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फॉरवर्ड विचार, जनवरी 2016

मोदी के नेतृत्व में भाजपा की विजय और बहुजन पार्टियों की हार का आकलन करते हुए मणि कोई चश्मा नहीं पहनते-न भगवा, न हरा और न लाल-वे केवल फुले-आंबेडकर के दृष्टिकोण पर दृढ़ रहते हैं। वे दलित-बहुजन नेताओं को भी माफ नहीं करते

विजय के हजार पिता होते हैं परंतु हार अनाथ होती है। यह सन् 1961 में बे ऑफ पिग्स (क्यूबा) सैन्य अभियान में अमेरिका की शिकस्त के बाद, वहां के राष्ट्रपति जॉनएफ ने  विजय का श्रेय लेने के लिए कई लोग तैयार हैं हम इस गुत्थी को सुलझाने का काम संघ परिवार
और राजनैतिक पंडितों पर छोड़ देते हैं। जहां तक पराजित पक्ष, विशेषकर बहुजन पार्टियों, का प्रश्न है, उसके शिविर में चुप्पी छाई हुई है। इस अंक से हम इस विषय पर चर्चा शुरू कर रहे हैं।

हमारे नियमित स्तंभकार प्रेमकुमार मणि अपने विश्लेषण की शुरुआत में बताते हैं कि बहुजन पार्टियों ने क्या गलत किया और यह भी कि असली बहुजन राजनीति कैसी होनी चाहिए और हो सकती है। मोदी के नेतृत्व में भाजपा की विजय और बहुजन पार्टियों की हार का आकलन करते हुए मणि कोई चश्मा नहीं पहनते-न भगवा, न हरा और न लाल-वे केवल फुले-आंबेडकर के दृष्टिकोण पर दृढ़ रहते हैं। वे दलित-बहुजन नेताओं को भी माफ नहीं करते। जैसा कि जेएनयू केप्रोफेसर विवेक कुमार ने कहा था, बहुजन मीडिया में फॉरवर्ड प्रेस इसलिए अनूठी है क्योंकि वह बहुजन नेताओं का आलोचनात्मक मूल्यांकन करने में नहीं सकुचाती। हो सकता है आप मोदी-भाजपा से मणि की उम्मीदों से सहमत न हों-‘यदि वह सावरकर-हेडगेवारकी वैचारिकी से ऊपर उठती है और व्यापक राष्ट्रीय संदर्भों में फुले-आंबेडकरवाद से खुद को जोड़ती है, तब उसे और पूरे राष्ट्र को इसका लाभ मिलेगा’-परंतु आने वाले महीनों में हम एक नई, बेहतर बहुजन राजनीति कैसे उभरे, इस पर विभिन्न विश्लेषण व सुझाव प्रस्तुत करेंगे।

अपनी आवरणकथा में मणि, हालिया चुनाव की तुलना ‘सन् 1971 के इंदिरा हटाओ के दिनों’ से करते हैं। मैं उत्तरप्रदेश के बदायूं में दो बहुजन (एमबीसी) बहनों के साथ सामूहिक बलात्कार के बाद उन्हें पेड़ से लटका दिए जाने के घटनास्थल पर मायावती के पहुंचने की तुलना, इंदिरा गांधी की लंबी राजनैतिक यात्रा की एक अन्य घटना से करना चाहूंगा : बेलछी 1977। उस साल, आपातकाल (1975-77) के बाद उनकी करारी हार से इंदिरा गांधी तब उबरीं, जब वे उन 9 दलितों के परिवारों से मिलने पहुचीं जिन्हें उच्च जाति के लोगों की भीड़ ने जिंदा जला दिया था। वे हवाई जहाज से पटना पहुंची, उसके बाद जीप और फिर ट्रेक्टर और अंतत: जब बारिश के कारण सड़क पर ट्रेक्टर का चलना भी दूभर हो गया, तब वे हाथी पर सवार होकर बेलछी पहुंची। आज, जब पराजित राहुल गांधी बदायूं के ‘दलित’ (जैसा की बताया गया है) परिवारों से मिलने पहुंचे तो वह कोई बड़ा समाचार नहीं बना। यह अपेक्षित था। परंतु जब बहुजनों की रानी मायावती अगले दिन हवा में उडऩे वाले हाथी से वहां पहुंची तो वह समाचार बन गया। यह यात्रा उनके लिए बेलछी सिद्ध होगी या नहीं, यह तो समय ही बताएगा।

मुलायम सिंह, लालू प्रसाद, मायावती या मोदी का राजनैतिक भविष्य कुछ भी हो, हमारे लिए महत्वपूर्ण है भारतीय राष्ट्र का भविष्य। हमारे लेखों की श्रृंखला ‘भारत को एक महान राष्ट्र बनाना’ में विशाल मंगलवादी इस प्रश्न का उत्तर अपने लेख ‘बाईबिल ने भारत को कैसे विकासशील राष्ट्र बनाया?’ में देते हुए बताते हैं कि हमारे गणतंत्र की जड़ें हमारे संविधान से गहरी हैं। मोदी सरकार ने (भगवा लेंस से) इतिहास का पुनर्लेखन करने का अपना इरादा जता दिया है। इसलिए यह और भी आवश्यक है कि हम आधुनिक भारत के इतिहास के सच को, उसके कांग्रेस या तैयार हो रहे हिन्दुत्व संस्करण से परे हटकर, जानें।

(फारवर्ड प्रेस के जुलाई, 2014 अंक में प्रकाशित)


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लेखक के बारे में

आयवन कोस्‍का

आयवन कोस्‍का फारवर्ड प्रेस के संस्थापक संपादक हैं

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