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‘चुनावी धांधली को जातिगत जनगणना से दूर रखे सरकार’

गत 30 अप्रैल, 2025 को केंद्रीय मंत्रिपरिषद ने जातिगत जनगणना कराए जाने के प्रस्ताव को मंजूरी दी। यह मांग लंबे समय से की जा रही थी। पढ़ें, केंद्र सरकार के इस फैसले पर सत्ता पक्ष और विपक्ष के दलित–बहुजन नेताओं की प्रतिक्रियाएं

केंद्र बताए कब शुरू होगी जातिगत जनगणना : एम.के. स्टालिन, मुख्यमंत्री, तमिलनाडु

अति आवश्यक जाति जनगणना न करवाने या उसमें जितनी संभव हो उतनी देरी करने के सभी प्रयासों में विफल रहे के बाद, केंद्र की भाजपा सरकार ने आखिरकार यह घोषणा कर दी कि अगली जनगणना के साथ जाति जनगणना भी की जाएगी। मगर अब भी कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न अनुत्तरित हैं – जैसे कि यह जनगणना कब शुरू होगी और कम ख़त्म होगी। 

इस घोषणा का अभी किया जाना कोई संयोग नहीं है। बिहार में होने जा रहे विधानसभा चुनावों में सामाजिक न्याय का मुद्दा सर्वोपरि बन गया है। ऐसे में यह फैसला राजनीतिक मजबूरी का नतीजा है। एक समय प्रधानमंत्री विपक्षी पार्टियों पर यह आरोप लगाते थे कि वे जनता को जाति के आधार पर बांट रही हैं। मगर अब उन्होंने वही मांग मंज़ूर कर ली है, जिसे वे बदनाम किया करते थे। 

पूर्वाग्रह-मुक्त नीति निर्माण, लक्षित समूहों के कल्याण और सामाजिक न्याय की स्थापना के लिए जाति जनगणना वैकल्पिक नहीं, बल्कि आवश्यक है। आप अन्याय को तब तक दूर नहीं कर सकते जब तक कि आपको यह पता न हो कि उसका आकार-प्रकार क्या है।

तमिलनाडु सरकार और डीएमके के लिए यह एक लंबी लड़ाई के बाद हासिल की गई जीत है। हमने सबसे पहले राज्य विधानसभा में जाति जनगणना की मांग करते हुए प्रस्ताव पारित किया था। हमने हर मंच से इस मांग को दोहराया। हमने प्रधानमंत्री से हर मुलाकात में इस पर जोर दिया। हमने लगातार केंद्र सरकार को लिखा कि उसे इस मांग को पूरा करने की ज़िम्मेदारी लेनी चाहिए।

कई लोगों ने राज्य स्तर के जाति सर्वेक्षणों की मांग की। मगर हम अडिग रहे। हमारी यह राय थी कि जनगणना केंद्रीय विषय है और केवल केंद्र सरकार ही जनगणना अधिनियम के अंतर्गत कानूनन बंधनकारी जाति जनगणना करवा सकती है। और उसे ही यह करवाना चाहिए। हमारी यह राय सही सिद्ध हुई है। द्रविड़ मॉडल के आदर्शों से चालित डीएमके और इंडिया गठबंधन की सामाजिक न्याय हासिल करने की कठिन यात्रा में यह एक और जीत है। (स्रोत : एक्स हैंडिल पर जारी संदेश)

हम संघियों को समाजवादी एजेंडे पर नचाते रहेंगे : लालू प्रसाद, राष्ट्रीय अध्यक्ष, राष्ट्रीय जनता दल

मेरे जनता दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहते दिल्ली में हमारी संयुक्त मोर्चा की सरकार ने 1996-97 में कैबिनेट से 2001 की जनगणना में जातिगत जनगणना कराने का निर्णय लिया था, जिस पर बाद में एनडीए की वाजपेयी सरकार ने अमल नहीं किया।

