[बिहार में पिछड़े वर्गों की पहचान व उनके लिए शासन-प्रशासन में भागीदारी सुनिश्चित करने की दिशा में भोला पासवान शास्त्री के मुख्यमंत्रित्व काल में मुंगेरी लाल आयाेग का गठन सामाजिक न्याय के इतिहास में मील का पत्थर साबित हुआ। इसके गठन के बारे में दावे और प्रतिदावे किए जाते रहे हैं। जबकि इस आयोग ने अपनी अंतरिम रिपोर्ट में इसका उल्लेख किया है कि इस आयोग के पहले भी अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और पिछड़े वर्गों के कल्याण हेतु आयोगों व समितियों का गठन हुआ। हालांकि इस संबंध में कोई स्पष्ट जानकारी उपलब्ध नहीं है। इसके अलावा यह भी कि 23 दिसंबर, 1971 को इस आयोग के गठन के पहले तत्कालीन मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर सरकार ने 1जून, 1971 को बीस सदस्यीय आयोग का मनोनयन किया था, जिसे रद्द कर दिया गया। इस प्रकार यह आयोग इस रूप में पिछड़े वर्गों के लिए बिहार का पहला आयोग है, जिसने अपनी जिम्मेवारियों का निर्वहन किया। इस आयोग की अनुशंसाओं को 1978 में तत्कालीन मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर की सरकार द्वारा संशोधित रूप में लागू किया गया।
प्रस्तुत हैं इस आयोग की पहली अंतरिम रिपोर्ट के आरंभिक कुछ पन्ने, ताकि इतिहास के पन्नों से धुंधलापन दूर हो।]
तत्कालीन मुख्यमंत्री केदार पांडेय को लिखा गया पत्र
अर्द्ध सरकारी पत्र सं. 89
श्री मुंगेरी लाल, अध्यक्ष,
पिछड़ा वर्ग आयोग
पटना-13
दिनांक 26 फरवरी, 1973
प्रिय मुख्यमंत्री जी,
राज्य सरकार ने 23 दिसंबर, 1971 को पिछड़ा वर्ग आयोग नियुक्त कर उसे अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों, अन्य पिछड़े वर्गों और महिलाओं की समस्याओं के संबंध में छानबीन करने और रिपोर्ट देने का काम सौंपा। आयोग को 31 दिसंबर, 1972 तक अपनी रिपोर्ट देनी थी। आयोग के लिये यह संभव नहीं हुआ है कि वह विनिर्दिष्ट अवधि के भीतर सौंपे गये काम को पूरा कर सके। आयोग को अपने कार्य के निष्पादन में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा है। पूर्ण प्रयास के बावजूद आयोग को सितंबर, 1972 तक अपने कार्यालय के लिए कोई उपयुक्त स्थान उपलब्ध न हो सका। आयोग ने एक विस्तृत प्रश्नावली तैयार की और उसे जून 1972 में मुद्रण के लिए सरकारी प्रेस में भेजा, किंतु मुद्रित प्रतियां अगस्त 1972 में ही प्राप्त की जा सकी। तब आयोग ने सितंबर, 1972 में सरकारी विभागों को प्रश्नावली भेजने की चेष्टा की किंतु सचिवालय के घेराव और हड़ताल के कारण कुछ विभागों को उक्त प्रश्नावली की प्रतियां न भेजी जा सकीं। और जब, प्रश्नावली भेजी भी गईं तो अधिकांश सरकारी विभागों से उत्तर नहीं प्राप्त हो सका। इन्हीं सब कारणों से आयोग अपने कार्य के निष्पादन में संतोषजनक प्रगति नहीं कर सका है। यहां यह उल्लेखनीय है कि सरकार ने अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़े वर्गों की समस्याओं के अध्ययन के लिए इस तरह के जो आयोग और समितियां पहले गठित कीं, उन्होंने रिपोर्ट पेश करने में सामान्यतः एक वर्ष से अधिक का समय लिया, हालाकि उन्हें केवल एक ही समुदाय की समस्याओं का अध्ययन करना था। इस आयोग को सौंपे गए कार्य की व्यापकता पर विचार करते हुए यह आशा करना व्यर्थ है कि यह निर्दिष्ट समय के भीतर अपना कार्य पूरा कर सके। इसलिए आयोग ने अपना कार्य-काल बढ़ाने की मांग की और राज्य सरकार ने इसके कार्य-काल को 31 दिसंबर 1973 तक बढ़ा दिया है।
