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देश में युद्ध की परिस्थितियां रहीं, इसलिए जातिगत जनगणना के सवाल पर हम अलर्ट मोड में हैं, चुप नहीं बैठेंगे : मनोज झा

ट्रंप के कहे का प्रतिकार तो हमारे माननीय प्रधानमंत्री जी की ओर से होना चाहिए। बिना देर किए प्रतिकार होना चाहिए। क्योंकि यह सरकारों का मामला नहीं है। पक्ष-विपक्ष का मामला नहीं है। यह पार्टियों के परे है। हमारी पार्टी रहे न रहे, यह देश रहेगा। देश का मान रहेगा। पढ़ें, राजद के राज्यसभा सांसद डॉ. मनोज झा से यह साक्षात्कार

भारत-पाकिस्तान के बीच करीब 80 घंटे तक चला युद्ध और इसके पहले पहलगाम में आतंकी हमला तथा युद्धविराम की घोषणा के बाद की स्थितियों व बिहार में होनेवाले विधानसभा चुनाव और जातिगत जनगणना आदि से जुड़े सवालों पर राजद के राज्यसभा सांसद डॉ. मनोज झा ने फारवर्ड प्रेस से बातचीत की।

बिहार में चुनाव होने हैं। इसके पहले पहलगाम आतंकी हमला, फिर युद्ध और संघर्ष विराम के बाद भाजपा की तिरंगा यात्रा के आलोक में आपकी प्राथमिक प्रतिक्रिया क्या है?

मेरा सीधे तौर पर कहना है कि हम अपने देश की राजनीति को इतने गदले लेवल (निम्न स्तर) पर न ले जाएं। युद्ध जैसी परिस्थितियां पूरे देश के लिए थीं। पक्ष-विपक्ष कोई मायने नहीं रख रहा था। पहलगाम की जो पीड़ा थी, वह उन पीड़ित परिवारों की पीड़ा से आगे चलकर पूरे देश की पीड़ा हो गई। पीड़ा के बाद हमारी सेना के शौर्य ने एक तरह से आंतक की प्रयोगशालाओं को खत्म किया। उस पर राजनीतिक चर्चा भी मुझे परेशान करती है। असहज करती है। राजनीति के लिए बहुत सारे विषय हैं। रोजगार बहुत बड़ा विषय है। नौकरियों का सवाल है। पलायन और बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं जैसे सवाल हैं। क्योंकि पहलगाम की पीड़ा का हमारी सेना के शौर्य ने जो जवाब दिया, वह दलों के दायरे में नहीं बंटता है। वर्ष 1971 में बांग्लादेश नामक देश का निर्माण हुआ। उसको इंदिरा जी की उपलब्धि नहीं बताया जा सकता है। एक क्राइसिस से हम जुझ रहे थे। उस क्राइसिस को हमारी सेना के शौर्य ने मुकम्मल अंजाम तक पहुंचाया। तो हमारा सीधे तौर पर कहना है कि हमारे देश की राजनीति बहुत परिपक्व राजनीति है। और जहां तक रही तिरंगा यात्रा की बात तो कल ही मैंने कहा था कि पूरे प्रकरण में हमारी सेना ने हमें चोट नहीं पहुंचाई। सेना ने हमारा सिर गर्व से ऊंचा कर दिया। पहलगाम के पीड़ित परिवारों की पीड़ा और उनके आंसू थोड़ी देर के लिए थम गए। लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति द्वारा लगातार जो बयान आए और उनका प्रतिकार जिस तरीके से शीर्ष नेतृत्व द्वारा किया जाना चाहिए था, उसका हमने अभाव देखा। 

कल ही एक न्यूज चैनल पर प्रतिक्रिया में मैंने कहा था कि माननीय प्रधानमंत्री जी सभी सांसदों को लेकर वाशिंगटन डीसी चलें। तिरंगा यात्रा वहां अमेरिका में निकलनी चाहिए ताकि अमेरिकी राष्ट्रपति को हिंदुस्तान का इतिहास, हमारी विरासत, हमारे अपने सरोकार और हमारी प्रतिबद्धताएं समझ में आए, क्योंकि उन्होंने लगातार जो बयान दिए हैं, उससे उन्होंने तिरंगे का मान कम करने की कोशिश की है। इसलिए असल में तिरंगा यात्रा वहां निकलनी चाहिए। हां, देश में भी तिरंगा यात्रा निकलनी है। यहां तो जर्रे-जर्रे में तिरंगा है। हर दिल में तिरंगा है। फिर भी अगर तिरंगा यात्रा निकलनी है, जैसे पहलगाम की पीड़ा के समय पूरा देश एकजुट था, और ऑपरेशन सिंदूर के दौरान, वैसे ही तिरंगा यात्रा भी सबके साथ मिलकर ही निकलनी चाहिए। तिरंगा यात्रा भाजपा की हो, जय हिंद यात्रा कांग्रेस की हो, राजद की ओर से हिंदुस्तान को सलाम हो, प्रणाम हो। इससे बेहतर है कि तिरंगा कांधे पर, दिल में तिरंगा, जज्बे में तिरंगा हो। आइए सभी मिलकर साथ चलें। 

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने व्यापार की धौंस दिखाकर संघर्षविराम करने के लिए भारत-पाकिस्तान को मजबूर करने की बात कही। आप उनके इस बयान को किस रूप में देखते हैं?

