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जेएनयू में ‘आदिवासी साहित्य’ का लोकार्पण

जेएनयू में आदिवासी दर्शन और समकालीन आदिवासी लेखन की त्रैमासिक पत्रिका 'आदिवासी साहित्य' का महाराष्ट्र से आए मशहूर साहित्यकार वाहरू सोनवणे, रांची से आईं झारखंडी भाषा साहित्य-संस्कृति अखड़ा की महासचिव वंदना टेटे, आदिवासी मानवाधिकार कार्यकर्ता ग्लैडसन डुंगडुंग, स्कूल ऑफ लैंग्वेज की डीन प्रो. वैश्ना नारंग, भारतीय भाषा केन्द्र के अध्यक्ष प्रो. अनवर आलम और आदिवासी कार्यकर्ता अभय खाखा द्वारा लोकार्पण किया गया

10989187_10203357384363979_6173642010798320144_oनई दिल्ली: जेएनयू में आदिवासी दर्शन और समकालीन आदिवासी लेखन की त्रैमासिक पत्रिका ‘आदिवासी साहित्य’ का महाराष्ट्र से आए मशहूर साहित्यकार वाहरू सोनवणे, रांची से आईं झारखंडी भाषा साहित्य-संस्कृति अखड़ा की महासचिव वंदना टेटे, आदिवासी मानवाधिकार कार्यकर्ता ग्लैडसन डुंगडुंग, स्कूल ऑफ  लैंग्वेज की डीन प्रो. वैश्ना नारंग, भारतीय भाषा केन्द्र के अध्यक्ष प्रो. अनवर आलम और आदिवासी कार्यकर्ता अभय खाखा द्वारा लोकार्पण किया गया।

इस अवसर पर पत्रिका के संपादक गंगा सहाय मीणा ने कहा कि इन दिनों हिंदी अकादमिक जगत में आदिवासी साहित्य को लेकर काफी भ्रम की स्थिति है और दूर-दराज के क्षेत्रों में बड़ी संख्या में सक्रिय आदिवासी रचनाकारों की आवाज दिल्ली तक नहीं पहुंच पा रही, इसलिए आदिवासी दर्शन को आधार बनाकर राष्ट्रीय स्तर की यह पत्रिका शुरू की गयी है।

(फारवर्ड प्रेस के मार्च, 2015 अंक में प्रकाशित )


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