन पर ऑनलाइन आक्रोश पैदा किया जा रहा है एवं शांति भंग की जा रही है। इसी रिपोर्ट के आधार पर विवेक पवार को 11 फरवरी, 2025 को उठाकर जेल मे डाल दिया गया, जहां वे 17 फरवरी तक पड़े रहे। इस मामले अनुविभागीय दंडाधिकारी बिछिया ने अपने आदेश में लिखा– “यह न्यायालय संतुष्ट है कि अनावेदक ऐसा दुःसाहसिक और भयंकर व्यक्ति है, जो कि प्रतिभूति के बिना स्वच्छंद रहना समाज के लिए परिसंकटमय है। इसलिए धारा 135 बीएनएसएस के तहत इसको 25000 रुपए का 6 माह का बंधक पत्र जमानत पेश करने और सदाचार बनाए रखने हेतु ज़ारी करती है। लेकिन बंधक पत्र भरने से मना करने पर विवेक को मंडला जेल भेज दिया गया।
जबकि 17 फरवरी को राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) में पेश केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की रिपोर्ट समाजसेवी कार्यकर्ता विवेक पवार की बातों की पुष्टि करती है। सीपीसीबी की रिपोर्ट से ज़ाहिर होता है कि गंगा-यमुना दुनिया की सबसे बड़ी सीवर बन चुकी हैं। उनमें फेकल कोलीफॉर्म यानी इंसानों के मल में पाये जाने वाले बैक्टीरिया की मात्रा औसत से ज़्यादा तादाद में पाई गई है। रिपोर्ट में स्पष्ट कहा गया है कि यह पानी नहाने लायक नहीं है। बीते 3 फरवरी को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में दाख़िल सीपीसीबी की रिपोर्ट पर 17 फरवरी को एनजीटी अध्यक्ष जस्टिस प्रकाश श्रीवास्तव, जस्टिस सुधीर अग्रवाल और जस्टिस ए. सेंथिल कुमार की बेंच सुनवाई कर रही थी। इस सुनवाई में उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीबी) की भूमिका पर भी सवाल उठाया गया।

इतिहास से ऐतराज
बीते 25 जनवरी को कुंभ परेड साइबर थाने से इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के शोध छात्र मनीष कुमार के मोबाइल पर एक फोन आया। फोन पर उनसे कहा गया कि लोकल इंटेलिजेंस यूनिट के गोपनीय जांच के माध्यम से हमें आपके ख़िलाफ़ एक लेटर मिला है। आपने फेसबुक पर लिखा है कि कुंभ में औरंगजेब भी शामिल हुआ था। आपने दूसरे पोस्ट में लिखा है कि शाहजहां के बेटे दाराशिकोह का कुंभ में बड़ा योगदान था। एक अन्य पोस्ट में आप लिख रहे हैं कि सेक्टर 8 में पानी, सड़क और बिजली की मूलभूत सुविधाओं के लिए कल्पवासी परेशान हैं। तो आप इस पर क्या कार्रवाई चाहते हैं?
इस तरह साइबर थानों और इंटेलिजेंस यूनिट द्वारा शोधछात्रों को डराकर यह तय किया जा रहा है कि उनके शोध और सोशल मीडिया पर लिखने, बात रखने, जानकारी साझा करने की दिशा सत्ता की दिशा में हो, ख़िलाफ़ में नहीं। केंद्रीय विश्वविद्यालय इलाहाबाद के राजनीति विज्ञान के शोधछात्र मनीष कुमार बताते हैं कि ये पोस्ट उन्होंने 13 जनवरी को कुंभ मेले की शुरुआत के दिन पोस्ट किया था। उस दिन उन्होंने अपने फेसबुक एकाउंट पर कुंभ के संदर्भ को लेकर ही तीन पोस्ट लिखे थे। उन्होंने अपनी पहली पोस्ट में इतिहासकार और इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से रिटायर प्रोफ़ेसर हेरंब चतुर्वेदी की किताब ‘कुंभ: ऐतिहासिक वाङ्मय’ का हवाला देते हुए लिखा– “इतिहासकार हेरंब चतुर्वेदी अपनी किताब ‘कुंभ: ऐतिहासिक वाङ्मय’ में लिखते हैं– ‘शाहजहां ने बड़े बेटे दाराशिकोह को प्रयाग का सूबेदार बनाया था। वे कुंभ के दौरान यहां आते थे। संगम पर साधु-संतों की संगत में रहते थे। उन्होंने उपनिषदों का अध्ययन किया। संतों के बीच शास्त्रार्थ परंपरा शुरू की। हालांकि उनके छोटे भाई औरंगजेब ने गद्दी हथिया ली। इससे साधु-संतों को काफ़ी तकलीफ़ पहुंची। औरंगजेब भी कुंभ में शामिल हुआ था। यहां के मंदिरों को ग्रांट भी दिया। उसने तो बनारस के कोतवाल को फ़रमान भी ज़ारी किया था कि जो हिंदू स्नान के लिए आ रहे हैं, उन्हें तंग मत करो। मुझे शिक़ायत मिली है कि तुम उन्हें परेशान कर रहे हो। हालांकि बाद में उसने कर लेना शुरू कर दिया। 1665 में फ्रांसिसी यात्री जीन बैप्टिस्ट इलाहाबाद आया था। उसने लिखा है कि गंगा-यमुना के संगम पर बने किले में जाने के लिए टैक्स देना पड़ता था।’”
