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समाज और संस्कृति

जेर-ए-बहस : क्या शंबूक श्रमण परंपरा का प्रतिनिधि था?
रामायण में शंबूक प्रकरण को जाति के नजरिए से ही देखा गया है। देवता शंबूक की हत्या के बाद राम की प्रशंसा करते हुए कहते हैं कि उनकी कृपा से ही शूद्र स्वर्ग में प्रवेश...
मुंगेरी लाल आयोग के ऐतिहासिक दस्तावेज
“आयोग को यह बताते हुए दुःख होता है कि अबतक के अध्ययन से यही पता चला कि प्रायः सभी नियुक्ति प्राधिकारियों ने जाने या अनजाने में इस संबंध में जारी किए गए सरकारी अनुदेशों का...
बुद्ध, आत्मा और AI : चेतना की नई बहस में भारत की पुरानी भूल
हमें बुद्ध की मूल शिक्षाओं और योगाचार बुद्धिज्म के निरीश्वर, वैज्ञानिक चेतना-दर्शन की ओर लौटने की ज़रूरत है। इससे हम न केवल ख़ुद को बेहतर समझ पाएंगे, बल्कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और मशीन लर्निंग के युग...
दलित सरकारी कर्मी ‘पे बैक टू सोसायटी’ का अनुपालन क्यों नहीं करते?
‘शिक्षित बनो, संगठित रहो और संघर्ष करो’ का ऐतिहासिक नारा देने के तकरीबन चौदह साल बाद डॉ. आंबेडकर ने आगरा के प्रसिद्ध भाषण में कहा था कि, “मुझे समाज के पढ़े-लिखे लोगों ने धोखा दिया।”...
बंगाली अध्येताओं की नजर में रामराज्य
रवींद्रनाथ टैगोर से लेकर राजशेखर बसु और दिनेश चंद्र सेन आदि बंगाली अध्येताओं ने रामायण का विश्लेषण अलग-अलग...
क्या बुद्ध पुनर्जन्म के आधार पर राष्ट्राध्यक्ष का चयन करने की सलाह दे सकते हैं?
दलाई लामा प्रकरण में तिब्बत की जनता के साथ पूरी सहानुभूति है। उन पर हुए आक्रमण की अमानवीयता...
हूल विद्रोह की कहानी, जिसकी मूल भावना को नहीं समझते आज के राजनेता
आज के आदिवासी नेता राजनीतिक लाभ के लिए ‘हूल दिवस’ पर सिदो-कान्हू की मूर्ति को माला पहनाते हैं...
यात्रा संस्मरण : जब मैं अशोक की पुत्री संघमित्रा की कर्मस्थली श्रीलंका पहुंचा (अंतिम भाग)
चीवर धारण करने के बाद गत वर्ष अक्टूबर माह में मोहनदास नैमिशराय भंते विमल धम्मा के रूप में...
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