2. आयोग ने अबतक 7 जिलों का दौरा किया है और सचिवालय के कुछ कार्यालयों की जांच की है। इसने मुख्यतः इस बात की जांच की है कि अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों के लिये पदों एवं सेवाओं के आरक्षण के संबंध में राज्य सरकार द्वारा जारी किये गये अनुदेशों का पालन विभिन्न नियुक्ति प्राधिकारियों ने कहां तक किया है। आयोग को यह बताते हुए दुःख होता है कि अबतक के अध्ययन से यही पता चला कि प्रायः सभी नियुक्ति प्राधिकारियों ने जाने या अनजाने में इस संबंध में जारी किए गए सरकारी अनुदेशों का उल्लंघन किया है, जिसका परिणाम यह हुआ है कि यद्यपि आरक्षण संबंधी ये आदेश 24 वर्षों से अधिक समय से चले आ रहे हैं तो भी राज्य सरकार के इन विभागों और कार्यालयों में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों का प्रतिनिधित्व अत्यंत असंतोषजनक रहा है। जिन विभागों और कार्यालयों का अभी अध्ययन करना बाकी है उनमें भी यही स्थिति हो सकती है। आयोग ने सोचा कि यदि उसने अपनी जांच पूरी करने के बाद अपनी रिपोर्ट पेश की तो ऐसी अनियमितताएं की जाती रहेंगी और इस बीच अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों को काफी नुकसान होगा। इसलिए इसने एक अंतरिम रिपोर्ट पेश करने का निश्चय किया ताकि सरकार इस स्थिति को सुधारने के लिये समुचित प्रत्युपाय कर सके।
3. अबतक हमने जो छानबीन और अध्ययन किया है उन पर आधारित अपनी सिफारिशों की यह अंतरिम रिपोर्ट पेश करते हुए हमें अपार हर्ष हो रहा है। हमें इसमें कोई संदेह नहीं है कि सरकार द्वारा इन सिफारिशों का कार्यान्वयन हो जाने से सरकारी विभागों और कार्यालयों के साथ ही निजी और सरकारी उपक्रमों की अधीनस्थ सेवाओं में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के प्रतिनिधित्व में वृद्धि हो सकेगी।
4. हम इस बात की सराहना किए बिना नहीं रह सकते कि पिछड़ी जातियों के कल्याण में लगे गैर-सरकारी संगठनों और व्यक्तियों ने अपनी काफी व्यक्तिगत असुविधा के बावजूद साक्ष्य देना तथा आयोग को इसके कार्य में मदद देना सहर्ष स्वीकार किया। हमें प्रमण्डल और जिला प्रशासन से अपने कार्य में सद्भाव, सहानुभूति और सहायता मिली, जिसके लिए हम उनके प्रति आभार प्रकट करते हैं। हमें निजी और सरकारी उपक्रमों के पदाधिकारियों से भी सहयोग मिला जिसके लिए हम उन सबों को धन्यवाद देते हैं।
5. हमें आशा है कि सरकार यह रिपोर्ट यथाशीघ्र प्रकाशित करेगी और आगामी बजट सत्र में इसे विधान मण्डल के समक्ष रखेंगी।
आपका
मुंगेरी लाल
सेवा में,
श्री केदार पाण्डेय,
मुख्यमंत्री, बिहार, पटना

पहली अंतरिम रिपोर्ट की प्रस्तावना
यह सर्वविदित है कि भारत के संविधान में अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों के लिए सेवा में आरक्षण का उपबंध है। संविधान के इस उपबंध को कार्य रूप देने के लिए राज्य सरकार ने नियुक्ति-विभाग के संकल्प सं. III-एल-3-6/50-ए.