h n

‘मैं मौलाना, मुफ्ती के चक्कर में नहीं रहता’

बाबा साहब भीमराव आम्बेडकर ने कभी कहा था कि 'हिन्दू दलितों से मुसलमान दलितों की स्थिति बदतर है।’ वह परिस्थिति आज भी लगभग जस की जस बनी हुई है। पसमांदा मुसलमानों ने अपनी आवाज बुलंद करने के लिए 1998 में 'ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज’ का गठन किया था

बाबा साहब भीमराव आम्बेडकर ने कभी कहा था कि हिन्दू दलितों से मुसलमान दलितों की स्थिति बदतर है।वह परिस्थिति आज भी लगभग जस की जस बनी हुई है। पसमांदा मुसलमानों ने अपनी आवाज बुलंद करने के लिए 1998 में ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाजका गठन किया था। बिहार विधान परिषद् के उपसभापति सलीम परवेज इस संगठन के अध्यक्ष रहे हैं। पसमांदा समाज के बाबत उनसे अनेक पहलुओं पर बातचीत की है फारवर्ड प्रेस के छपरा संवाददाता अमलेश प्रसाद ने। बातचीत के अंश प्रस्तुत हैं… 

पसमांदा समाज से निकलकर बिहार विधान परिषद् के उपसभापति पद तक का सफर कैसा रहा?

मेरा संयुक्त परिवार था, जो बढ़ती पर ही टूट गया और मुझे सऊदी अरब जाना पड़ा। छह साल तक एक कंपनी में काम किया। वहीं 1990 में अपना कारोबार शुरू किया लेकिन हमेशा अपने गांव की गरीबी, बदहाली याद आती रही। 2000 में अपने गांव वापस आया। ‘सर्विस टू यूनिटी, सर्विस टू गॉड’ को अपनी जिंदगी का उद्देश्य बना लिया। अरब से जो पैसा मिला, उसे पसमांदा समाज के लोगों की शादी, बच्चों की पढ़ाई में लगाया। 2009 में हालात कुछ ऐसे आ गए कि मुझे बसपा से छपरा लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लडऩा पड़ा। चुनाव हार गया, लेकिन हिम्मत नहीं हारी। इसी बीच नीतीश जी का निमंत्रण मिला और मैं विधान पार्षद् बन गया। 2010 में बिहार विधान सभा के चुनाव मैं मैंने नीतीश जी को पूरी मदद की, जिसके पुरस्कार स्वरूप मुझे बिहार विधान परिषद् के उपसभापति का पद मिला। हिन्दुस्तान में मैं अंसारी परिवार का पहला व्यक्ति हूं जिसे यह पद मिला है।

समाज सेवा/व्यवसाय के क्षेत्र से राजनीति में क्यों आए?

जब मैं पढता था तब मेरे बड़े जीजा डॉ. शार्दूल हक ने मेरा नामांकन दाता मेडिकल कॉलेज में करवा दिया था, लेकिन मेरे पास पढऩे के लिए पैसे नहीं थे और मुझे सऊदी अरब जाना पड़ा। मैंने बहुत नजदीक से गरीबी देखी है। जब मेरी आर्थिक स्थिति ठीक हुई, मेरी अंतरात्मा ने आवाज दी-‘गांव चलो और बदहाल लोगों की सेवा करो।’ आज भी मैं अपने को एक समाजसेवी ही समझता हूं, न कि विधान पार्षद् और न ही उपसभापति।

पसमांदा समाज के खस्ताहाल के लिए किसको जिम्मेदार मानते हैं?

खस्ताहाल के लिए हम खुद जिम्मेदार हैं। हमें हर तरह से शिक्षित नहीं करने की साजिश की गई। मैंने ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज को एक गाड़ी दी है, जिस पर लिखा है ‘आधी रोटी खाएंगे, बच्चों को पढ़ाएंगे।’ हमारे बीच तालीम की कमी है। हमें खानों-खानों में बांटा गया। जाति के नाम पर, धर्म के नाम पर डराया गया, लेकिन इस सरकार की देन है कि लोग अब अपने बच्चों को पढ़ाना चाहते हैं। तालीम से ही हालात सुधरेंगे।

पसमांदा समाज के लिए नीतीश सरकार ने क्या योजनाएं लागू की हैं?

हम पसमांदा लोग ही नहीं, बल्कि पूरे बिहारवासी खुशनसीब हैं कि आजादी के बाद पहली बार नीतीश कुमार जैसा मुख्यमंत्री मिला है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि उन्होंने बच्चों में आत्मनिर्भरता पैदा की है। दसवीं पास बच्चियों के लिए नीतीश जी ने दस हजार वजीफा देने की घोषणा की है। इससे स्कूलों में बच्चों की संख्या बढ़ी है। 2,459 मदरसों को मंजूरी मिली है। अब बच्चों को किताबें, कॉपी व पोशाक और तालीमी मरकज सेवकों का वेतन मिलने लगा है।

नीतीश सरकार में एक भी मंत्री पसमांदा समाज का नहीं है? यहां तक कि मुसलमानों के सामाजिक, सांस्कृतिक, शैक्षणिक व धार्मिक संस्थाओं का अध्यक्ष भी कोई पसमांदा नहीं है?