आपके पहले प्रश्न के उत्तर में मैंने दो बातें कहीं। इस पूरे प्रकरण में दो बातें मुझे और मुझ जैसे करोड़ों हिंदुस्तानियों को असहज करती हैं। एक, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बयान, जो न सिर्फ बेतुके हैं, बल्कि तथ्यहीन और आधारहीन भी हैं। मैं आपको टाइमलाइन बताता हूं। जिस दिन तथाकथित संघर्षविराम या युद्धविराम की घोषणा हुई, हमारी आधिकारिक घोषणा से तकरीबन पचास मिनट पहले अमेरिकी राष्ट्रपति घोषणा करते हैं। दूसरे दिन सुबह उठकर कश्मीर के बारे में वे एक ऐसा बयान देते हैं, जिसे न तो हमारे इतिहास ने स्वीकार किया और न ही हमारा वर्तमान स्वीकार करेगा। फिर तीसरे दिन माननीय प्रधानमंत्री जी के राष्ट्र के नाम संबोधन से चंद मिनट पहले वे कहते हैं कि हमने व्यापार की धौंस दिखा दी। और दोनों देश मान गए। मतलब एक सांस में भारत और पाकिस्तान के बीच हाइफन के बगैर कहा। फिर चौथे दिन की टाइमलाइन देखिए। वे सऊदी अरब जाते हैं। और वहां भी यही बात दुहराते हैं। इसलिए मैंने कहा कि एक संदेश माननीय प्रधानमंत्री जी के नेतृत्व में पूरा संसद अमेरिकी राष्ट्रपति को दे। क्योंकि जितना मैं देश की मिट्टी को समझता हूं कि इस देश का कोई भी व्यापारी व्यापार के लिए देश के मान-प्रतिष्ठा पर आघात नहीं सहेगा। लेकिन यह प्रतिकार विपक्ष तो नहीं कर सकता है न? इस प्रतिकार के लिए सरकार को आगे आना होगा। हमारे विदेश मंत्रालय ने इस बारे में बयान दिया, मुझे बेहद अच्छा लगा। लेकिन आप यह देखिए कि अमेरिका के राष्ट्रपति सीधे ये बातें कह रहे हैं। उनके विदेश मंत्री मार्को रूबियो भी नहीं बोल रहे। इसलिए प्रतिकार तो हमारे माननीय प्रधानमंत्री जी की ओर से होना चाहिए। बिना देर किए प्रतिकार होना चाहिए। क्योंकि यह सरकारों का मामला नहीं है। पक्ष-विपक्ष का मामला नहीं है। यह पार्टियों के परे है। हमारी पार्टी रहे न रहे, यह देश रहेगा। देश का मान रहेगा। इसलिए हमारा मानना है कि एक साझे स्वर में अमेरिका को संदेश जाए।

डॉ. मनोज झा, सांसद, राज्यसभा

इसका मतलब आप भी कांग्रेस के जैसे संसद का विशेष सत्र बुलाने की मांग करते हैं?

देखिए, हमारी पार्टी ने यह मांग सबसे पहले की। आप चेक कर लें। हमने सबसे पहले चिट्ठी लिखी। फिर सीपीआई ने लिखी। फिर कई दलों ने यह मांग की। लेकिन देखिए, यह सभी दलों का विचार है। अगर आप भाजपा के सांसदों से भी ऑफ दी रिकार्ड यह बात पूछेंगे तो वे भी यही कहेंगे कि सब साथ मिल बैठकर उन बातों पर विचार करें जो सभी को असहज कर रही हैं। आप देखिए पहलगाम की पीड़ा में पूरा देश एक साथ रहा। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पूरा देश एक साथ रहा। लेकिन उसके बाद अमेरिकी राष्ट्रपति के बयानों को अगर वक्त रहते खारिज नहीं किया गया तो मैं समझता हूं … और दूसरी बात जो मैं कहना चाहता हूं कि इस पूरे प्रकरण में मुझे यह भी अहसास हुआ कि दुनिया के जो हमारे दोस्त हैं, उनको भी हमारे मुश्किल समय में दोस्ती का इजहार करना पड़ेगा। इसके लिए हमें अपने डिप्लोमैटिक और पोलिटिकल इनिशिएटिव्स को और आगे बढ़ाना होगा।

भारत सरकार ने जातिगत जनगणना कराने की बात कही है। आपकी पार्टी यह मांग पहले से करती आ रही थी। लेकिन अभी तक सरकार ने इस बात का संकेत नहीं दिया है कि वह जनगणना कब कराएगी। क्या आपकी पार्टी इसकी मांग के लिए कोई आंदोलन चलाएगी?