–7285, दिनांक 31 जुलाई 1951 द्वारा, इन जातियों के लिये सरकारी सेवा में आरक्षण के संबंध में एक आदेश निर्गत किया। इसके अनुसार राज्य स्तर पर होनेवाली नियुक्तियों में अनुसूचित जातियों के लिये 13 प्रतिशत एवं अनुसूचित जनजातियों के लिये 11 प्रतिशत आरक्षण निर्धारित किया गया। प्रमण्डल एवं जिला स्तर पर होनेवाली नियुक्तियों में एक विशेष फार्मूला के अनुसार प्रमण्डलों तथा जिलों में, इन जातियों की जन संख्या के आधार पर आरक्षण के भिन्न-भिन्न प्रतिशत निर्धारित किए गए। फिर 1651 की जनगणना के आधार पर नियुक्ति विभाग के संकल्प सं. III-3-एल-6/50-ए–9908, दिनांक 13 नवंबर 1953, द्वारा एक दूसरा आदेश निर्गत किया गया जिसके अनुसार राज्य स्तर पर होने वाली नियुक्तियों में अनुसूचित जातियों के लिए 12 1/2 प्रतिशत एवं अनुसूचित जनजातियों के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण निर्धारित किया गया और प्रमण्डल एवं जिला स्तर पर होने वाली नियुक्तियों के लिए भी आरक्षण के भिन्न-भिन्न प्रतिशत निर्धारित किए गए। नियुक्ति पदाधिकारियों से अनुरोध किया गया कि वे आरक्षण संबंधी आदेशों का निष्ठापूर्वक पालन करें। उन्हें चेतावनी भी दी गई कि अगर आदेशों की अवहेलना के दृष्टान्त पाये जायेंगे तो सरकार संबंधित पदाधिकारी के विरुद्ध आवश्यक कार्रवाई करेगी।
बिहार विधान-सभा में 25 मई 1970 को श्री विश्वनाथ मोदी ने अपने तारांकित प्रश्न सं. 226 द्वारा यह पूछा कि अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों के लिये जो स्थान आरक्षित थे उनपर जब उच्च जाति के लोगों को नियुक्त कर लिया गया तो क्या सरकार आगे जो रिक्तियां होंगी उनमें केवल अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों को नियुक्त कर इस कमी की पूर्ति करेगी? तत्कालीन मुख्यमंत्री, श्री दारोगा प्रसाद राय ने उस प्रश्न के उत्तर के सिलसिले में यह स्वीकार किया कि संविधान द्वारा जो सुविधाएं अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों को दी गई हैं, उनका सही-सही कार्यान्वयन नहीं हुआ है। उन्होंने यह भी कहा कि माननीय सदस्यों की भावना का कद्र करते हैं, लेकिन नियुक्ति पदाधिकारियों ने जो बराबर यही कहा है कि इन जातियों के योग्य उम्मीदवार नहीं मिलते उनका यह कथन ठीक नहीं है। उन्होंने आश्वासन भी दिया कि इस संबंध में उचित जांच कराई जाएगी और संवैधानिक तरीके से कमी की यथासम्भव पूर्त्ति की जाएगी। यह पूछे जाने पर कि इस आश्वासन की पूर्त्ति सरकार कैसे करेगी, उन्होंने विधान-सभा में घोषणा की कि अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों को संविधान द्वारा प्रदत्त सुविधाएं क्यों नहीं मिल सकी हैं, इसकी जांच के लिए सरकार एक आयोग गठित करेगी। इसी आश्वासन के अनुसार राज्य सरकार ने पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन किया। इस संबंध में नियुक्ति विभाग द्वारा निर्गत संकल्प नीचे उद्धृत है :–
आयोग की नियुक्ति के लिए राज्य सरकार द्वारा जारी संकल्प
बिहार सरकार
नियुक्ति विभाग
संकल्प
ज्ञाप सं. 3/एस.-2-119/70-नि.-22297
पटना-15, दिनांक 2 पौष 1893 (श.) / 23 दिसंबर, 1971
विषय- पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन।
राज्य सरकार ने अपने संकल्प सं. 9355, दिनांक 1 जून 1971 के द्वारा एक पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन किया था, जिसमें 20 सदस्य मनोनीत किए गए थे।
