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तमिलनाडु में ऑनर किलिंग : फिर सामने आया दलितों के खिलाफ गैर-दलितों के मन में भरा जहर

दलित युवक केविन सेल्वा गनेश की यह ऑनर किलिंग उस तमिलनाडु में की गई है, जहां आर्य, वैदिक और ब्राह्मण संस्कृति-सभ्यता के बरअक्स द्रविड़, अनार्य, बहुजन-श्रमण और गैर-ब्राह्मण संस्कृतिक-सभ्यता को स्थापित करने के लिए सबसे तीखा आंदोलन चला। बता रहे हैं डॉ. सिद्धार्थ रामू

‘द इंडियन एक्सप्रेस’ और अन्य मीडिया माध्यमों से प्राप्त खबर के मुताबिक गत 27 जुलाई, 2025 को तमिलनाडु की तिरुनवेली जिले में एक दलित साफ्टवेयर इंजीनियर की निर्मम तरीके से हत्या कर दी गई। इस होनहार युवा का नाम केविन सेल्वा गनेश था। चेन्नई में टाटा कंसलटेंसी सर्विस (टीसीएस) में काम करता था। उसकी हत्या उस लड़की के भाई सुरजिथ ने किया, जिससे वह प्रेम करता था और शादी का ख्वाब पाले हुए था। लड़की का नाम सुबासिनी है। वह तिरुनवेली के एक अस्पताल में कंसलटेंसी का काम करती है और अति पिछड़े वर्ग से आती है। सहज-स्वाभाविक तरीके से इसे ऑनर किलिंग कहा जा रहा है।

खबरों में बताया गया है कि मुख्य आरोपी सुरजिथ के माता-पिता दोनों पुलिस अधिकारी (सब इंस्पेक्टर) हैं। मृतक चेन्नई में ही टाटा कंसलटेंसी (टीसीएस) में काम करता था। लड़का और लड़की दोनों स्कूल के दिनों से एक-दूसरे से प्यार करते थे, लेकिन लड़की के परिजन दलित लड़के से अपनी घर की लड़की की शादी करने को तैयार नहीं थे। यह भी कहा जा रहा है कि मृतक के परिवार को कई बार धमकियां भी दी गईं।

खबरों के अनुसार, केविन जब अपने दादा के स्वास्थ्य के बारे में सुझाव लेने के लिए सुबासिनी के पास उस अस्पताल में गया जहां वह काम करती थी। इस बीच सुबासिनी का भाई सुरजिथ वहां पहुंच गया और उसने केविन से कहा कि उसके माता-पिता उससे मिलना चाहते हैं। सुरजिथ जब केविन को लेकर दो पहिया वाहन से जा रहा था तभी बीच रास्ते में अचानक उसने वाहन को रोक दिया और चिल्लाने लगा कि दूसरी जाति की लड़की से प्रेम करने और शादी का ख्वाब देखने की तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई। यह कहते हुए सुरजिथ ने अपनी कमर से हंसिया निकाली और उससे केविन की निर्मम हत्या कर दी। प्रत्यक्षर्शियों के अनुसार केविन ने भागने की कोशिश की, लेकिन वह उसकी पकड़ से छूट नहीं पाया। इस वारदात को दिनदहाड़े सड़क पर अंजाम दिया गया।

इस हत्या के सामाजिक-मनोवैज्ञानिक तहों में जाने से पहले कुछ तथ्य रेखांकित करना लेना आवश्यक हैं। मसलन–

  1. लड़का और लड़की की वर्गीय स्थिति (आर्थिक स्थिति) में कोई विशेष अंतर नहीं है।
  2. लड़की का पूरा परिवार सुशिक्षित है, उच्च शिक्षा प्राप्त है। उसके माता-पिता दोनों पुलिसकर्मी (सब इंस्पेक्टर) हैं।
  3. लड़का एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में साॅफ्टवेयर इंजीनियर के पद पर है। लड़की अस्पताल में कंसलटेंट है।
  4. यह हत्या उस प्रदेश में हुई है, जहां करीब 58 वर्षों से बहुजन विचारधारा की पार्टियां सरकार में हैं, जो घोषित तौर पर वर्ण-जाति व्यवस्था और उसकी संस्कृति-सभ्यता और जीवन-मूल्यों के खिलाफ हैं।
  5. यह हत्या उस प्रदेश में हुई है, जो प्रदेश केरल के बाद सबसे अधिक साक्षर है और जहां सबसे अधिक उच्च शिक्षा प्राप्त लोग हैं।
  6. यह हत्या उस तमिलनाडु में हुई है, जो बहुजन आंदोलन के चलते बहुजनों के लिए एक मॉडल प्रदेश है।
  7. यह ऑनर किलिंग उस तमिलनाडु में की गई है, जहां आर्य, वैदिक और ब्राह्मण संस्कृति-सभ्यता के बरअक्स द्रविड़, अनार्य, बहुजन-श्रमण और गैर-ब्राह्मण संस्कृतिक-सभ्यता को स्थापित करने के लिए सबसे तीखा आंदोलन चला।
  8. यह निर्मम हत्या आयोथि थास, पेरियार, अन्नादुरई, करूणानिधि और अन्य वर्ण-जाति व्यवस्था विरोधी नायकों की जन्मभूमि-कर्मभूमि में हुई है।
  9. यह ऑनरकिलिंग उस तमिलनाडु में हुई है, जहां ब्राह्मणवाद के सबसे बड़े संरक्षक और पैरोकार ब्राह्मणों के भौतिक वर्चस्व को करीब-करीब तोड़ा जा चुका है और जहां पर तथाकथित द्विज क्षत्रिय मौजूद नहीं हैं।
मृतक केविन सेल्वा गनेश की तस्वीर