देखिए, हमारी पार्टी और मैंने पहले भी कहा था। आज फिर दुहरा रहा हूं कि हमारी पार्टी अलर्ट मोड में है। जातिगत जनगणना कराए जाने की जिस दिन घोषणा हुई थी, हमें लगा कि हमारी पहली मंजिल हासिल हुई। पहली मंजिल मैं इसलिए कह रहा हूं क्योंकि घोषणा से यह तो पता चला कि बहुजन सरोकारों का जो संदर्भ था उसे प्रधानमंत्री जी और उनकी पूरी टीम जातिवाद का जहर कहकर संबोधित करते थे। शायद उनको यह अहसास हुआ कि यह जहर नहीं, देश के लिए अमृत होने जा रहा है। लेकिन घोषणा मात्र से यह पूरा नहीं होगा। तेजस्वी जी ने बाकायदा प्रेस कांफ्रेंस करके बार-बार कहा कि अलर्ट रहकर हम यह सुनिश्चित करेंगे कि कौन से एंथ्रोपॉलिजिकल, सोशियोलॉजिकल इनपुट दिए जा रहे हैं, गणना कैसे की जा रही है, वर्गीकरण कैसे किया जा रहा है। और एक बार जब आंकड़े आ जाएं तब उसके आधार पर आरक्षण का दायरा बढ़ाने की बात, आरक्षण के प्रावधान को संविधान की नवीं अनुसूची में लाने की बात, मंडल कमीशन की बाकी सिफारिशों को लागू करने की बात, और निजी क्षेत्र, जिसे ‘होली काऊ’ बनाकर रखा गया है, इसमें आरक्षण की बात और संसद व विधानसभाओं में अनुपातिक प्रतिनिधित्व की बात। इतनी बातें उन्होंने कही है। हम सरकार से कहना चाहते हैं कि हम अलर्ट मोड में हैं। घोषणा मात्र से हम चुप नहीं हो जाएंगे। हम इसके लिए दबाव डालेंगे। अभी युद्ध की परिस्थिति में पूरा देश रहा। हमने उसका सम्मान करते हुए इन बातों को मूवमेंट मोड में लाना नहीं चाहते हैं। लेकिन सरकार से कहेंगे कि इसको अनिश्चितकाल के लिए न छोड़ा जाए। जैसे कि सरकार ने महिला आरक्षण विधेयक के मामले में किया है। आप देखिए कि महिला आरक्षण किस चीज पर निर्भर है, परिसीमन पर। परिसीमन किस चीज पर निर्भर है, जनगणना पर। जनगणना किस चीज पर निर्भर है, गृहमंत्री जी की मर्जी पर। जो कि हो नहीं रही है। इन तमाम चीजों को खारिज करते हुए हमें जातिगत जनगणना के सवाल पर आगे बढ़ना है।

ऐसा देखा जा रहा है कि कांग्रेस बिहार में पिछड़ों और अति पिछड़ों की राजनीति करने की कोशिशें कर रही है। इसका राजद की राजनीति पर क्या असर पड़ेगा?

नहीं। देखिए इस मामले में हमारी पार्टी का और हमारा मानना है कि फुटप्रिंट्स जितना बढ़ता है, उतना ही अच्छा। जैसे जितनी ऊंगलियां आगे बढ़ेंगी, मुट्ठी उतनी ही मजबूत होगी। इसलिए इसमें कतई कहीं कोई भेद नहीं है। कोई दिक्कत नहीं।

पसमांदा मुसलमानों की भागीदारी को लेकर राजद की सोच क्या है?

आपके माध्यम से आश्वस्त करता हूं कि जिस भी समुदाय के अत्यंत पिछड़े हैं, उनको अभूतपूर्व भागीदारी सुनिश्चित तौर पर दी जाएगी। यह बात तेजस्वी जी कई स्तरों पर कह चुके हैं।

(संपादन : राजन/अनिल)


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लेखक के बारे में

नवल किशोर कुमार

नवल किशोर कुमार फॉरवर्ड प्रेस के संपादक (हिन्दी) हैं।

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