2. जिन उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु आयोग का गठन किया गया था उसे स्वीकार करते हुए राज्य सरकार ने पुनर्विचार कर यह निर्णय लिया कि 20 सदस्यों की बड़ी समिति के माध्यम से यह प्रयोजन सिद्ध नहीं होगा। अतः नियुक्ति विभाग के संकल्प सं. 11441, दिनांक 25 जून 1971 के द्वारा मनोनयन संबंधी अधिसूचना रद्द कर दी गई एवं एक छोटी समिति गठित करने का निर्णय लिया गया।
3. अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं अन्य पिछड़ी जाति के लोगों के हित तथा कल्याण की रक्षा संबंधी सरकारी आदेशों के अनुपालन में हुई त्रुटियों के कौन-कौन कारण हैं तथा इन जातियों के सर्वांगीण अभ्युदय के लिए और कौन-कौन सी सुविधाएं दी जायं इन पर विचार करने के लिए राज्य सरकार ने पुनः एक पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन किया है जिसमें निम्नलिखित सज्जन सदस्य होंगे :—
(1) श्री मुंगेरी लाल – अध्यक्ष
सदस्यगण
(2) श्री अब्दुल क्यूम अंसारी,
(3) श्री धनिक लाल मण्डल;
(4) श्री देव शरण सिंह,
(5) श्री करम चन्द भगत,
(6) श्री वैद्यनाथ दास,
(7) श्री यमुना प्रसाद सिंह।
4. आयोग का मुख्यालय पटना होगा। आयोग जिन बिंदुओं पर जांच-पड़ताल की अनुशंसा देगा उनका उल्लेख अनुलग्नक में है।
5. आयोग की कालावधि 31 दिसंबर 1972 तक होगी। इस संकल्प को बिहार गजट में प्रकाशित की जाय एवं इसकी एक प्रतिलिपि सभी सरकारी विभाग/सभी प्रमण्डलीय आयुक्त/ सभी जिला पदाधिकारी/बिहार विधान सभा/बिहार विधान परिषद् तथा महालेखाकार, बिहार को सूचनार्थ भेजी जाय।
बिहार-राज्यपाल के आदेश से,
शिवनाथ सैगल, सचिव।
पिछड़ा वर्ग आयोग के लिये विचारणीय विषय
(क) पिछड़ा वर्ग आयोग यह जांच करेगा कि अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों की सेवा में आरक्षण देने के संबंध में राज्य सरकार द्वारा दिए गये अनुदेशों को राज्य सरकार के विभिन्न विभागों ने कहां तक पालन किया है तथा इसकी छानबीन करेगा कि उन विभागों ने इस संबंध में दिए गये विभिन्न आदेशों को किन कारणों से अमल में नहीं लाया।
(ख) यह जांच करेगा कि राज्य सरकार के विभिन्न विभागों ने राज्य सरकार के इन अनुदेशों का कि नियुक्तियां करते समय नियुक्ति पदाधिकारियों के अन्य पिछड़े वर्ग के उम्मीदवारों के दावों पर सम्यक विचार कर लेना चाहिए किस हद तक पालन किया है।
(ग) यह जांच करेगा कि इस राज्य में चालू राज्य लोक उपक्रमों और नियमों में अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों का पर्याप्त प्रतिनिधित्व है या नहीं।
(घ) अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों तथा अन्य पिछड़े वर्गों के कल्याण के लिए लागू किए गये विभिन्न विकास कार्यक्रमों के कार्यान्वयन की सामान्य समीक्षा करेगा।
(ङ) यह जांच करेगा कि अन्य पिछड़े वर्गों को उन्नति के लिये अबतक जो उपाय किए गये हैं वे पर्याप्त हैं या नहीं।
(च) ऐसी अन्य बातों की छानबीन करेगा जो राज्य सरकार उसे आगे सौंपेगी।
(छ) राज्य सरकार को अपने द्वारा पाए गये तथ्यों की एक रिपोर्ट देगा और सिफारिश करेगा कि—
- अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए सेवाओं में आरक्षण के संबंध में राज्य सरकार को विभिन्न आदेशों के सफलतापूर्वक अंजाम देने के लिये राज्य सरकार कौन-सी कार्रवाई करे।
- सेवाओं में आरक्षण के लिए अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों को कौन-सी अतिरिक्त सुविधाएं दी जाए।