अपने दूसरे फेसबुक फोस्ट में मनीष कुमार ने लिखा– “राजकीय अभिलेखागार के दस्तावेज़ों के मुताबिक़ औरंगजेब गंगाजल को स्वर्ग का जल मानते थे। एक बार वे बीमार पड़े तो उन्होंने पीने के लिए गंगाजल मंगवाया। फ्रांसीसी इतिहासकार बर्नियर ने अपने यात्रा वृत्तांत में लिखा है– ‘औरंगजेब कहीं भी जाता था तो अपने साथ गंगाजल रखता था। वह सुबह के नाश्ते में भी गंगाजल का इस्तेमाल करता था।’”
प्रोफ़ेसर हेरंब चतुर्वेदी, जिनकी किताब के हवाले से दलित शोधछात्र ने फेसबुक पर पोस्ट किया, वे कहते हैं कि अगर पुलिसवालों को केस ही दर्ज़ करना है तो मेरे खिलाफ़ दर्ज़ करें, क्योंकि किताब तो मैंने लिखी है। उन्हें बात करनी है तो मुझसे बात करें। मेरे छात्रों को न डराएं, न धमकाएं। वे [पुलिसकर्मी] आएं हमारे पास और हमसे हमारी किताब और इतिहासकार बर्नियर की किताबें ले जाकर पढ़ें कि इतिहास क्या कहता है। प्रोफ़ेसर चतुर्वेदी बताते हैं कि गंगाजल पीने का सिलसिला मुहम्मद तुगलक़ से शुरू हुआ और बहादुर शाह ज़फ़र तक चलता रहा। इब्न-बतूता ने अपनी किताब में लिखा है कि मुहम्मद बिन तुग़लक के लिए नियमित रूप से गंगाजल तांबे के बड़े-बड़े बर्तनों में भरकर दौलताबाद पहुंचाया जाता था। अबुल फ़जल की किताब ‘आइने अक़बरी’ में ज़िक्र है कि अक़बर को गंगाजल से प्रेम था और वह सैनिकों से अपने लिए गंगाजल मंगवाया करता था। जब अक़बर आगरा और फ़तेहपुर सीकरी में होते तो सोरों से और पंजाब में होते तो हरिद्वार से गंगाजल लाया जाता था। वे बताते हैं कि दाराशिकोह ने हिंदू विद्वानों के लिए एक 9 दिवसीय कार्यक्रम आयोजित करवाया था।
प्रोफ़ेसर हेरंब चतुर्वेदी आगे कहते हैं कि इतिहासकार बिश्वंभर नाथ पांडेय की किताबें उठाकर देखिए। उनमें ज़िक्र है कि औरंगजेब ने अरैल में संगम के तट पर प्राचीन सोमेश्वर महादेव मंदिर के लिए भारी धन और ज़मीन का अनुदान दिया था। उसने उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर, चित्रकूट के बालाजी मंदिर, गुवाहाटी के उमानंद मंदिर को ज़मीन और धन का अनुदान दिया था।
दरअसल इतिहासकार बिश्वभंर नाथ पांडेय ने अपनी किताब ‘भारतीय संस्कृति, मुग़ल विरासत : औरंगजेब के फ़रमान’ में हर चीज़ बहुत विस्तार से लिखा है। साथ ही, 27 जुलाई, 1977 को राज्यसभा में बिश्वंभर नाथ पांडेय ने बताया था कि इलाहाबाद नगर पालिका का अध्यक्ष रहते उनके कार्यकाल के दौरान अरैल मंदिर की ज़मीन को लेकर एक विवाद हुआ था, जिसे निपटाने के लिए न्यायमूर्ति टी.बी. सप्रू की अध्यक्षता में एक समिति बनी थी। इस समिति ने उन सभी मंदिरों से दस्तावेज़ मांगे थे, जिन्हें औरगंजेब से अऩुदान के रूप में ज़मीन और धन मिला था। इसके जवाब में अरैल के सोमेश्वर महादेव मंदिर, उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर, चित्रकूट के बालाजी मंदिर, गुवाहाटी के उमानंद मंदिर, सारंगपुर के जैन मंदिर, और दक्षिण भारत कुछ मंदिरों समेत कई मंदिरों ने न्यायमूर्ति सप्रू की अध्यक्षता वाली समिति के समक्ष ऐसे सबूत पेश किए थे।
(संपादन : राजन/नवल/अनिल)
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