2011 की जनगणना में फिर जातिगत गणना के लिए हमने संसद में जोरदार मांग उठाई। मैंने, स्व. मुलायम सिंह जी, स्व. शरद यादव जी ने इस मांग को लेकर कई दिन संसद ठप्प किया और बाद में प्रधानमंत्री स्व. मनमोहन सिंह जी के सामाजिक आर्थिक सर्वेक्षण कराने के आश्वासन के बाद ही संसद चलने दिया। देश में सर्वप्रथम जातिगत सर्वे भी हमारी 17 महीने की महागठबंधन सरकार में बिहार में ही हुआ।

जिसे हम समाजवादी जैसे आरक्षण, जातिगणना, समानता, बंधुत्व, धर्मनिरपेक्षता इत्यादि 30 साल पहले सोचते हैं, उसे दूसरे लोग दशकों बाद फॉलो करते है।

जातिगत जनगणना की मांग करने पर हमें जातिवादी कहने वालों को करारा जवाब मिला। अभी बहुत कुछ बाक़ी है। हम इन संघियों को हमारे समाजवादी एजेंडा पर नचाते रहेंगे। (स्रोत : एक्स हैंडिल पर जारी संदेश)

देश के विकास को गति मिलेगी : नीतीश कुमार, मुख्यमंत्री, बिहार

जाति जनगणना कराने का केंद्र सरकार का फैसला स्वागतयोग्य है। जाति जनगणना कराने की हमलोगों की मांग पुरानी है। यह बेहद खुशी की बात है कि केंद्र सरकार ने जाति जनगणना कराने का निर्णय किया है। जाति जनगणना कराने से विभिन्न वर्गों के लोगों की संख्या का पता चलेगा, जिससे उनके उत्थान एवं विकास के लिए योजनाएं बनाने में सहूलियत होगी। इससे देश के विकास को गति मिलेगी। जाति जनगणना कराने के फैसले के लिए माननीय प्रधानमंत्री आदरणीय श्री नरेंद्र मोदी जी का अभिनंदन तथा धन्यवाद। (स्रोत : आधिकारिक फेसबुक पेज पर जारी संदेश)

उम्मीद है सरकार फैसले को समय से ज़रूर पूरा कराएगी : मायावती, राष्ट्रीय अध्यक्ष, बसपा

देश में मूल जनगणना के साथ ही ‘जातीय जनगणना’ कराने का केंद्र सरकार द्वारा आज लिया गया फैसला काफी देर से उठाया गया सही दिशा में कदम। इसका स्वागत। बीएसपी इसकी मांग काफी लंबे समय से करती रही है। उम्मीद है कि सरकार ‘जनगणना से जनकल्याण’ के इस फैसले को समय से ज़रूर पूरा कराएगी। (स्रोत : एक्स हैंडिल पर जारी संदेश)

चुनावी धांधली को जातिगत जनगणना से दूर रखे सरकार : अखिलेश यादव, राष्ट्रीय अध्यक्ष, समाजवादी पार्टी

जाति जनगणना का फ़ैसला 90 प्रतिशत पीडीए की एकजुटता की 100 प्रतिशत जीत है। हम सबके सम्मिलित दबाव से भाजपा सरकार मजबूरन यह निर्णय लेने को बाध्य हुई है। सामाजिक न्याय की लड़ाई में यह पीडीए की जीत का एक अति महत्वपूर्ण चरण है।

भाजपा सरकार को यह चेतावनी है कि अपनी चुनावी धांधली को जाति जनगणना से दूर रखे। एक ईमानदार जनगणना ही हर जाति को अपनी-अपनी जनसंख्या के अनुपात में अपना वो अधिकार और हक़ दिलवाएगी, जिस पर अब तक वर्चस्ववादी फन मारकर बैठे थे। 

