बीते 28 अक्टूबर, 2025 को हमारी मुलाकात नेता प्रतिपक्ष लोकसभा राहुल गांधी से दिल्ली स्थित उनके कार्यालय इंदिरा भवन में हुई। हमारे साथी और हम शिक्षा संस्थानों में जातिवाद और नई शिक्षा नीति पर अपना सवाल और अपना विचार रखने गए थे।
राहुल गांधी के साथ यह मेरी दूसरी मुलाकात थी। पांच महीने पहले भी दिल्ली विश्वविद्यालय में उनसे मुलाकात हुई थी। तब उनकी मुलाकात का उद्देश्य यह था कि विश्वविद्यालय में आंबेडकरवादी राजनीति से जुड़े छात्रों से मिलना। तब उन्होंने जो कुछ हमलोगों से पूछा था, उसका मतलब यही था कि शिक्षा संस्थानों में जाति का कितना और कैसा प्रभाव है।
इस बार भी हमारी बातचीत के केंद्र में यही रहा। लेकिन इस बार बिहार के छात्र अधिक थे। इसकी वजह यह कि बिहार में चुनाव चल रहे हैं। मुलाकात के दौरान बिहार में बदहाल शिक्षा व्यवस्था पर भी बात की गई। राहुल गांधी ने शिक्षा व्यवस्था और उसमें दलितों और पिछड़ों की भागीदारी की बात कही। उन्होंने यह भी पूछा कि जाति के आधार पर शारीरिक हिंसा और मानसिक हिंसा दोनों किस प्रकार होते हैं।
उनके इस प्रश्न का उत्तर मैंने एक दलित छात्र होने के नाते अपने अनुभव से दिया। मैंने कहा कि उत्तर प्रदेश, राजस्थान और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में जातिगत हिंसा के अनेक मामले सामने आते हैं, जहां लोग शारीरिक प्रताड़ना सहते हैं। जब वही लोग उच्च शिक्षा प्राप्त करने विश्वविद्यालय पहुंचते हैं, तो वहां भी उन्हें मानसिक प्रताड़ना झेलनी पड़ती है। अक्सर सवर्ण छात्र आरक्षण और जाति के नाम पर उन्हें नीचा दिखाने की कोशिश करते हैं।

मैंने राहुल गांधी से अपना एक व्यक्तिगत अनुभव साझा किया कि जब मैं अपने महाविद्यालय में छात्रसंघ का चुनाव लड़ रहा था, तब सोशल मीडिया पर मुझे जातिसूचक गालियां दी गईं। कॉलेज की सफाई संबंधी एक वीडियो पर एक छात्रा ने टिप्पणी की थी कि “तू ही साफ कर दे, तू तो चमार है और तेरे समाज का तो यही काम है।”
यह सुनकर राहुल गांधी ने पूछा कि “आपके अनुसार विश्वविद्यालयों में दलित छात्रों के साथ ऐसा व्यवहार क्यों किया जाता है?”
मैंने उत्तर दिया कि दिल्ली विश्वविद्यालय को स्थापित हुए 100 वर्ष से अधिक हो चुके हैं, लेकिन आज तक इसके 93 महाविद्यालयों में एक भी दलित प्रधानाचार्य नहीं है। न ही किसी केंद्रीय विश्वविद्यालय में आज तक दलित कुलपति नियुक्त हुए हैं। हमारे पाठ्यक्रम में भी बहुजन महापुरुषों का उल्लेख लगभग नगण्य है। कक्षा 6 से 12 तक के एनसीईआरटी पाठ्यक्रम में जहां गांधी का वर्णन लगातार मिलता है, वहीं डॉ. भीमराव आंबेडकर, जोतीराव फुले, सावित्रीबाई फुले, फातिमा शेख, शाहूजी महाराज जैसे महापुरुषों का नाम बहुत कम या बिल्कुल नहीं मिलता। जब तक हमारे इतिहास में बहुजन नायकों की भूमिका नहीं पढ़ाई जाएगी, तब तक जातिगत भेदभाव शिक्षा संस्थानों और समाज दोनों में बना रहेगा।
राहुल गांधी ने पूछा कि “यदि मैं सत्ता में आता हूं, तो आप सभी मुझसे क्या उम्मीद रखते हैं?”