- राज्य में चालू लोक उपक्रमों और निगमों में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों तथा अन्य पिछड़े वर्गों को पर्याप्त प्रतिनिधित्व देने के लिए कौन-सी कार्रवाई की जाए।
- अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों के कल्याण के लिए और क्या किया जाय। आयोग यह भी रिपोर्ट करेगा कि अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के कल्याणजनक विषयों से संबंधित विकास योजनाओं में उनके उद्देश्य प्राथमिकता या कार्य-प्रणाली की दृष्टि से कोई परिवर्तन आवश्यक है या नहीं।
- हरिजन, आदिवासी, महिला तथा अन्य सामाजिक दृष्टि से पिछड़ी जातियों को शिक्षा, रोजगार, नौकरी आदि में विशेष अवसर एवं सुविधा दिलाने की क्या व्यवस्था की जाय।
- अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं अन्य पिछड़े जातियों के संबंध में काका कालेलकर, ठक्कर बापा, ढेवर आयोग एवं अन्य आयोगों की अनुशंसा का अनुपालन किस हद तक हुआ है और उस संबंध में और कौन-सी कार्रवाई की जाय।
- अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों एवं अन्य पिछड़ी जातियों के लिए जो विशेष सुविधा की व्यवस्था अब तक की जा चुकी है उनसे इन समुदायों के सभी वर्गों को सम्यक रूप से लाभ मिला है या नहीं और यदि नहीं तो स्थिति में सुधार लाने के लिये क्या विशेष व्यवस्था को जाय।
आयोग की कार्यपद्धति
(क) विभिन्न विभागों/विभागाध्यक्षों/कार्यालयों और ऐसे अन्य प्रतिष्ठानों, संघटनों या व्यक्तियों से जो आयोग की राय में उसके लिये सहायक हो सकते हैं उस फारम में और उस रीति से, जो वह समुचित समझे अपने प्रयोजन के लिये आवश्यक या सुसंगत जानकारी प्राप्त करेगा।
(ख) अपनी बैठकें या अपने ही सदस्यों के बीज से अपने द्वारा नियुक्त की जाने वाली उप-समितियों की बैठकें ऐसे समय और ऐसे स्थानों में कर सकेगा जिसे अध्यक्ष द्वारा या उसके प्राधिकार से निर्धारित किया जाय।
(ग) राज्य के किसी भी ऐसे स्थान का मुआईना करेगा या उसके लिये अपनी किसी उप-समिति को प्रतिनियुक्त करेगा जिसे वह आवश्यक या सुविधाजनक समझे।
(घ) अपने किसी सदस्य की अस्थायी अनुपस्थिति या सदस्यों का कोई रिक्त होने पर भी काम करता रहेगा, और,
(ङ) अपनी कार्य प्रक्रिया को विनियमित करेगा।
आयोग की पहली बैठक 13 जनवरी 1972 को हुई जिसमें भूतपूर्व मुख्य सचिव एवं प्रमुख पदाधिकारी, श्री राम सेवक मण्डल भी उपस्थित थे। बैठक में यह निर्णय लिया गया कि श्री ठाकुर प्रसाद, उप-सचिव, कार्मिक विभाग एवं मंत्रिमण्डल सचिवालय की पिछड़ा वर्ग आयोग का सदस्य-सचिव नियुक्त किया जाए। तदनुसार नियुक्ति विभाग की अधिसूचना सं. 3-एस-2-119/70-नि.–1028, दिनांक 20 जनवरी, 1972 द्वारा श्री ठाकुर प्रसाद को आयोग के सदस्य-सचिव के रूप में नियुक्त किया गया और उन्होंने 29 जनवरी 1972 को पद ग्रहण किया।
जैसा कि उपर्युक्त संकल्प से स्पष्ट है, आयोग की कालावधि 31 दिसंबर 1972 तक ही रखी गई थी। आम चुनाव के कारण आयोग अपना कार्य मार्च, 1972 तक तत्परतापूर्वक शुरू नहीं कर सका। आम चुनाव के बाद अप्रैल, 1972 से जब आयोग ने कारगर ढंग से अपना कार्य प्रारम्भ करने का प्रयास किया तो इसे अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। पहली कठिनाई थी पिछड़ा वर्ग आयोग के लिये भवन की व्यवस्था। राज्य सरकार कोई सरकारी भवन आयोग के कार्यालय के लिये उपलब्ध नहीं करा सकी। इसलिये किराये के भवन की खोज आरम्भ हुई। बड़ी कठिनाई से सितंबर, 