ये अधिकारों के सकारात्मक लोकतांत्रिक आंदोलन का पहला चरण है और भाजपा की नकारात्मक राजनीति का अंतिम। भाजपा की प्रभुत्ववादी सोच का अंत होकर ही रहेगा। संविधान के आगे मनु का विधान लंबे समय तक चल भी नहीं सकता है। यह ‘इंडिया’ की जीत है। (स्रोत : एक्स हैंडिल पर जारी संदेश)

भाजपा अब समझी है जातिगत जनगणना का सामाजिक महत्व : सिद्धरमैय्या, मुख्यमंत्री, कर्नाटक

भाजपा की यह पहल स्वागतयोग्य है, जो वर्षों से यह कहती आ रही है कि जातिगत जनगणना समाज में विभाजन को बढ़ाएगी और यह हिंदुओं की एकता को खंडित करने की साजिश है। अब वह उसने सच्चाई को स्वीकार किया है और जातिगत जनगणना के सामाजिक महत्व को समझा है। (स्रोत : एक्स हैंडिल पर जारी संदेश)

कांग्रेस और भाजपा एक ही सिक्के के दो पहलू : प्रकाश आंबेडकर, अध्यक्ष, वंचित बहुजन आघाड़ी

आज मैंने कांग्रेस पार्टी की प्रेस देखी। मानना पड़ेगा कि कांग्रेस से बड़ा कोई चोर नहीं है। चोर इसलिए बोल रहा हूं, क्योंकि उसने दलित, आदिवासी, बहुजन समाज की लीडरशिप के मुद्दे की चोरी करके अपना बनाकर पेश कर दिया है।

अगर पिछले बस 35 साल की बात ही देखी जाए तो कांग्रेस और उसके मित्रों की पार्टी 15 साल केंद्र में सत्ता में रही। 1990 से देखा जाए तो कांग्रेस के 3 प्रधानमंत्री देश में रह चुके हैं। मैं 1980 से राजनीति में हूं। यह सारी डिमांड आज जो कांग्रेस के माध्यम से रखी गई हैं, वे मांगें आंबेडकरवादी नेतृत्व की हैं। ये मांगें मेरी हैं, ये मांगें प्रधानमंत्री वी.पी. सिंह की हैं, ये मांगें बहनजी [मायावती जी] की हैं। इतने साल सत्ता में रहकर कांग्रेस ने इन मांगों को क्यों पूरा नही किया? इतने सालों से सत्ता में रहनेवाली कांग्रेस पार्टी ने हमसे हमारा मुद्दा चुरा कर देश के सामने रख दिया।

जैसे उच्च जाति के लोग दलित समाज का लेबर चुरा कर अपना बताकर बेचते हे, वैसे ही कांग्रेस ने हमारे मुद्दे चुरा कर अपना बता दिया। कांग्रेस से बड़ी कोई इंटलैक्चुअल चोर नही है। इसलिए हम कहते हैं कि भाजपा और कांग्रेस एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।(स्रोत : एक्स हैंडिल पर जारी संदेश)

जाति जनगणना से नीतियों को अधिक न्यायसंगत और लक्षित बनाने में मदद मिलेगी : अनुप्रिया पटेल, केंद्रीय राज्य मंत्री व नेता अपना दल (एस)

माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी की अध्यक्षता में आज केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में “जाति आधारित जनगणना” को मंजूरी देकर वंचितों के हित में एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया गया। मेरी पार्टी स्थापना काल से ही निरंतर देश में जाति आधारित जनगणना की मांग करती रही है। सड़क से संसद तक अपना दल (एस) ने जाति-जनगणना की पुरज़ोर वकालत की है।

आज इस मांग को माननीय प्रधानमंत्री जी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार द्वारा स्वीकृति मिल चुकी है।

इस ऐतिहासिक निर्णय हेतु समस्त अपना दल (एस) परिवार की ओर से माननीय प्रधानमंत्री जी का हृदय से आभार प्रकट करती हूं। 