नीतीश जी सोशल इंजीनियरिंग के माहिर आदमी हैं। वो काम चाहते हैं। आजतक किसी भी राज्य के मुख्यमंत्री ने इतनी इज्जत नहीं दी, जो इज्जत पसमांदा समाज को उन्होंने दी है। मैं पसमांदा समाज का पहला आदमी हूं, जो इस संवैधानिक पद पर बैठा हूं।

कुछ लोग कहते हैं कि आरक्षण इस्लाम के विरुद्ध है। हैदराबाद के एक मुफ्ती का कहना है कि पसमांदा समाज को आरक्षण देना हराम है?

मैं कभी मौलाना और मुफ्ती के चक्कर में नहीं रहता। किसी मुफ्ती के कहने से यह बात तय नहीं हो सकती। हां, संविधान में धर्म के आधार पर आरक्षण नहीं है लेकिन हम सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, शैक्षणिक रूप से पिछड़े हैं। हमारी मांगें संवैधानिक हैं। हम उसे लेकर रहेंगे। किसी मुफ्ती के कहने से मेरा मिशन थोड़े कम हो जाएगा।

आपने कई मुस्लिम देशों की यात्रा की है। उनकी तुलना में भारत के मुसलमानों की स्थिति कैसी है?

मैं खुशनसीब हूं कि मैं भारत में हूं। अन्य मुस्लिम देशों की तुलना में यहां के मुसलमान लाख दर्जे अच्छे हैं। मैंने पाकिस्तान, मलेशिया, संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन, कतर, ओमान, कुवैत आदि देशों की यात्रा की है। खासकर बिहार में मुसलमान सुकून से रहते हैं।

आप बिहार एथलेटिक्स एसोसिएशन के अध्यक्ष भी हैं। खेल के क्षेत्र में बिहार का प्रदर्शन इतनी दयनीय क्यों है?

2005 के पहले इस संस्था को कोई जानता भी नहीं था। अभी बहुत काम करना है। मैंने सरकार की मदद से छपरा में एक सिंथेटिक मैदान बनाने का संकल्प लिया है, ताकि सारण प्रमंडल में खेल के क्षेत्र में क्रांति आए और हमारे खिलाड़ी देश-विदेश में खेलने जाएं। अब बिहार का खेल बजट दस गुना से भी ज्यादा हो गया है।

बिहार विधान परिषद् सचिवालय में हुई नियुक्तियों पर कई सालों से अवैध होने का आरोप लगते रहे हैं?

कोई भी नियुक्ति अवैध नहीं होती है। मामला यह होता है कि जगह 7 लोगों की होती है और बहाल 10 हो जाते हैं, और उनमें से 3 लोगों को काम करने से मना कर देने पर वही 3 लोग तरह-तरह के आरोप लगाने लगते हैं।

जब नियुक्ति अवैध नहीं होती तो 2006 में तत्कालीन सभापति जाबिर हुसेन के कार्यकाल में नियुक्त किए गए दलित-बहुजन को बर्खास्त कैसे किया गया?

जब तक मैं सभापति के प्रभार में रहा तब तक मेरे पास ऐसी कोई फाईल नहीं आई। अब मैं उपसभापति के रूप में वहां हूं। इस संबंध में अगर आप वर्तमान सभापति अवधेश नारायण सिंह से ही बात करें तो बेहतर होगा। मेरे पास इस संबंध में कोई जानकारी नहीं है।


फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्‍त बहुजन मुद्दों की पुस्‍तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्‍स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्‍य, संस्कृति व सामाजिक-राजनीति की व्‍यापक समस्‍याओं के साथ-साथ इसके सूक्ष्म पहलुओं को भी गहराई से उजागर करती हैं। एफपी बुक्‍स की सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +919968527911, ईमेल : info@forwardmagazine.in

लेखक के बारे में

अमलेश प्रसाद

अमलेश प्रसाद फारवर्ड प्रेस के छपरा संवाददाता हैं।

संबंधित आलेख

यात्रा संस्मरण : ‘सड़सी-कुटासी’ परब मनाते छोटानागपुर के असुर
होलिका दहन के मौके पर जहां एक ओर हिंदू एक स्त्री की प्रतिमा को जलाते हैं दूसरी ओर उसी दिन छोटानागपुर के असुर ‘सड़सी-कुटासी’...
बहुत याद आएंगे मानववाद के लिए प्रतिबद्ध रामाधार जी, जिन्होंने ‘सच्ची रामायण’ को समूर्त किया
रामाधार जी किसी संगठन वगैरह से नहीं जुड़े थे। वे बस शिक्षक थे और अध्यापन ही करते थे। यहां तक कि वे किसी कार्यक्रम...
स्मृतिशेष : केरल में मानवीय गरिमा की पुनर्स्थापना के लिए संघर्ष करनेवाले के.के. कोचू
केरल के अग्रणी दलित बुद्धिजीवियों-विचारकों में से एक 76 वर्षीय के.के. कोचू का निधन गत 13 मार्च, 2025 को हुआ। मलयाली समाज में उनके...
बिहार : क्या दलित नेतृत्व से सुधरेंगे कांग्रेस के हालात?
सूबे में विधानसभा चुनाव के सात-आठ महीने रह गए हैं। ऐसे में राजेश कुमार राम के हाथ में नेतृत्व और कन्हैया को बिहार में...
फ्रैंक हुजूर के साथ मेरी अंतिम मुलाकात
हम 2018 में एक साथ मिलकर ‘21वीं सदी में कोरेगांव’ जैसी किताब लाए। आगे चलकर हम सामाजिक अन्याय मुक्त भारत निर्माण के लिए एक...