संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार की स्वायत्त संस्था साहित्य अकादेमी में जहां अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित क्षेत्रीय सचिव पद की नियुक्ति में घोर अनियमितता, कदाचार और धांधली का मामला सामने आया है, वहीं अकादेमी में कार्यरत एक ओबीसी मुस्लिम अधिकारी कमाल अहमद को बर्खास्त कर दिया गया है।
साहित्य अकादेमी ने 6 अप्रैल, 2013 को अपने क्षेत्रीय कार्यालय मुंबई और कोलकाता के लिए क्षेत्रीय सचिव के दो पदों की नियुक्ति से संबंधित एक विज्ञापन जारी किया, जिसमें से एक पद अनारक्षित और दूसरा पद अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए आरक्षित था। साक्षात्कार का आयोजन 7 सितंबर, 2013 को अकादेमी के क्षेत्रीय कार्यालय, कोलकाता में रखा गया, जिसमें कुल 14 अभ्यर्थियों ने भाग लिया परंतु अनुसूचित जनजाति का कोई भी अभ्यर्थी उनमें नहीं था। साक्षात्कार के लिए चयन समिति में अकादेमी के अध्यक्ष विश्वनाथ प्रसाद तिवारी, उपाध्यक्ष चंद्रशेखर कंबार व सचिव के श्रीनिवासराव के अलावा बांग्ला लेखिका नवनीता देवसेन और गुजराती साहित्यकार सीतांचंद्र शामिल थे।
साक्षात्कार में शामिल अभ्यर्थी तथा राष्ट्रपति द्वारा ‘नेशनल यूथ अवार्ड’ से सम्मानित डॉ मनीष गवई ने ‘अनुसूचित जाति आयोग’ में शिकायत करते हुए कहा है कि क्षेत्रीय सचिव की नियुक्ति में अकादेमी द्वारा तथ्यों को छुपाया गया और सरकारी नियमों की अवहेलना करते हुए गलत तरीके से एससी पद को अनारक्षित कर अकादेमी के मुंबई कार्यालय में कार्यक्रम अधिकारी के पद पर कार्यरत सामान्य श्रेणी के अपने खास अभ्यर्थी कृष्ण किम्बाहुणे को क्षेत्रीय सचिव (मुंबई) पद के लिए चयनित किया गया और क्षेत्रीय सचिव (कोलकाता) का पद ‘नॉट फाउंड सुटेबल’, कोई अभ्यर्थी उपयुक्त नहीं, कर दिया गया। चयन समिति पर जातिवाद और पक्षपात का आरोप लगाते हुए गवई ने कहा है कि अगर उन्हें न्याय नहीं मिला तो वे अपना पदक राष्ट्रपति को वापस लौटा देंगे।
साहित्य अकादेमी पर पक्षपात और भेदभावपूर्ण रवैये का आरोप लगाते हुए अनुसूचित जाति के अभ्यर्थी और कोलकाता के एक इंजीनियरिंग विश्वविद्यालय में सहायक रजिस्ट्रार के पद पर कार्यरत डॉ. बिभोर दास ने संस्कृति मंत्रालय और अनुसूचित जाति आयोग के पास अपनी लिखित शिकायत भेजी है। उन्होंने यह आरोप लगाया है कि इस नियुक्ति में अकादेमी द्वारा रोस्टर का उल्लंघन करते हुए अनुसूचित जाति के आवेदक को क्षति पहुंचाई गई है। उनका यह सवाल है कि क्षेत्रीय सचिव (मुंबई) का जो पद पहले अनुसूचित जाति (एससी) के लिए आरक्षित था, वह पद 6 अप्रैल, 2013 वाले विज्ञापन में क्षेत्रीय सचिव, मुंबई/कोलकाता के दो पदों (एक पद अनारक्षित और एक पद एसटी) के रूप में क्यों विज्ञापित किया गया और यह तथ्य क्यों छुपाया गया कि कौन सा पद आरक्षित है। बिभोर दास अकादेमी पर तथ्यों को छुपाने का आरोप लगाते हुए कहते हैं कि उन्होंने स्वयं अनुसूचित जाति के आवेदक के रूप में अकादेमी द्वारा 28 अप्रैल, 2012 को विज्ञापित क्षेत्रीय सचिव (मुंबई) पद जो कि अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित था, के लिए आवेदन दिया था। भारत सरकार से इस पूरे प्रकरण की निष्पक्ष जांच की मांग करते हुए वे यह कहते हैं कि जवाहरलाल नेहरु द्वारा स्थापित साहित्य अकादेमी के वर्तमान पशासन के उच्च तीन पदों पर दक्षिणपंथियों का कब्जा है, यानी अध्यक्ष, सचिव और उप-सचिव, प्रशासन मिलकर अपने मनुवादी एजेंडे को फलीभूत करने में संलग्न हैं। देश की सर्वोच्च साहित्य संस्था साहित्य अकादेमी के सचिव पद पर एक गैर-साहित्यिक व्यक्ति (जिसकी एक कविता या कहानी भी कहीं प्रकाशित नहीं हुई हो) के श्रीनिवासराव की नियुक्ति भी विवादों में रही है। के श्रीनिवासराव अकादेमी के सेवाकाल के दौरान ही किस प्रकार शैक्षणिक डिग्रियां एमए, एमफि ल और पीएचडी हासिल करता चला गया, इसकी भी जांच होनी चाहिए।
आज अकादेमी के नए प्रबंधन में न केवल दलितों के हक को छीना जा रहा है, बल्कि वहां के एक अल्पसंख्यक ओबीसी मुस्लिम ग्रुप ‘ए’ अधिकारी डॉ. कमाल अहमद को बर्खास्त कर दिया गया है। जेएनयू से डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त कमाल अहमद को पहले तो बिना कोई कारण एवं आधार बताए अवैध एवं अनुचित तरीके से और पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर एवं सरकारी नियमों व प्रक्रियाओं के विपरीत प्रोबेशन पीरियड अगले एक साल तक के लिए बढ़ा दिया गया। अकादेमी के इस निर्णय के खिलाफ उन्होंने अपना रिप्रजेंटेशन भी वहां दिया, परंतु कोई सुनवाई नहीं हुई। बाद में हारकर कमाल अहमद को सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल की प्रिंसिपल बेंच, दिल्ली में अपील करनी पड़ी। उनका मामला अभी न्यायालय के विचाराधीन ही था कि उन्हें बर्खास्त कर दिया गया है। कमाल अहमद को प्रताडि़त किए जाने और बर्खास्त किए जाने का मामला संज्ञान में आने पर ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं राज्यसभा सांसद अली अनवर अंसारी ने पत्र लिखकर प्रधानमंत्री, संस्कृति मंत्री से इस संबंध में हस्तक्षेप की मांग की है। उन्होंने इस मामले को संसद में भी उठाने की बात कही है।
साहित्य अकादेमी की जो वर्तमान स्थिति है, उसे देखकर यह कहना उचित ही होगा कि अकादेमी के वर्तमान प्रशासन व प्रबंधन में एससी, एसटी, ओबीसी, अल्पसंख्यक और महिला के लिए कोई स्थान नहीं है। लेखक बिरादरी चुप क्यों है और प्रतिरोध का स्वर इतना मद्धिम क्यों, यह सचमुच चिंतनीय विषय है।
(फारवर्ड प्रेस के फरवरी, 2014 अंक में प्रकाशित )
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