पिछले कुछ वर्षों में जाति जनगणना को लेकर फैलाई गई भ्रांतियों पर आज पूर्ण विराम लग गया है। देश में 1931 में अंतिम बार यह कार्य हुआ था। 1947 के बाद यूपीए सरकार को भी अवसर मिला पर उन्होंने इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया। किंतु मोदी सरकार की कथनी-करनी में कोई अंतर नहीं है। हम कांग्रेस की अगुवाई वाले इंडी गठबंधन की तरह सामाजिक न्याय की महज़ सियासी जुगाली नहीं करते, बल्कि ठोस निर्णय लेकर दिखाते हैं।

हमारी सरकार का रिकॉर्ड सामाजिक न्याय से जुड़े मसलों को उलझाने का नहीं बल्कि सुलझाने का है।

आज़ाद भारत में अब पहली बार जाति-जनगणना संपन्न होगी। केंद्र सरकार का यह कदम देश के वंचित वर्ग के विकास की दिशा में एक बड़ा बदलाव लाएगा। जाति जनगणना से नीतियों को अधिक न्यायसंगत और लक्षित बनाने में मदद मिलेगी। (स्रोत : आधिकारिक फेसबुक एकाउंट पर जारी संदेश

जातिगत जनगणना के साथ सामाजिक-आर्थिक और शैक्षणिक गणना भी कराए सरकार : अली अनवर, राष्ट्रीय अध्यक्ष, ऑल इंडिया पसमांदा महाज व पूर्व राज्यसभा सदस्य

सिर्फ जातियों की संख्या की गिनती से कोई फायदा नहीं होगा। सभी जातियों की गिनती के साथ उनकी सामाजिक-आर्थिक और शैक्षिक स्थिति तथा सरकारी और गैर-सरकारी नौकरियों में उनके वर्गवार प्रतिनिधित्व का पता लगाना भी बहुत जरूरी है। सबसे पहले मैंने 18 दिसंबर, 2009 को राज्यसभा में विशेष उल्लेख के जरिए जातिगत जनगणना की मांग की थी। अफ़सोस यह है कि उस समय किसी भी अन्य सांसद ने मेरे इस मांग का समर्थन नहीं किया। मेरी आवाज ‘नक्कारखाने में तूती की आवाज’ साबित हुई। जनहित अभियान के राजनारायण और दूसरे लोगों ने सर्वश्री लालू यादव, मुलायम सिंह यादव और शरद यादव से संपर्क कर इस सवाल को लोकसभा में उठाने का आग्रह किया। इसके बाद उक्त नेताओं ने 2010 के बजट सत्र के दौरान जातिगत जनगणना की मांग को सम्मिलित ढंग से उठाया था। तब सरकार ने इसे मान लिया और 2011 में यह जनगणना हुई भी। मगर वर्तमान सरकार ने उस जनगणना के आंकड़ों को जारी नहीं किया। 

मौजूदा सरकार पहलगाम की हृदय विदारक घटना में अपनी नाकामी से ध्यान हटाने और राहुल गांधी द्वारा इस संबंध में चलाए जा रहे राष्ट्रव्यापी अभियान और बिहार चुनाव के मद्देनजर अगली जनगणना जातिगत जनगणना के रूप में कराने की घोषणा तो की है। लेकिन इसमें आर्थिक-सामाजिक गणना की बात नहीं है। साथ ही इसका कोई स्पष्ट ‘टाइम लाइन’ भी नहीं है। इसलिए देश भर के सामाजिक-आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग के लोगों को इस घोषित स्वरूप में इसे स्वीकार नहीं करना चाहिए। 

बिहार के मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार ने किस मुंह से केंद्र सरकार के इस निर्णय का स्वागत किया है। जबकि केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बिहार सहित कर्नाटक और तेलंगाना की जातिगत सर्वे को ‘गैर पारदर्शी’ करार दिया है? (स्रोत : प्रेस विज्ञप्ति)

(इस प्रस्तुति में सम्मिलित बयानों में पठनीयता बनाए रखने हेतु आंशिक तौर पर संशोधन किए गए हैं)

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एफपी डेस्‍क

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