मैंने उत्तर दिया कि मैंने विश्वविद्यालयों में जातिवाद का सामना किया है। रोहित वेमुला की त्रासदी इसका सबसे बड़ा उदाहरण है कि किस प्रकार दलित छात्रों को आगे बढ़ने से रोका जाता है। इसलिए मेरी उनसे यह अपेक्षा थी कि जब उनकी सरकार बने, तो रोहित वेमुला एक्ट को लागू किया जाए।
इस पर राहुल गांधी ने कहा कि वे निश्चित रूप से रोहित वेमुला एक्ट लाएंगे, लेकिन यह भी पूछा कि “जब विश्वविद्यालयों में एससी/एसटी सेल पहले से हैं, तब भी इतनी जातिगत हिंसा क्यों होती है?”
मैंने उत्तर दिया कि केवल एससी/एसटी सेल का होना पर्याप्त नहीं है। अधिकांश संस्थानों में इनमें आरएसएस से जुड़े कार्यकर्ताओं को नियुक्त किया गया है, जो जातिगत हिंसा करने वालों को संरक्षण देते हैं।
बातचीत के दौरान राहुल गांधी ने मान्यवर कांशीराम का उल्लेख करते हुए कहा कि “दलितों की स्थिति नौकरियां पाने या अफसर बनने भर से नहीं सुधरेगी; उन्हें देश की सत्ता, नीति और शिक्षा प्रणाली पर अधिकार स्थापित करना होगा।”
मैंने उत्तर दिया कि संसद में आज 138 अनुसूचित जाति के सांसद हैं, परंतु केवल दलित सांसद होना पर्याप्त नहीं है। प्रश्न यह है कि उनमें दलित चेतना और बहुजन विचारधारा का प्रभाव कितना है।
यदि 200 दलित सांसद आरएसएस की विचारधारा से प्रभावित हैं, तो वे समाज का भला नहीं कर सकते। लेकिन केवल 10 आंबेडकरवादी सांसद संसद पहुंच जाएं, तो समाज में परिवर्तन आ सकता है।
लेकिन वहां मौजूद कई छात्रों ने शायद इस सवाल को ज़्यादा महत्वपूर्ण नहीं माना क्योंकि उन्हें इन बातों से ज़्यादा फर्क नहीं पड़ता था। इसलिए उन्होंने छठ पूजा की बातें शुरू कर दीं और यह कहने लगे कि आज बिहार से सबसे ज़्यादा आईएएस बनते हैं। बिहार से ही विश्वविद्यालयों में सबसे ज़्यादा शिक्षक और प्रिंसिपल हैं।
मेरा उन छात्रों से यह सवाल था, जो मैं समय की कमी के कारण वहां नहीं पूछ पाया कि यह अच्छी बात है कि बिहार से सबसे ज़्यादा आईएएस बनते हैं, लेकिन उनमें दलित-पिछड़े कितने होते हैं? और यह कि आज तक दिल्ली विश्वविद्यालय ने किसी दलित को प्रिंसिपल क्यों नहीं बनाया?
इसलिए, बिहार का अच्छा होना या देश का अच्छा होना तब तक हमारे लिए कोई मायने नहीं रखता जब तक हमारा समाज आगे नहीं बढ़ेगा, क्योंकि जब तक समाज आगे नहीं जाएगा, तब तक हमारी हालत नहीं बदलेगी।
खैर, इन तमाम चर्चाओं के बाद मुलाकात समाप्त हुई। राहुल गांधी ने आश्वासन दिया कि सत्ता में आने पर वे न केवल रोहित वेमुला एक्ट लागू करेंगे, बल्कि बहुजन महापुरुषों और आंदोलनों को राष्ट्रीय पाठ्यक्रम में सम्मिलित करने का कार्य भी करेंगे।
(संपादन : नवल/अनिल)
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