तमिलनाडु में दलितों के खिलाफ गैर-दलितों के हमले, हिंसा, ऑनर किलिंग और भेदभाव की कोई यह पहली घटना नहीं है। वर्ष 2023 में तमिलनाडु में वर्ण-जाति आधारित भेदभाव को कैसे और किन उपायों से रोका जाए, इसके लिए मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन के नेतृत्व वाली सरकार ने मद्रास उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति के. चंद्रू की अध्यक्षता वाली एक सदस्यीय समिति गठित की थी। इस समिति ने माना था कि तमिलनाडु में बड़े पैमाने पर जातिगत भेदभाव, विशेषकर दलितों के साथ जारी है। हालांकि इस समिति के निष्कर्ष का संबंध विशेष रूप से स्कूलों-कॉलेजों में दलितों के साथ होने वाला भेदभाव और हिंसा से था।

पूर्व में दलितों के साथ घटित ऐसी घटनाएं और यह घटना बताती हैं कि तमिलनाडु जैसे प्रदेश में गैर-दलितों के भीतर भरा जातीय श्रेष्ठता बोध अभी भी खत्म नहीं हुआ है। गैर-दलित आज भी दलितों को ‘नीच’ और दोयम दर्जे का मानते हैं। वे उन्हें बराबर का इंसान मानने को तैयार नहीं है। कहा जा सकता है कि तमिलनाडु के गैर-दलितों के भीतर के जातिवादी जहर को खत्म करने में अभी भी आंशिक सफलता ही मिली है।

आज भी तमिलनाडु के गैर-दलित अंतर्जातीय विवाह के बारे में ब्राह्मणवादी धर्मशास्त्रों के आदेशों को अपना सामाजिक मूल्य और व्यक्तिगत जीवन मूल्य बना रखा है। दूसरों शब्दों में कहें तो ब्राह्मणवादी पितृसत्ता या जातिवादी पितृसत्ता तमिलनाडु में भी आज तक मजबूत बनी हुई है। ब्राह्मणवादी हिंदू धर्मशास्त्र वर्ण-जाति के श्रेणीक्रम के निचले पायदान के लड़के को अपने से उच्च पायदान की लड़की से शादी करने की अनुमति नहीं देते हैं। इस व्यवस्था और आदेश का गैर-दलित भी पालन करते हैं।

हालांकि देश के अन्य हिस्सों की तरह तमिलनाडु में भी सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रिया में हिंदुओं का एक हिस्सा प्रेम विवाह को मजबूरी में स्वीकार करने को तैयार हुआ है; लेकिन शर्त यह है कि लड़का अपनी जाति का होना चाहिए। एक अन्तर्निहित शर्त यह भी है कि आर्थिक हैसियत (यानी वर्ग) कमोवेश बराबर हो। लेकिन इस वर्गीय शर्त तो वे बाजदफा छोड़ भी देते हैं, लेकिन जाति की शर्त छोड़ने को वे तैयार नहीं होते। केविन सेल्वा गनेश की हत्या भी इसकी ही पुष्टि करती है। हालांकि कुछ लोग जाति की भी शर्त छोड़ने को तैयार हैं बशर्ते लड़का, लड़की वालों से ऊंची जाति का हो। इसे मनु ने अनुलोम विवाह कहा है और इसे स्वीकृति प्रदान की है। इस संदर्भ में मनु का कहना है–

शूद्रैव भार्या शूद्रस्य सा च स्वा च विश: स्मृते
ते च स्वा चैव राज्ञश्च ताश्चस्वा चाग्रजन्मन: (3/13)

यानी शूद्र पुरुष केवल शूद्र महिला के साथ ही शादी कर सकता है। वैश्य, वैश्य व शूद्र दोनों वर्ण की महिला के साथ शादी करने का अधिकारी है। वहीं क्षत्रिय को क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र तीनों वर्णों की महिलाओं के साथ शादी का अधिकार है। जबकि ब्राह्मण को चारों वर्णों की महिला से विवाह का अधिकार है। पंचम वर्ण या अंत्यज (दलित) तो सबसे नीचे की श्रेणी के बताए गए हैं।

मतलब यह कि किसी भी कीमत पर लड़के वालों की जाति लड़की वालों से नीची नहीं होनी चाहिए। अगर लड़के की जाति नीची हुई तो ऐसा धर्म के विरुद्ध शादी को प्रतिलोम विवाह कहते हैं। इसकी इजाजत हिंदू धर्म-शास्त्र नहीं देते।