1972 में कार्यालय के लिये एक मकान मिल सका और तब आयोग ने पूरी मुस्तैदी से कार्य प्रारम्भ कर दिया। आयोग ने एक विशद प्रश्नावली तैयार की थी और उसे मुद्रण के लिये जून, 1972 में सचिवालय मुद्रणालय भेजा था। यद्यपि अधीक्षक, सचिवालय मुद्रणालय से बार-बार अनुरोध किया गया कि मुद्रण शीघ्र समाप्त कर दें क्योंकि आयोग की कालावधि 31 दिसंबर 1972 तक़ ही है तथापि बहुत अनुनय-विनय के बाद मुद्रणालय ने मुद्रण कार्य में हाथ लगाया और अगस्त महीने में मुद्रित प्रतियां उपलब्ध हो सकीं। सितंबर में जब विभागीय सचिवों एवं विभागाध्यक्षों को प्रश्नावली की प्रति भेजी जाने लगी तो हड़ताल एवं घेराव के कारण इसमें काफी बाधा आ पड़ी। विभागीय सचिवों एवं विभागाध्यक्षों को जब साक्ष्य देने के लिये आमंत्रित किया गया तो उन्होंने समय मांगा। अभी तक किसी विभाग से प्रश्नावली का पूर्ण उत्तर प्राप्त न हो सका है।
आयोग विभिन्न जिलों में घूम-घूम कर कार्यालयों के प्रधान का साक्ष्य लेता है और अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति आरक्षण-आदेश के कार्यान्वयन की जांच-पड़ताल करता है। यह अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जन-जातियों, अन्य पिछड़े वर्ग एवं महिलाओं के कल्याण में अभिरुचि रखने वाले व्यक्तियों से विचार-विमर्श करता है। यह उपर्युक्त वर्गों के लिये संविधान द्वारा प्रदत्त सुविधाएं के कार्यान्वयन का भी अध्ययन करता है। अबतक आयोग चम्पारण, रांची, सिंहभूम, धनबाद, मुंगेर, भागलपुर एवं शाहाबाद जिलों में स्थानीय अध्ययन पूरा कर चुका है।
उपर्युक्त कठिनाइयों के कारण, आयोग अपनी भरपूर कोशिश के बावजूद, कार्य में अपेक्षित प्रगति नहीं ला सका है। ऐसी स्थिति में आयोग के लिये यह संभव नहीं हो सका कि अपना कार्य समाप्त कर 31 दिसंबर 1972 तक प्रतिवेदन प्रस्तुत कर दे। लेकिन अब तक आयोग ने आरक्षण संबंधी आदेशों के पालन के संबंध में जो जांच की है उससे पता चलता है कि अधिकतर विभागों एवं नियुक्ति पदाधिकारियों ने सरकारी आदेशों का या तो जानबूझ कर या अज्ञानतावश उल्लंघन किया है : आयोग की कालावधि एक वर्ष के लिए बढ़ा दी गई है। लेकिन आयोग ने यह विचार किया कि अगर अपना कार्य समाप्त करने के बाद ही आरक्षण संबंधी विषयों पर प्रतिवेदन प्रस्तुत करेगा तो इस बीच नियुक्तियों में अनियमितता होती रहेगी और सरकारी सेवा में अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों के प्रतिनिधित्व की स्थिति में सुधार नहीं हो सकेगा। इसलिये आयोग ने यह निर्णय किया कि सेवा से सम्बद्ध विषयों के बारे में अपना अन्तरिम प्रतिवेदन प्रस्तुत करे ताकि राज्य सरकार स्थिति में सुधार लाने के लिये आवश्यक कदम उठा सके।
आयोग को यह लिखते हुए बहुत दुःख है कि उनके एक सदस्य श्री अब्दुल क्यूम अंसारी दिनांक 18 जनवरी 1973 को चल बसे। वे भारत सरकार द्वारा गठित पिछड़ा वर्ग आयोग के सदस्य रह चुके थे। वे इस आयोग के कार्य में काफी दिलचस्पी लेते थे। आयोग उनके बहुमूल्य सुझावों और सहयोग के लिये हृदय से उनके प्रति आभारी है। उन्होंने इस अन्तरिम प्रतिवेदन के प्रारूप को देखा था एवं इसमें अपनी सहमति भी दी थी लेकिन इस पर हस्ताक्षर करने के पहले ही उनका देहान्त हो गया।
(प्रस्तुति : राजन, साभार : बिहार विधान सभा पुस्तकालय)
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