लोकरंग ने बिखेरा रंग और उत्साह
कुशीनगर (उत्तरप्रदेश) : जिले के जोगिया जनूबी पट्टी गांव में हर वर्ष आयोजित होने वाले लोकरंग का दो दिवसीय आयोजन 12-13 अप्रैल को हुआ। यह आयोजन का आठवां वर्ष था। इस बार का आयोजन असहयोग आंदोलन कुशीनगर के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों हनुमान प्रसाद कुशवाहा, ब्रह्मदेव शर्मा, मुशी तप्तीलाल और मोती भगत को समर्पित था। इन चारों सेनानियों की खोज, सुभाषचन्द्र कुशवाहा ने 8 मई 1921 के स्वदेश अखबार में प्रकाशित समाचार के आधार पर की थी। इस वर्ष के आयोजन की खास बात यह थी कि भोजपुरी क्षेत्र की लोक कलाओं के साथ-साथ झारखंड, मध्यप्रदेश व पश्चिम बंगाल की लोक कलाओं से भी लोगों को रूबरू होने का मौका मिला। कार्यक्रम का शुभारम्भ प्रसिद्ध कथाकार एवं समयांतर पत्रिका के सम्पादक पंकज बिष्ट ने किया। इस मौके पर कहानीकार ऋषिकेश सुलभ, लोक संस्कृति मर्मज्ञ तैय्यब हुसैन, चित्रकार डा लाल रत्नाकर, वरिष्ठ कथाकार मदन मोहन, डा विजय चैरसिया, जितेन्द्र भारती, डा महेश चन्द्र शांडिल्य, जनवादी लेखक संघ के प्रदेश सचिव नलिन रंजन सिंह, अरुण कुमार असफल आदि उपस्थित थे। – मनोज कुमार सिंह
दलित दुल्हे की बग्गी तोडी
नारनौल (हरियाणा) : शहर के अनुसूचित जाति के लोगों ने लघु सचिवालय के समक्ष २८ मार्च को प्रदर्शन किया तथा दलित दूल्हे को बग्गी से उतारने, उसके साथ मारपीट करने तथा शादी के पंड़ाल में तोडफोड़ करने के आरोपियों को तुरन्त गिरफ्तार करने की मांग कीण् एसडीएम महेश कुमार मौके पर पहुंचे और आरोपियों के विरुद्ध कारवाई का आश्वासन दिया। दुल्हन के पिता सतीश कुमार ने बताया कि 28 मार्च को दूल्हा बग्गी में बैठकर तोरण चटकाने उनके घर जा रहा था तभी पुरानी मण्डी में कुछ लोगों ने दूल्हे से मारपीट कर बग्गी को तोड़ दिया । उन्होने शादी के पंडाल में घुसकर तोडफोड़ भी की। – संजय मान
ग्रामीण वैज्ञानिक की मशीनों ने पाई प्रशंसा
नरसिंहपुर (मध्यप्रदेश) : जिले के ग्राम मेख में 8 मार्च 1967 को मध्यमवर्गीय कृषक धनीराम विश्वकर्मा के घर जन्मे रोशनलाल विश्वकर्मा ने न केवल अपना बल्कि समूचे जिले का नाम रोशन कर दिखाया है। उन्होंने खेती से जुड़े कई अविष्कार किये हैं। क्षेत्रीय व राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित रोशन कहते है कि वे गांव के उन किसानों से अच्छी तरह परिचित थे जो आर्थिक रूप से कमजोर थे व जिन्हें प्रायः हर फसल में घाटा ही होता था। वे किसान या तो अपनी ज़मीन बेच देते थे या फिर दूसरे किसानों को बटाई पर दे देते थे। इससे व्यथित रोशन ने इस पेशे को सरल बनाने की ठान ली।
पढ़ाई में औसत रहे रोशन का दिमाग वैज्ञानिक सोच रखता है। जब वे आठवीं कक्षा के छात्र थे तब उन्होने माचिस की तीलियों से एक ऐसी बंदूक बनाई थी जिसका उपयोग खेतों में ऊधम मचाते बंदरों को भगाने के लिए किया जा सकता था।
उन्होंने कई अन्य मशीनें भी बनाईं लेकिन उनके सपनों को ऊंचाई मिली गन्ने को रोपने के लिये बनाई मशीन से। गन्ने की खेती को सरल व सस्ती बनाने के लिए उन्होंने 2006 में एक ऐसी मशीन बनाई जो पूरे गन्ने को रोपने की जगह मात्र गन्ने की आंख निकाल सकती थी और बाकी बचे गन्ने का किसान गुड़ या शक्कर बनवा सकता था। इस मशीन को न केवल सराहा गया बल्कि 2009 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा देवीसिंह पाटिल की उपस्थिति में एक केन्द्रीय मंत्री द्वारा उन्हें सम्मानित भी किया गया।
इसके बाद उन्हें नाबार्ड अवार्ड 2012 जवाहरलाल नेहरू कृषि फेलो सम्मान 2014 व छठवां केव्ही के अवार्ड से भी सम्मानित किया गया। रोशनए इससे भी बेहतर ऐसी मशीन बनाना चाहते थे जो किसानों को कम लागत में अच्छा मुनाफा दे सके। इसके लिये उन्होंने 2007 से ही काम शुरू कर दिया और एक ऐसी मशीन बना डाली जो गन्ने की आंखों की बोवनी ही नहीं बल्कि गन्ने की बोवाई के लिये खेत में नाली बनाती, खाद देती, बीज को व्यवस्थित करती व बीज को मिट्टी से भी दबाती थी। इस मशीन को 7 मार्च 2015 को आठवां नेशनल इनोवेशन अवार्ड राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी द्वारा प्रदान किया गया। मशीन बनाने के लिये रोशन ने घर पर ही कार्यशाला स्थापित की है। ‘श्री जय अम्बे स्टील फेब्रीकेशन’ नाम की इस कार्यशाला में गांव के ही सात लोगों को रोजगार दिया गया है। – अक्षय नेमा मेख