कन्यां भजन्तीमुत्कृष्टं न किंचदपि दापयेत्
जघन्ये सेवामानां तुंसयतो वावसयेदगृहे (8/365)

मनु के इस विधान के मुताबिक, उत्तम जाति के पुरुष के साथ संभोग करने वाली कन्या किसी प्रकार के दंड की भागी नहीं है। जबकि नीच जाति के पुरुष के साथ संभोग करने वाली कन्या को कठोर दंड दिया जाना चाहिए।

समाज का एक हिस्सा आज इससे भी आगे बढ़ने को तैयार है। वह किसी विशेष हालात या स्वार्थ में प्रतिलोम विवाह भी करने को तैयार हो सकता है; लेकिन वह जाति किसी हालत में ‘अछूत’ कही जाने वाली जाति नहीं होनी चाहिए। अपवादस्वरूप दलित जाति के लड़के से उच्च जाति का व्यक्ति अपनी बेटी या बहन की शादी तभी स्वीकार कर सकता है, जब लड़का कोई बड़ा राजनेता, अधिकारी या कोई बड़ा कारोबारी हो, जिससे लड़की के परिवार वालों की हैसियत बढ़ने वाली हो और उन्हें आर्थिक-राजनीतिक फायदा मिलने वाला हो। हालांकि यह लिखते हुए इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि समाज का एक छोटा-सा हिस्सा इन बातों से ऊपर उठ चुका है, लेकिन वह किसी भी मायने में समाज की मुख्यधारा नहीं है।

दलित केविन सेल्वा गनेश की हत्या डॉ. राम मनोहर लोहिया के इस कथन की पुष्टि करती है कि भारतीय आदमी का दिमाग जाति और योनी के कटघरे में कैद है। जब जाति और योनि का सवाल एक साथ आ जाता है, तो भारतीय आदमी खास तौर गैर-दलित पागल हो जाते हैं। ज्योंही कोई दलित किसी गैर-दलित लड़की से प्रेम करता है, या शादी कर लेता है, गैर-दलित अपना विवेक पूरी तरह खो देते हैं। वे इस कदर पागल हो जाते हैं कि दिनदहाड़े सड़क पर हत्या करने पर उतारू हो जाते हैं। उन्हें इसकी कोई चिंता नहीं रहती है कि उन्हें जेल होगी या फांसी होगी और उनका जीवन-बर्बाद भी हो सकता है। गैर-दलितों के बड़े हिस्से का मान-स्वाभिमान, गरिमा, प्रतिष्ठा और हैसियत उसके घर की बेटी-बहन के दलित से शादी करते ही धूल-धूसरित या मटियामेट होती दिखती है।

दलितों के प्रति गैर-दलितों के इस जहर को खत्म करने में आजादी के 75 सालों बाद भी देश नाकाम साबित हुआ है। इसका खात्मा आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक क्रांतिकारी बदलाव के साथ ही एक बड़ी सांस्कृतिक क्रांति की मांग करता है, जो कि राष्ट्रव्यापी होनी चाहिए। तमिलनाडु जैसे राज्य में भी दलित और गैर-दलितों के बीच की आर्थिक खाई बहुत चौड़ी है। दलितों का बड़ा हिस्सा आज भी गैर-दलितों के यहां मजदूर के रूप में काम करता है। तमिलनाडु में ब्राह्मण-द्विज वर्चस्व का खात्मा तो हुआ है, लेकिन ब्राह्मणवाद का आज भी पूरी तरह खात्मा नहीं हुआ है। तमिलनाडु और अन्य प्रदेशों में बस अंतर यह है कि तमिलनाडु की सरकारें दलितों के प्रति हर भेदभाव और हिंसा को रोकने की पुरजोर कोशिशें करती हैं। वे किसी भी तरह से इसे बढ़ावा देने में कोई मदद नहीं करती हैं।

(संपादन : राजन/नवल/अनिल)


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लेखक के बारे में

डॉ. सिद्धार्थ रामू

डॉ. सिद्धार्थ रामू लेखक, पत्रकार और अनुवादक हैं। “सामाजिक क्रांति की योद्धा सावित्रीबाई फुले : जीवन के विविध आयाम” एवं “बहुजन नवजागरण और प्रतिरोध के विविध स्वर : बहुजन नायक और नायिकाएं” इनकी प्रकाशित पुस्तकें है। इन्होंने बद्रीनारायण की किताब “कांशीराम : लीडर ऑफ दलित्स” का हिंदी अनुवाद 'बहुजन नायक कांशीराम' नाम से किया है, जो राजकमल प्रकाशन द्वारा प्रकाशित है। साथ ही इन्होंने डॉ. आंबेडकर की किताब “जाति का विनाश” (अनुवादक : राजकिशोर) का एनोटेटेड संस्करण तैयार किया है, जो फारवर्ड प्रेस द्वारा प्रकाशित है।

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